Thursday, July 31, 2025
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‘नाट्यशास्त्र: एक अनुशीलन’ — भारतीय सांस्कृतिक चेतना के नवजागरण की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल

नई दिल्ली, 18 जुलाई 2025 — भारतीय संस्कृति के प्राचीनतम एवं सर्वाधिक समग्र ग्रंथों में से एक, भरतमुनि रचित ‘नाट्यशास्त्र’ पर आधारित एक अत्यंत महत्वपूर्ण और शोधपरक पुस्तक ‘नाट्यशास्त्र : एक अनुशीलन’ का भव्य लोकार्पण समारोह नई दिल्ली के प्रतिष्ठित कान्स्टीट्यूशन क्लब में संपन्न हुआ। इस गरिमामयी अवसर पर केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे, जबकि विशिष्ट अतिथि के रूप में भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं आंध्र प्रदेश भाजपा के सह प्रभारी सुनील देवधर ने कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई।


पुस्तक का सार: परंपरा, प्रदर्शन और प्रासंगिकता का अद्भुत संगम

इस ग्रंथपरक पुस्तक ‘नाट्यशास्त्र : एक अनुशीलन’ में भरतमुनि द्वारा रचित मूल नाट्यशास्त्र के सिद्धांतों, उसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, शास्त्रीय परंपराओं, अभिनय शैलियों, रस-सिद्धांत, संगीत, वेशभूषा, मंच-सज्जा और देवसंवाद की पौराणिक व्याख्या का अत्यंत गहन और सुचिंतित विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है। लेखिका ने इस ग्रंथ के शास्त्रत्व से परे इसके सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक सरोकारों पर भी विस्तार से प्रकाश डाला है।

वक्ताओं ने यह भी कहा कि नाट्यशास्त्र महज रंगमंच का मार्गदर्शक ग्रंथ नहीं, बल्कि यह जीवनदर्शन, नैतिक मूल्यों और धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष के संतुलन का सांस्कृतिक दर्पण है। इस ग्रंथ का उद्देश्य केवल ‘मनोरंजन’ नहीं, बल्कि ‘लोकमंगल’ है।


लेखिका शालिनी चतुर्वेदी: कला के माध्यम से समाजोत्थान की अग्रदूत

इस पुस्तक की लेखिका श्रीमती शालिनी चतुर्वेदी हैं, जो पिछले तीन दशकों से झारखंड की आदिवासी एवं वंचित बालिकाओं को नि:शुल्क कथक नृत्य का प्रशिक्षण देकर उन्हें सांस्कृतिक आत्मनिर्भरता और आत्मगौरव से जोड़ रही हैं। उनकी संस्था शुभ संस्कार क्रिएटिव डांस अकादमी देश में सांस्कृतिक समावेशन और भारतीय मूल्यों के पुनर्प्रतिष्ठान की दिशा में अनुकरणीय कार्य कर रही है।

शालिनी जी को सी.सी.आर.टी. (C.C.R.T.) से सीनियर फेलोशिप प्राप्त है और उन्होंने दुर्गा सप्तशती, शिव तांडव, राम की शक्तिपूजा, गीत गोविंद, कृष्ण लीला जैसी नृत्य नाटिकाओं का देश-विदेश में मंचन किया है। उन्होंने G-20 संस्कृत सम्मेलन, काशी महोत्सव, श्रीराम मंदिर उद्घाटन, महाकुंभ जैसे वैश्विक आयोजनों में भी भागीदारी निभाई है।


समारोह में वक्ताओं की मुख्य बातें

गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा:
नाट्यशास्त्र जैसे ग्रंथों की समकालीन व्याख्या और उनकी जन-सुलभ प्रस्तुति भारतीय सांस्कृतिक आत्मा के पुनरुत्थान की दिशा में अत्यंत महत्वपूर्ण कदम है। हमारा मंत्रालय ऐसे प्रयासों को समर्थन देगा।”

सुनील देवधर ने कहा:
“भारतीय ग्रंथों की वैज्ञानिक, कलात्मक और सामाजिक गहराई आज वैश्विक विमर्श का हिस्सा बन रही है। नाट्यशास्त्र यह सिद्ध करता है कि हमारी परंपरा केवल धर्म तक सीमित नहीं, बल्कि पूर्ण जीवन दृष्टि को अभिव्यक्त करती है।”

पुस्तक की विशिष्टता और उपयोगिता

यह पुस्तक केवल अध्येताओं के लिए नहीं, बल्कि कलाकारों, रंगकर्मियों, संगीतकारों, शिक्षकों और संस्कृति से जुड़े सामान्य पाठकों के लिए भी एक दिशा-निर्देशक ग्रंथ है।

इसमें नाट्यशास्त्र की सामाजिक उपयोगिता, इसकी आधुनिकता, और भारतीय सांस्कृतिक चेतना में इसकी केंद्रीय भूमिका पर गहराई से चर्चा की गई है।

पुस्तक भारतीय सांस्कृतिक नवजागरण की उस सतत यात्रा का प्रतीक है, जो अपनी जड़ों को आधुनिक समय से जोड़ने का प्रयास कर रही है।


परंपरा का पुनर्पाठ, आधुनिकता से संवाद

‘नाट्यशास्त्र : एक अनुशीलन’ न केवल एक ग्रंथ का गूढ़ पाठ है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक आंदोलन का प्रारंभ भी है, जो भारतीय दर्शन, कला और आत्मबोध को जनमानस के बीच पुनर्स्थापित करने का सशक्त प्रयास है। शालिनी चतुर्वेदी जैसे साहित्यकर्मी एवं कलाकार इस विचार-यात्रा के पथ-प्रदर्शक बन रहे हैं।

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