
नोएडा में प्रबुद्ध समागम में रखे विचार, कहा— यह विचार केवल नया नहीं, समय की माँग भी है
नोएडा। ‘एक देश, एक चुनाव’ की अवधारणा को भारतीय लोकतंत्र के लिए एक आवश्यक सुधार और रचनात्मक परिवर्तन बताते हुए भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री तथा इस विषय पर केंद्र सरकार की ओर से नियुक्त राष्ट्रीय संयोजक सुनील बंसल ने कहा कि बार-बार चुनाव कराने की मौजूदा व्यवस्था देश की आर्थिक, सामाजिक और प्रशासनिक स्थिरता को बाधित करती है। यह बात उन्होंने रविवार को नोएडा के सेक्टर-91 स्थित पंचशील बालक इंटर कॉलेज ऑडिटोरियम में आयोजित ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ विषयक प्रबुद्ध समागम में कही।
कार्यक्रम की अध्यक्षता फेलिक्स हॉस्पिटल, नोएडा के चेयरमैन डॉ. डी.के. गुप्ता ने की, जबकि संयोजक के रूप में पूर्व बार एसोसिएशन अध्यक्ष कालू राम चौधरी मौजूद रहे। इस अवसर पर अनेक राजनेताओं, प्रशासनिक अधिकारियों, व्यवसायिक प्रतिनिधियों, शिक्षाविदों, चिकित्सकों और सामाजिक संगठनों की भागीदारी रही।
चुनावी अराजकता लोकतांत्रिक ऊर्जा को बाँटती है: बंसल
सुनील बंसल ने कहा कि पिछले तीन दशकों में देश में शायद ही कोई ऐसा वर्ष बीता हो, जब किसी न किसी राज्य में चुनाव न हुए हों। बार-बार चुनाव होने से न केवल विकास कार्य ठप होते हैं, बल्कि जनकल्याणकारी योजनाएं भी आचार संहिता के चलते प्रभावित होती हैं। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि,
“ये अनियंत्रित चुनाव देश की प्रगति में स्पीड ब्रेकर का काम करते हैं। पाँच साल में एक बार चुनाव हों तो राजनेताओं की जवाबदेही भी बढ़ेगी और चुनाव विकास के मुद्दों पर लड़े जाएंगे।”
इतिहास गवाह है: पहले भी एक साथ होते थे चुनाव
उन्होंने बताया कि यह कोई नया विचार नहीं है। भारत में 1952 से लेकर 1967 तक चार आम चुनाव ऐसे ही एक साथ संपन्न हुए थे। लेकिन बाद में राज्यों की विधानसभाओं के समय से पहले भंग होने, आपातकाल और अन्य कारणों से यह तालमेल टूट गया। वर्तमान में देश में 28 राज्य और 8 केंद्रशासित प्रदेश हैं, जिनमें चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं। इससे लगातार चुनावी माहौल बना रहता है, जो राजनीति को अल्पकालिक सोच तक सीमित कर देता है।
वित्तीय और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी लाभकारी
बंसल ने चुनावी खर्च को लेकर चौंकाने वाले आंकड़े साझा करते हुए बताया कि:
- 2024 के लोकसभा चुनाव में लगभग ₹1.35 लाख करोड़ खर्च हुए।
- यदि सभी चुनाव एक साथ होते, तो यह खर्च 30–40% तक कम हो सकता था।
- इससे हर पांच वर्षों में ₹20–25 हजार करोड़ की बचत संभव है।
- एक रिपोर्ट के मुताबिक एक साथ चुनाव से देश की GDP में 1.5% तक की वृद्धि हो सकती है—यह ₹4.5 लाख करोड़ रुपये के बराबर होगा।

उन्होंने यह भी कहा कि बार-बार होने वाले चुनावों से वायु और ध्वनि प्रदूषण भी बढ़ता है। पोस्टर, बैनर और प्रचार सामग्री से पर्यावरण को नुकसान होता है। यदि एक साथ चुनाव हों, तो यह प्रदूषण भी नियंत्रित किया जा सकता है।
