प्रमुख मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद (एएम) के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि देशप्रेम और देश की पूजा—दो अलग बातें हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि वंदे मातरम् से जुड़े धार्मिक और ऐतिहासिक पहलुओं का उपयोग किसी भी राजनीतिक उद्देश्य के लिए नहीं होना चाहिए।
संगठन की ओर से जारी बयान में मौलाना मदनी ने स्पष्ट किया कि इस्लाम में एकेश्वरवाद सर्वोच्च सिद्धांत है। उन्होंने कहा कि मुसलमान किसी के वंदे मातरम् गाने पर आपत्ति नहीं करते, लेकिन कुछ पंक्तियाँ ऐसी हैं जो इस्लामी आस्था से मेल नहीं खातीं।
उन्होंने कहा कि कविता के कुछ अंतरों में मातृभूमि को देवी रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो इस्लामी मान्यता के विरुद्ध है, क्योंकि मुसलमान अल्लाह के सिवा किसी की उपासना नहीं कर सकता।
संवैधानिक स्वतंत्रता पर जोर
मदनी ने कहा कि भारतीय संविधान हर नागरिक को धार्मिक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि किसी भी नागरिक को ऐसा गीत या नारा बोलने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता जो उसकी धार्मिक मान्यता के खिलाफ हो।
“मुसलमानों को देश से मोहब्बत पर सबूत देने की जरूरत नहीं”
उन्होंने कहा कि वतन से प्रेम और उसकी पूजा दो अलग बातें हैं। “इस देश से मुसलमानों की मोहब्बत किसी प्रमाण-पत्र की मोहताज नहीं है,” उन्होंने कहा।
मदनी ने याद दिलाया कि आज़ादी की लड़ाई में मुसलमानों और जमीयत उलेमा-ए-हिंद की भूमिका इतिहास में दर्ज है, और संगठन ने 1919 से ही देश के बंटवारे का विरोध किया है।
सभी दलों से जिम्मेदार रवैये की अपील
मौलाना मदनी ने सभी राजनीतिक दलों से आग्रह किया कि वंदे मातरम् जैसे संवेदनशील मुद्दों को चुनावी लाभ के लिए न इस्तेमाल करें। उन्होंने कहा कि यह बहस धार्मिक आस्थाओं के सम्मान और संवैधानिक अधिकारों के दायरे में रहनी चाहिए, ताकि देश में आपसी सम्मान, सद्भाव और एकता को मजबूत किया जा सके।
लोकसभा और राज्यसभा में राष्ट्रीय गीत के 150 वर्ष पूरे होने के अवसर पर हाल ही में वंदे मातरम् पर विशेष चर्चा हुई।














