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Yuvraj Singh Story: हैप्पी बर्थडे युवराज सिंह: क्रिकेट के सिक्सर किंग का प्रेरणादायक सफर
भारतीय क्रिकेट में युवराज सिंह का नाम एक चमकते सितारे की तरह दर्ज है। वर्ल्ड कप हीरो और सिक्सर किंग के रूप में मशहूर युवराज का सफर आसान नहीं रहा। चंडीगढ़ की गलियों से निकलकर भारतीय क्रिकेट का हिस्सा बनने तक, उनका सफर प्रेरणादायक है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक स्केटिंग चैम्पियन से क्रिकेट के सुपरस्टार बनने के पीछे नवजोत सिंह सिद्धू की ‘ना’ और उनके पिता योगराज सिंह की जिद ने क्या भूमिका निभाई?
जब सिद्धू ने कहा, “यह क्रिकेट नहीं खेल सकता”
युवराज सिंह के पिता योगराज सिंह ने एक दिन उन्हें नवजोत सिंह सिद्धू के पास ले जाकर बल्लेबाजी के लिए कहा। सिद्धू ने युवराज को देखा और सीधे कह दिया, “यह लड़का क्रिकेट नहीं खेल सकता।” यही बात योगराज सिंह के लिए चुनौती बन गई। उसी दिन उन्होंने ठान लिया कि उनका बेटा एक महान क्रिकेटर बनेगा।
इस घटना का जिक्र खुद युवराज सिंह ने किया था। उन्होंने बताया कि उनके पिता ने उनके रोलर स्केटिंग मेडल तक फेंक दिए और युवराज को स्केटिंग छोड़ने पर मजबूर कर दिया। इसके बाद युवराज के जीवन में क्रिकेट का कड़ा प्रशिक्षण शुरू हुआ।
स्केटिंग से क्रिकेट की पिच तक का सफर
युवराज सिंह को बचपन में स्केटिंग का जुनून था। उन्होंने नेशनल अंडर-14 रोलर स्केटिंग चैम्पियनशिप में मेडल जीता था। लेकिन उनके पिता इससे खुश नहीं थे। उनका मानना था कि युवराज को क्रिकेट खेलना चाहिए। उन्होंने युवराज के स्केटिंग जूते छीनकर उन्हें क्रिकेट की ट्रेनिंग में झोंक दिया।
योगराज सिंह की सख्ती और मेहनत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे देर रात तक युवराज को प्रैक्टिस कराते थे। एक बार नवजोत सिंह सिद्धू ने रात 9 बजे युवराज के घर आकर देखा कि अंधेरे में प्रैक्टिस चल रही है। युवराज बिना हेलमेट के बाउंसर झेल रहे थे। सिद्धू ने योगराज से कहा, “तुसी मुंडा मारना है क्या?” लेकिन योगराज सिंह का जवाब था, “मैं इसे क्रिकेट का बेस्ट प्लेयर बनाऊंगा।”
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क्रिकेट का सिक्सर किंग
योगराज सिंह की मेहनत और युवराज सिंह की लगन ने भारतीय क्रिकेट को एक अनमोल रत्न दिया। 2007 के टी20 वर्ल्ड कप में 6 गेंदों पर 6 छक्के मारकर उन्होंने इतिहास रच दिया। 2011 वर्ल्ड कप में ‘प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट’ बनकर उन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया युवराज सिंह की कहानी सिर्फ उनके खेल की नहीं, बल्कि उनके पिता की जिद, समर्पण और अटूट विश्वास की भी है। अगर नवजोत सिंह सिद्धू की वह ‘ना’ नहीं होती, तो शायद भारतीय क्रिकेट को उसका सिक्सर किंग नहीं मिलता। युवराज सिंह की यात्रा बताती है कि कड़ी मेहनत, दृढ़ता और सपनों पर विश्वास से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता ह
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VIKAS TRIPATHI
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