मध्यप्रदेश के जबलपुर की उत्तर मध्य विधानसभा से विधायक अभिलाष पांडे ने शुक्रवार को विधानसभा में बच्चों में तेजी से बढ़ रही मोबाइल और इंटरनेट की लत का गंभीर मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि डिजिटल एडिक्शन अब किसी एक परिवार या शहर की नहीं, बल्कि पूरे देश के हर घर की चिंता बन चुका है।
विधायक पांडे ने बताया कि 14 से 18 वर्ष की आयु के बच्चों में मोबाइल, गेमिंग और शॉर्ट वीडियो की आदत चिंताजनक गति से बढ़ रही है, जो भविष्य में बड़े सामाजिक और मानसिक संकट का कारण बन सकती है।
उन्होंने कहा कि “आज स्थिति यह है कि बच्चे मोबाइल देखे बिना खाना तक नहीं खाते। रील, गेम और तेज़-रंगीन वीडियो लगातार देखने से उनके मस्तिष्क में डोपामिन का स्तर बढ़ता है, जिससे वे तात्कालिक सुख के आदी हो जाते हैं और धीरे-धीरे डिजिटल दुनिया में खोते जा रहे हैं।”
AI व शॉर्ट वीडियो ने बढ़ाया खतरा
पांडे ने चेतावनी देते हुए कहा कि AI, मेटा प्लेटफ़ॉर्म और अत्यधिक शॉर्ट वीडियो आधारित कंटेंट बच्चों की डिजिटल लत को और गहरा कर रहा है। एल्गोरिद्म एक बार देखी गई सामग्री को लगातार दोहराता है, जिससे बच्चा एक तरह के डिजिटल जाल में फँस जाता है।
बढ़ती आंखों की बीमारियों पर चिंता
विधायक ने एम्स की रिपोर्ट का उल्लेख करते हुए बताया कि मायोपिया (आंखों की नंबर आने की समस्या) बच्चों में तेजी से बढ़ रही है।
दिल्ली में 2001 में मायोपिया के मामले 7% थे
2011 में बढ़कर 14% हुए
और 2021 में यह आंकड़ा 21% तक पहुंच गया
पहले यह समस्या 18–20 वर्ष की उम्र में सामने आती थी, लेकिन अब 10–12 साल के बच्चों में आम हो रही है।
उन्होंने यह भी बताया कि भारत में 87% लोग गैजेट उपयोग करते हैं, जबकि 10–14 साल की उम्र के 83% बच्चे मोबाइल का इस्तेमाल कर रहे हैं, जो वैश्विक औसत (76%) से काफी अधिक है।
बाहर न खेलने और मानसिक समस्याओं का बढ़ना चिंता का कारण
विधायक ने कहा कि डिजिटल लत के कारण बच्चे घर से बाहर खेल नहीं रहे, परिवार से संवाद कम हो रहा है और उनमें चिड़चिड़ापन, एकांतप्रियता और अवसाद जैसी समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ‘पंच परिवर्तन’ और ‘कुटुंब प्रबोधन’ की अवधारणाओं को इस संदर्भ में महत्वपूर्ण बताया और संयुक्त परिवार व्यवस्था को समाधान का एक प्रमुख आधार माना।
प्रधानमंत्री की ‘मन की बात’ का उल्लेख
पांडे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ‘मन की बात’ में परिवारों को No Gadget Zone बनाने की दी गई सलाह को याद करते हुए कहा कि आज यह अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने एक ट्रेन का उदाहरण देते हुए बताया कि एक तीन वर्ष के बच्चे को खाना खिलाने के लिए चार लोग लगे थे—मां खाना खिला रही थी, भाई मोबाइल दिखा रहा था और दादा-दादी उसे मनाने में जुटे थे।
उन्होंने कहा कि यह दृश्य आज लाखों परिवारों की वास्तविकता बन चुका है।
राज्य में ‘No Gadget Zone’ अभियान चलाने की मांग
विधायक ने सुझाव दिया कि स्वास्थ्य, शिक्षा और महिला एवं बाल विकास विभाग मिलकर डिजिटल एडिक्शन पर एक व्यापक और प्रभावी नीति बनाएँ। उन्होंने गाजियाबाद के मुख्य चिकित्सा अधिकारी द्वारा बच्चों के मोबाइल उपयोग पर जारी एडवाइजरी का हवाला देते हुए कहा कि मध्यप्रदेश में भी इसी तरह की कठोर एडवाइजरी जारी करनी चाहिए।
अंत में, उन्होंने मंत्री से आग्रह किया कि राज्य स्तर पर No Gadget Zone को बढ़ावा देने के लिए विशेष जन-जागरूकता अभियान चलाया जाए, डिजिटल लत पर कठोर दिशानिर्देश जारी किए जाएँ और आवश्यकता पड़े तो कानून बनाकर इस गंभीर समस्या पर प्रभावी नियंत्रण किया जाए।














