इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस समीर जैन ने समाजवादी पार्टी नेता आज़म ख़ान से जुड़े सभी मामलों की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है। जस्टिस जैन की बेंच में आज़म से जुड़े चार मामले लगाए गए थे, लेकिन उन्होंने कहा कि वे इन मामलों की सुनवाई नहीं करेंगे। उन्होंने इस फैसले की कोई वजह नहीं बताई।
यतीमखाना केस: 2016 की कार्रवाई पर गंभीर आरोप
यतीमखाना (वक्फ संपत्ति) मामले में आरोप है कि 2016 में सपा सरकार के दौरान आज़म ख़ान के निर्देश पर रामपुर में गरीबों की बस्ती को जबरन खाली कराया गया था।
पीड़ितों का आरोप है कि आज़म के लोगों ने कार्रवाई के दौरान बकरियां और मुर्गे तक उठा लिए, जबकि पुलिस भी मौके पर मौजूद थी, इसलिए शिकायत पर तत्काल कार्रवाई नहीं हुई।
इस घटना से जुड़ी कुल 12 एफआईआर बाद में दर्ज हुईं, जिन्हें ट्रायल कोर्ट में एक साथ चलाया जा रहा है। हाई कोर्ट ने हाल ही में इस केस में ट्रायल कोर्ट द्वारा अंतिम निर्णय देने पर रोक लगा दी थी और कहा था कि सुनवाई पूरी होने के बाद ही फैसला सुनाया जाए।
पैन कार्ड फर्जीवाड़ा मामला: आज़म और अब्दुल्ला को 7 साल की सज़ा
कुछ ही दिनों पहले रामपुर की MP/MLA कोर्ट ने आज़म ख़ान और उनके बेटे अब्दुल्ला आज़म को दो पैन कार्ड बनवाने के मामले में दोषी करार दिया है।
अब्दुल्ला पर आरोप है कि उन्होंने दो अलग-अलग जन्म तिथियों—
1 जनवरी 1993
30 सितंबर 1990
के आधार पर दो पैन कार्ड बनवाए।
कोर्ट ने इसे धोखाधड़ी, जालसाज़ी और साजिश का मामला मानते हुए दोनों को 7 साल की कैद की सज़ा सुनाई। फैसला सुनने के बाद दोनों को रामपुर जेल भेज दिया गया।
शिकायत विधायक आकाश सक्सेना ने दर्ज कराई थी
यह पूरा पैन कार्ड विवाद 2019 में शुरू हुआ था, जब रामपुर के विधायक आकाश सक्सेना ने शिकायत दर्ज कराई थी।
उन्होंने आरोप लगाया था कि गलत दस्तावेज़ों के आधार पर बनाए गए पैन कार्ड में आज़म ख़ान की भूमिका थी, इसलिए उन्हें भी आरोपी बनाना जरूरी था।
कई मामलों में फंसे हैं आज़म खान
आज़म ख़ान पर यतीमखाना केस से लेकर दस्तावेज़ी गड़बड़ी तक कई मामले दर्ज हैं। कुछ पुराने मामलों में वह बरी हो चुके हैं, जबकि कई में सजा पा चुके हैं। पैन कार्ड केस में मिली हालिया सजा के बाद उनकी कानूनी मुश्किलें और बढ़ गई हैं।














