
“पहाड़ कांप रहे हैं, लेकिन सुन कौन रहा है?”
उत्तराखंड के चमोली जिले में चार साल में दूसरी बार ग्लेशियर टूटने से तबाही मची है। 28 फरवरी 2025 को नंदा देवी चोटी से टूटे ग्लेशियर ने ऋषि गंगा और धौली गंगा में बाढ़ ला दी, जिससे अब तक 33 मजदूरों को बचाया गया, लेकिन 22 अभी भी फंसे हुए हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी मौके पर पहुंचकर इसे “प्राकृतिक आपदा” बता चुके हैं, ठीक वैसे ही जैसे 2021 में तब के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा था।
पर सवाल यह है कि क्या यह सिर्फ “प्राकृतिक आपदा” है, या इंसानों की विकास के नाम पर पहाड़ों से की गई छेड़छाड़ का परिणाम?
क्या यह सिर्फ कुदरत का कहर है?
• 7 फरवरी 2021 को चमोली में ही धौली गंगा में ग्लेशियर गिरा था, जिसने विष्णुगाड हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट को तबाह कर दिया था।
• अब 28 फरवरी 2025 को नंदा देवी का ग्लेशियर टूटा, जिससे फिर तबाही मची।
• लगातार सड़क निर्माण, पहाड़ों की कटाई और जलविद्युत परियोजनाओं से हिमालय की स्थिरता प्रभावित हो रही है।
पर्यावरणविद बरसों से चेतावनी दे रहे हैं कि हिमालय के कच्चे पहाड़ इतने भारी विकास को सहन नहीं कर सकते। लेकिन चार धाम ऑल-वेदर रोड, हाइड्रो प्रोजेक्ट्स, और खनन गतिविधियां जारी हैं।
“विकास” का कड़वा सच
उत्तराखंड में चार धाम सड़क परियोजना के तहत 900 किमी लंबी सड़कें बनाई जा रही हैं।
• पहाड़ों को तोड़ा जा रहा है, जिससे भूस्खलन और हिमस्खलन बढ़ गए हैं।
• पेड़ काटे जा रहे हैं, जिससे हिमालय की जलवायु असंतुलित हो रही है।
• खनन और निर्माण गतिविधियों से कंपन बढ़ रहे हैं, जिससे ग्लेशियर तेजी से खिसक रहे हैं।
कहते हैं, “हिमालय बोलता नहीं, पर जब गुस्से में आता है, तो पूरी दुनिया हिल जाती है।”
क्या हमने 2013 की केदारनाथ त्रासदी से कुछ सीखा?
16 जून 2013 को आई केदारनाथ आपदा में 5000 से ज्यादा लोग मारे गए थे।
• तब अंधाधुंध निर्माण, पेड़ों की कटाई और जलविद्युत परियोजनाओं को इसकी वजह बताया गया था।
• सरकारों ने कहा था “अब ऐसा नहीं होगा” लेकिन 2021 में चमोली में फिर ग्लेशियर टूटा।
• 2025 में फिर वही कहानी दोहराई गई।
तो क्या अब भी इसे “प्राकृतिक आपदा” मानकर छोड़ दिया जाएगा?
जब प्रकृति सवाल पूछती है, जवाब देना मुश्किल होता है
• अगर ग्लोबल वॉर्मिंग का असर बढ़ रहा है, तो क्यों लगातार बड़े प्रोजेक्ट्स को मंजूरी दी जा रही है?
• अगर फरवरी में इतनी गर्मी पड़ी कि 74 साल का रिकॉर्ड टूट गया, तो क्या वाकई यह सिर्फ संयोग है?
• जब अमेरिका, कनाडा, यूरोप में रिकॉर्ड तोड़ बर्फबारी हो रही है, तो हिमालय में बर्फ क्यों कम हो रही है?
किसी भी प्राकृतिक आपदा को सिर्फ “कुदरत का गुस्सा” कहकर टालना आसान बहाना है। असलियत यह है कि हम खुद अपने हाथों से अपने विनाश की स्क्रिप्ट लिख रहे हैं।
कब तक हम यह सब झेलते रहेंगे?
उत्तराखंड को “देवभूमि” कहा जाता है, लेकिन यहां हर कुछ सालों में एक बड़ी आपदा आती है, लोग मरते हैं, सड़कें बह जाती हैं, पुल टूट जाते हैं और सरकारें फिर से वही बयान देती हैं।
कहते हैं, “प्रकृति माफ़ तो कर सकती है, लेकिन भूलती नहीं।”
अगर हमने अब भी नहीं सीखा, तो अगला हादसा और भी बड़ा होगा।
क्या करना चाहिए?
• हिमालय में अनियंत्रित निर्माण कार्यों पर रोक लगानी होगी।
• बड़े प्रोजेक्ट्स से पहले पर्यावरणीय प्रभाव आंकलन (EIA) की सख्त समीक्षा करनी होगी।
• जलवायु परिवर्तन के असर को गंभीरता से लेना होगा।
• पहाड़ों की जैव विविधता और वन संरक्षण को प्राथमिकता देनी होगी।
वरना, एक दिन पहाड़ हमारे साथ नहीं होंगे, और न ही हम इस धरती पर