प्रशासनिक व्यवस्था को मिलेगी स्थिरता
हर चुनाव के दौरान लाखों सरकारी कर्मचारी चुनाव ड्यूटी में लगाए जाते हैं, जिससे उनके मूल कार्य प्रभावित होते हैं। अक्सर पुलिस बलों की भारी संख्या में तैनाती करनी पड़ती है—लोकसभा चुनाव में लगभग 10–12 लाख सुरक्षाकर्मी लगते हैं। यदि विधानसभाओं के साथ चुनाव हों तो 20–25 लाख सुरक्षा बलों की जरूरत होगी। इससे प्रशासनिक मशीनरी पर भारी दबाव पड़ता है, जिसे एक साथ चुनाव कराने से एक बार में ही हल किया जा सकता है।
समाज, शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए अवसर
बंसल ने यह भी बताया कि यदि चुनावी खर्च की बचत को शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण में लगाया जाए, तो यह देश की मानव पूंजी को मजबूत करेगा। उन्होंने कहा,
“GDP का 1.5% मतलब शिक्षा पर कुल खर्च का एक-तिहाई और स्वास्थ्य पर खर्च का आधा। इस बचत का सही उपयोग भारत को आत्मनिर्भर बना सकता है।”
अंतरराष्ट्रीय अनुभव भी हमारे पक्ष में
उन्होंने बताया कि अमेरिका, फ्रांस, स्वीडन और कनाडा जैसे विकसित देशों में सभी स्तरों के चुनाव एक साथ होते हैं। भारत को भी इस दिशा में आगे बढ़कर एक दीर्घकालिक, ठोस और निष्पक्ष व्यवस्था स्थापित करनी चाहिए।
राजनीतिक प्रतिक्रिया और रिपोर्ट का उल्लेख
उन्होंने बताया कि इस मुद्दे पर केंद्र सरकार ने एक उच्च स्तरीय समिति गठित की थी, जिसने 62 राजनीतिक दलों से सुझाव मांगे। इनमें से 47 दलों ने प्रतिक्रिया दी, जिनमें से 32 दलों ने समर्थन और 15 ने विरोध जताया। इससे स्पष्ट है कि देश के राजनीतिक दल भी सार्थक चर्चा और बदलाव के पक्षधर हैं।
गणमान्यजनों की उपस्थिति
कार्यक्रम में पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. महेश शर्मा, राज्यसभा सांसद सुरेन्द्र नागर, विधान परिषद सदस्य अशोक कटारिया, विधायक पंकज सिंह, विधायक तेजपाल नागर, विधायक धीरेंद्र सिंह, राज्य मंत्री कैप्टन विकास गुप्ता, पूर्व मंत्री नवाब सिंह नागर, और अन्य कई प्रमुख नेता, जनप्रतिनिधि एवं संगठनों के प्रतिनिधि उपस्थित रहे।
विभिन्न संगठनों की सहभागिता
कार्यक्रम में बार एसोसिएशन, फोनरवा, डीडीआरडब्ल्यूए, भारतीय चिकित्सा संघ, फिक्की, एसोचैम, व्यापार मंडल, रामलीला समिति, दैनिक जागरण, प्रमुख रोटरी क्लब्स, शैक्षिक संस्थान, सामाजिक संगठन, धार्मिक व जातीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी रही।
कार्यक्रम का मूल संदेश था कि ‘एक देश, एक चुनाव’ न केवल भारत के लोकतंत्र को अधिक व्यावहारिक, उत्तरदायी और प्रभावी बनाएगा, बल्कि यह विकास, पारदर्शिता और सुशासन के मार्ग को और सुगम करेगा। यह पहल नए भारत के निर्माण की दिशा में एक निर्णायक कदम बन सकती है—बशर्ते इसे गंभीरता, सर्वसम्मति और संवैधानिक दायरे में लागू किया जाए।

VIKAS TRIPATHI
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