
नई दिल्ली भारत, एक ऐसा देश जहाँ हर त्योहार सिर्फ एक धर्म तक सीमित नहीं रहता, बल्कि समाज के हर वर्ग के बीच अपनी मिठास और भाईचारे का संदेश देता है। यहाँ होली सिर्फ हिंदुओं का नहीं, बल्कि हर रंग पसंद करने वाले का त्योहार है। इसी तरह, जुमा सिर्फ मुसलमानों के लिए नहीं, बल्कि हर उस शख्स के लिए महत्वपूर्ण दिन है, जो इबादत और इंसानियत में विश्वास रखता है।
लेकिन जब 25 मार्च 2024 को होली और जुमा एक ही दिन आए, तो यह कोई नई बात नहीं थी। 1952, 1958, 1969, 1975, 1980, 1986, 1997, 2003, 2008, 2013 और 2019 में भी ऐसा हुआ था। तब किसी ने इसे “धर्म के टकराव” का नाम नहीं दिया, किसी ने इसे साजिश नहीं बताया, नफरत की सियासत नहीं खेली गई। फिर इस बार ऐसा क्या बदला कि अचानक यह मुद्दा बनने लगा?
सोशल मीडिया की “फैक्ट्री” फिर हुई सक्रिय
जैसे ही कैलेंडर ने यह इत्तेफाक दिखाया, वैसे ही कुछ लोगों की उंगलियाँ मोबाइल स्क्रीन पर नफरत फैलाने के लिए तैयार हो गईं।
सोशल मीडिया पर अफवाहों का बवंडर खड़ा कर दिया गया—
• “होली के जश्न में नमाज़ की तौहीन हो जाएगी!”
• “एक धर्म के त्योहार की वजह से दूसरे की इबादत में रुकावट होगी!”
• “इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ!”
और देखते ही देखते, ये झूठी कहानियाँ “ब्रेकिंग न्यूज़” की तरह फैलाई जाने लगीं।
गुलाल में जहर घोलने की कोशिश
हमेशा की तरह, इस बार भी कुछ लोगों ने इस मौके को नफरत फैलाने का जरिया बनाने की ठानी। सोशल मीडिया पर पोस्ट लिखे जाने लगे, जिसमें ये जताने की कोशिश हुई कि देश में धार्मिक सहिष्णुता अब खतरे में है।
लेकिन जब इतिहास की किताबें खोलकर देखा गया, तो यह सारी साजिश बेनकाब हो गई। यह पहली बार नहीं था जब होली और जुमा एक ही दिन पड़े थे। मंदिरों में भजन भी हुए थे, मस्जिदों में नमाज भी अदा हुई थी। रंग भी उड़े थे, दुआएं भी हुई थीं।
“वोट बैंक पॉलिटिक्स” का नया रंग
किसी भी संवेदनशील मौके को राजनीतिक रंग देने वालों के लिए यह मौका सुनहरा था।
• कुछ नेताओं ने इसे धर्म से जोड़कर अपनी सियासत चमकाने की कोशिश की।
• कुछ संगठनों ने इसे एक “साजिश” के रूप में प्रचारित किया।
• कुछ मीडिया चैनलों ने इसे सनसनीखेज़ बना दिया, मानो देश में पहली बार ऐसा हुआ हो।
लेकिन असली भारत ने अपनी परिपक्वता दिखाई।
देशवासियों ने दिया करारा जवाब
हर बार की तरह, इस बार भी देशवासियों ने दिखा दिया कि नफरत फैलाने वालों से ज्यादा ताकत मोहब्बत करने वालों की होती है।
• होली खेलकर कई लोगों ने मस्जिदों में वुजू किया और जुमे की नमाज़ अदा की।
• मस्जिदों से निकले लोग अपने हिंदू दोस्तों को गुलाल लगाते नजर आए।
• सोशल मीडिया पर अफवाहें उड़ाने वालों को लोगों ने ही जवाब देकर चुप करा दिया।
सवाल अब भी कायम है…
अब बड़ा सवाल यह है कि जब 1952 से लेकर 2019 तक यह कोई मुद्दा नहीं था, तो 2024 में यह मुद्दा क्यों बना?
• क्या यह एक सुनियोजित साजिश थी?
• क्या यह “ध्यान भटकाने” का तरीका था?
• क्या यह सिर्फ एक खास तरह की राजनीति को बढ़ावा देने के लिए किया गया?
जो भी हो, देशवासियों ने इस बार भी दिखा दिया कि भारत नफरत से नहीं, प्रेम और सद्भाव से चलता है।
तो आखिर में…
होली की पहचान रंगों से है, न कि किसी साजिश से।
जुमा की पहचान इबादत से है, न कि किसी विवाद से।
और भारत की पहचान भाईचारे से है, न कि नफरत से।
तो सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाएँ, रमज़ान की मुबारकबाद, और यह याद रखने की जरूरत कि यह देश “गुलाल” को पसंद करता है, “गुबार” को नहीं।

VIKAS TRIPATHI
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