Tuesday, July 1, 2025
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गुकेश: ‘शतरंज का बादशाह’ बनने की प्रेरणादायक कहानी, पिता ने छोड़ा करियर, बचपन के सपने को किया पूरा

D Gukesh Struggle Story In Hindi:
18 साल के डी गुकेश ने गुरुवार को इतिहास रचते हुए चीन के डिंग लिरेन को हराकर वर्ल्ड चेस चैंपियन का खिताब अपने नाम कर लिया है। इस कामयाबी के साथ ही वह इतने कम उम्र में वर्ल्ड चेस चैंपियन बनने वाले इतिहास के सबसे कम उम्र के खिलाड़ी बन गए हैं।

गुकेश का यह सफर आसान नहीं था। शतरंज की दुनिया के इस बादशाह को यहां तक पहुंचाने में उनके माता-पिता का बहुत बड़ा योगदान रहा है। उनके पिता रजनीकांत ने अपने बेटे के सपने को साकार करने के लिए अपना करियर तक छोड़ दिया। वहीं, उनकी मां पद्मा ने घर की पूरी जिम्मेदारी संभालकर इस सपने को मजबूत किया।

सबसे कम उम्र के वर्ल्ड चेस चैंपियन बने गुकेश
ग्रैंडमास्टर डी गुकेश ने खिताबी मैच की 14वीं बाजी में डिंग लिरेन को शिकस्त दी। वह विश्वनाथन आनंद के बाद यह खिताब जीतने वाले दूसरे भारतीय बन गए हैं। इस ऐतिहासिक जीत के साथ गुकेश को 13 लाख डॉलर (करीब 11.03 करोड़ रुपये) की बंपर प्राइज मनी भी मिली।

“मुझे जीत की उम्मीद नहीं थी” – डी गुकेश
अपनी ऐतिहासिक जीत के बाद गुकेश ने कहा, “मैं पिछले 10 सालों से इसका सपना देख रहा था। मुझे खुशी है कि मैंने इसे सच कर दिखाया। मैं भावुक हो गया था क्योंकि मुझे जीत की उम्मीद नहीं थी।”

गुकेश का प्रेरणादायक सफर
डी गुकेश का जन्म 29 मई 2006 को चेन्नई, तमिलनाडु में हुआ। उनके पिता रजनीकांत ईएनटी स्पेशलिस्ट डॉक्टर हैं, और मां पद्मा माइक्रोबायोलॉजी में डॉक्टर हैं। तेलुगू भाषी परिवार से ताल्लुक रखने वाले गुकेश ने महज 7 साल की उम्र में शतरंज खेलना शुरू कर दिया था।

अपने बेटे के करियर को प्राथमिकता देते हुए उनके पिता ने अपनी नौकरी छोड़ दी, ताकि गुकेश पूरी तरह से शतरंज पर ध्यान केंद्रित कर सकें।

9 साल की उम्र में जीता पहला खिताब
गुकेश ने 9 साल की उम्र में अपनी पहली चैंपियनशिप जीती। उन्होंने अंडर-9 एशियन स्कूल चेस चैंपियनशिप में जीत हासिल की। इसके तीन साल बाद अंडर-12 वर्ल्ड यूथ चेस चैंपियनशिप का खिताब अपने नाम किया।

12 साल की उम्र में, उन्होंने 2018 एशियन यूथ चेस चैंपियनशिप में 5 गोल्ड मेडल जीते। मार्च 2017 में इंटरनेशनल मास्टर टूर्नामेंट जीतने के साथ वह दुनिया के तीसरे सबसे युवा चेस ग्रैंड मास्टर बन गए।

गुकेश की इस कहानी से यह स्पष्ट है कि समर्पण, त्याग, और परिवार के साथ से बड़े सपनों को साकार किया जा सकता है।

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VIKAS TRIPATHI
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