मुंबई | 30 जून 2025 — महाराष्ट्र सरकार ने कक्षा 1 से हिंदी भाषा को अनिवार्य करने का अपना निर्णय आखिरकार वापस ले लिया है। यह फैसला केवल शैक्षणिक नहीं, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक दबावों के कारण लिया गया है। जनता के तीव्र विरोध, विपक्षी दलों के आंदोलन और मराठी अस्मिता के सवाल ने राज्य की राजनीति को झकझोर कर रख दिया। अब सरकार ने स्पष्ट किया है कि त्रिभाषा फॉर्मूले पर आगे की कार्यवाही एक विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों के बाद ही होगी।
जनता की जीत, सत्ता की हार
राज्य सरकार ने 16 अप्रैल और 17 जून 2025 को जारी दोनों सरकारी आदेश (GRs) को रद्द कर दिया है। यह कदम तब उठाया गया जब विपक्षी दलों—शिवसेना (उद्धव गुट), महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे), कांग्रेस और अन्य सामाजिक संगठनों—ने 5 जुलाई को मुंबई में विशाल विरोध मार्च का ऐलान कर दिया था। अब यह विरोध मार्च ‘विजय मार्च’ में तब्दील कर दिया गया है।
उद्धव ठाकरे ने इसे मराठी अस्मिता की जीत बताया और कहा,
“मराठी लोगों की ताकत के सामने सत्ता की ताकत हार गई है। जबरन थोपी गई भाषा नीति को जनता ने नकार दिया है।”
मराठी एकता की राजनीति: ठाकरे बनाम ठाकरे नहीं, अब साथ-साथ
यह आंदोलन एक और मायने में ऐतिहासिक रहा—उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे पहली बार मराठी अस्मिता के मुद्दे पर एकजुट हुए। लंबे समय से एक-दूसरे के राजनीतिक प्रतिद्वंदी रहे दोनों नेताओं ने इस बार साझा रणनीति बनाई और यह साफ संदेश दिया कि मराठी भाषा और संस्कृति से कोई समझौता नहीं होगा।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस मुद्दे पर बनी एकता आने वाले निकाय और विधानसभा चुनावों में महागठबंधन के लिए नई ऊर्जा बन सकती है।
सरकार का यू-टर्न: कैसे टूटा दबाव में संतुलन
राज्य सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के तहत त्रिभाषा फॉर्मूले की आड़ में हिंदी को पहली कक्षा से अनिवार्य विषय घोषित किया था। लेकिन इसे “मराठी पर हिंदी थोपने” के रूप में देखा गया। शिक्षाविदों, माता-पिता, छात्रों और मराठी संगठनों ने इसे खारिज कर दिया। सोशल मीडिया से लेकर सड़कों तक विरोध की लहर दौड़ गई। “हिंदी किताबों की होलिका” जलाना जैसे सांकेतिक प्रदर्शन सरकार पर बड़ा दबाव बनाते गए।
विपक्ष ने इस मुद्दे को मराठी अस्मिता से जोड़कर जनता के बीच ले जाने में सफलता पाई। ठाकरे भाइयों की एकता ने इस विरोध को जनआंदोलन का रूप दे दिया।
निकाय चुनाव और सियासी समीकरण
लोकसभा चुनावों में करारी हार के बाद राज्य की महाविकास अघाड़ी (एमवीए) के लिए यह एक मौका था अपनी साख वापस पाने का। दूसरी तरफ महायुति सरकार (भाजपा, शिंदे गुट, अजित पवार की एनसीपी) निकाय चुनावों से पहले किसी नए विवाद में नहीं फंसना चाहती थी। इसीलिए सरकार ने समय रहते कदम पीछे खींच लिया।
अब आगे क्या? समिति तय करेगी भविष्य
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने घोषणा की है कि अब त्रिभाषा फॉर्मूले पर निर्णय एक विशेषज्ञ समिति के सुझावों के आधार पर लिया जाएगा। इस समिति की अध्यक्षता प्रसिद्ध शिक्षाविद् डॉ. नरेंद्र जाधव करेंगे। यह समिति तय करेगी कि त्रिभाषा फॉर्मूला किस कक्षा से लागू हो, और हिंदी के अलावा छात्रों को किन-किन भाषाओं के विकल्प दिए जाएं।
अस्मिता की जीत, सत्ता की सीख
महाराष्ट्र में यह प्रकरण दिखाता है कि भाषा और अस्मिता के मुद्दे केवल भावनात्मक नहीं, बल्कि राजनीतिक चेतना से भी जुड़े होते हैं। यह केवल सरकार के फैसले का पलटा जाना नहीं, बल्कि उस लोकतांत्रिक चेतना की जीत है जो जबरदस्ती और थोपने के खिलाफ उठ खड़ी होती है।