किश्तवाड़/जम्मू — रिपोर्ट: जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले के चिसौती गाँव में 14 अगस्त की रात आए भयंकर बादल-फटने (cloudburst) की तबाही का खाका अभी भी साफ़ नहीं हुआ है। हादसे के दसवें दिन भी बचाव-तلاش अभियान जारी है और दूर-दराज की धाराओं में शव और मलबा निकाले जा रहे हैं। इस प्राकृतिक आपदा में दर्जनों लोग मृत, सैकड़ों घायल और दर्जनों लापता हैं — प्रशासन और सेना लगातार खोज अभियान चला रहे हैं।
आज रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह बाढ़-प्रभावित इलाकों का जायज़ा लेने किश्तवाड़ पहुँचे और उन्होंने जम्मू के मेडिकल कॉलेज (GMC) में भर्ती घायलों से मुलाकात की। उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री घटना से चिंतित हैं, वे स्थिति जानने आए हैं और मौसम खराब होने के कारण फिलहाल घटनास्थल तक जाना संभव नहीं हो पाया। (मौसम व भूस्खलन के कारण गाड़ियाँ आगे नहीं बढ़ पा रही हैं)।
जांच-रिपोर्ट और प्रभावितों की स्थिति — प्रशासन की जानकारी के अनुसार अब तक मृतकों की संख्या बढ़कर 65 आ गई है, जबकि 100 से अधिक लोग घायल हैं और 32 लोग अभी भी लापता बताए जा रहे हैं; खोज-बचाव की आशा कम दिखाई दे रही है और टीमों का फोकस मलबे में दफ्न लोगों की खोज तथा शवों को निकाले जाने पर है। राहत-आपूर्ति और चिकित्सा सुविधाएँ तैनात की गई हैं।
GMC जम्मू में भर्ती घायलों की हालत पर अधिकारियों ने बताया कि करीब 75 मरीजों का इलाज चल रहा था और उनमें से कुछ की हालत नाज़ुक थी, पर डॉक्टरों की टीम लगातार उनका उपचार कर रही है। रक्षा मंत्री ने मेडिकल टीम की तारीफ़ की और कहा कि घायलों की हालत अब बेहतर है तथा कईयों को खतरे से बाहर बताया गया।
उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने प्रभावितों के समुचित पुनर्वास का आश्वासन दिया और कहा कि सरकार बचाव, राहत और पुनर्वास के कामों में पूरी तरह लगी है। प्रशासन ने अब तक प्रभावितों के राहत एवं पुनर्वास पर ₹4.13 करोड़ आवंटित करने की जानकारी दी है; केंद्र और जम्मू-कश्मीर प्रशासन मिलकर प्रभावितों के दीर्घकालिक पुनर्वास का इंतज़ाम करेंगे।
मौसम और भौगोलिक कठिनाइयाँ बचाव-कार्य को चुनौती दे रही हैं — तेज़ बारिश, कीचड़ और बहती नदियाँ रास्ते नष्ट कर रही हैं और कई मार्ग बंद हैं। इस कारण सेना, NDRF, स्थानीय प्रशासन और पुलिस के संयुक्त दल पर्वतीय नदी-धाराओं और मलबे में फंसे लोगों की खोज कर रहे हैं; परिक्षेत्र दूर और ऊँचा होने से रेस्क्यू ऑपरेशन धीमा चल रहा है।
स्थानीय समुदाय ग्रसित हैं — घर मलबे में तब्दील, कई परिवारों के घर नष्ट और अनगिनत तीर्थयात्रियों व स्थानीय लोगों का जीवन प्रभावित हुआ है। प्रशासन ने तात्कालिक सहायता-कम्पोनेंट (खाद्य, अस्थायी आवास, मेडिकल किट) और शवों की शिनाख्त तथा परिजनों को सूचना देने के प्रयास तेज़ कर दिए हैं।
#WATCH | जम्मू: रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा, “मैं किश्तवाड़ में जो घटना घटी थी उसके घायलों को देखने आया था। प्रधानमंत्री भी घटना को लेकर चिंतित हैं और स्थिति जानना चाहते थे, इसलिए मैं यहां आया हूं। मैं घटनास्थल पर जाना चाहता था लेकिन खराब मौसम के कारण वहां जाना संभव नहीं… pic.twitter.com/xP71nkMIhV
— ANI_HindiNews (@AHindinews) August 24, 2025
क्या होना चाहिए — तीन तात्कालिक प्राथमिकताएँ
खोज-बचाव में तेजी: मौसम जैसा ही सहत बने, उच्च-प्राथमिकता से ड्रोन, बेल्फ़्रिज-डिवाइस और ऊँची-क्षेत्र की विशेषज्ञ टीम भेजना।
तुरंत चिकित्सा एवं शोक-सहायता: गंभीर घायलों के लिए एयर-एम्बुलेंस व विशेषज्ञ चिकित्सक की तैनाती। मानसिक स्वास्थ्य के लिए काउंसलिंग।
दीर्घकालिक पुनर्वास योजना: अस्थायी आवास से आगे, प्रभावित परिवारों के पुनर्वास, आजीविका-पुनरुद्धार और सड़क-पुल पुनर्निर्माण की स्पष्ट रूपरेखा।
असर और सवाल
किश्तवाड़ी बादल-फटना केवल एक प्रकृतिक आपदा नहीं; यह हिमालयी-क्षेत्रों की बढ़ती संवेदनशीलता और प्रारम्भिक चेतावनी तंत्रों की कमी का संकेत भी है। जितना जल्द जाँच-विश्लेषण (मौसम व जलस्रोतों की गतिविधि) होगा, उतना ही बेहतर भविष्य में रोकथाम व तैयारी की नीति बन सकेगी। फिलहाल प्राथमिक जोर खोज-बचाव और प्रभावितों की ज़िन्दगी बचाने पर होना चाहिए — और केंद्र-प्रदेश मिलकर दीर्घकालिक पुनर्वास सुनिश्चित करें।