
माणा | 29 फरवरी 2025
उत्तराखंड के चमोली जिले के माणा गांव में शुक्रवार सुबह एक बड़ा हादसा हुआ, जब सीमा सड़क संगठन (BRO) के कैंप पर ग्लेशियर टूटने से हिमस्खलन आ गया। इस आपदा में कुल 55 मजदूर फंस गए, जिनमें से 50 को सुरक्षित निकाल लिया गया, जबकि चार की मौत हो गई। राहत एवं बचाव कार्य अभी भी जारी है, और सेना, ITBP, NDRF तथा SDRF की टीमें लगातार प्रयास कर रही हैं।
ग्लेशियर टूटने से तबाही, सेना का रेस्क्यू ऑपरेशन जारी
भारतीय सेना के PRO लेफ्टिनेंट कर्नल मनीष श्रीवास्तव ने चार मजदूरों की मौत की पुष्टि की है। जबकि, सेना ने 14 अन्य नागरिकों को भी बचाया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से बात कर उन्हें केंद्र सरकार की ओर से हरसंभव मदद का आश्वासन दिया है।
रेस्क्यू ऑपरेशन में अब तक 19 घायलों को हेलिकॉप्टर से जोशीमठ पहुंचाया गया है। सेना के अनुसार, हिमस्खलन सुबह 5:30 से 6 बजे के बीच हुआ, जिससे BRO कैंप में मौजूद मजदूर बर्फ और मलबे के नीचे दब गए।
मौसम की चुनौती के बावजूद बचाव कार्य जारी
- शुक्रवार को भारी बर्फबारी और बारिश के कारण राहत अभियान बाधित हुआ।
- शनिवार सुबह मौसम साफ होते ही हेलीकॉप्टरों को रेस्क्यू ऑपरेशन में शामिल किया गया।
- NDRF ने 4 टीमें मौके पर भेजी हैं, जबकि 4 और टीमें स्टैंडबाय पर हैं।
- मध्य कमान के GOC-in-C लेफ्टिनेंट जनरल अनिंद्य सेनगुप्ता और उत्तर भारत क्षेत्र के GOC लेफ्टिनेंट जनरल डीजी मिश्रा ने मौके पर पहुंचकर बचाव कार्यों की समीक्षा की।
विशेष तकनीक और उपकरणों का इस्तेमाल
हिमस्खलन के बाद दबे लोगों को बचाने के लिए रेकॉ रडार, UAV (ड्रोन), क्वाडकॉप्टर और हिमस्खलन बचाव कुत्तों का उपयोग किया जा रहा है।
भारतीय सेना, ITBP और BRO ने आवश्यक उपकरण और संसाधन जुटाए हैं ताकि बर्फ और मलबे में दबे लोगों को जल्द से जल्द निकाला जा सके।
क्या यह सिर्फ प्राकृतिक आपदा है?
उत्तराखंड के ग्लेशियर बार-बार क्यों टूट रहे हैं? विशेषज्ञों का मानना है कि—
- ग्लोबल वॉर्मिंग: हिमालय में तापमान बढ़ने से ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं।
- अत्यधिक निर्माण कार्य: चारधाम सड़क परियोजना और जलविद्युत परियोजनाओं के कारण पहाड़ों का असंतुलित कटाव हो रहा है।
- भूस्खलन की बढ़ती घटनाएं: अनियंत्रित खनन और पर्यावरण से छेड़छाड़ भी हिमस्खलन का कारण बन रही है।
क्या सरकार पिछली आपदाओं से सबक नहीं ले रही?
2013 की केदारनाथ त्रासदी, 2021 का चमोली ग्लेशियर हादसा और अब 2025 की यह घटना बताती है कि उत्तराखंड में संवेदनशील इलाकों में हो रहे अनियंत्रित विकास को नजरअंदाज करना महंगा पड़ रहा है।
अब सवाल उठता है कि सरकार कब तक इसे “प्राकृतिक आपदा” कहकर टालती रहेगी? यदि विकास और पर्यावरण संरक्षण में संतुलन नहीं बनाया गया, तो हिमालयी क्षेत्र में भविष्य में और भी भयावह आपदाएं देखने को मिल सकती हैं।
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