मुंबई / दिल्ली,— नवरात्रि के ठीक पहले विश्व हिंदू परिषद (VHP) और इसके सहयोगी संगठन बजरंग दल द्वारा गरबा–डांडिया आयोजकों को दिए गए निर्देशों ने नया विवाद खड़ा कर दिया है। इन निर्देशों में कहा गया है कि पंडालों में केवल हिंदुओं को प्रवेश दिया जाए और प्रवेश से पहले उपस्थित लोगों की आधार कार्ड जांच की जाए — उद्देश्य बताया गया है “लव-जिहाद” जैसी घटनाओं से बचाव। केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने इन आपत्तिजनक निर्देशों पर कड़ी आपत्ति जताई है और स्थानीय प्रशासन व पुलिस स्तर पर भी सतर्कता बढ़ा दी गई है।
VHP–बजरंग दल क्या कह रहे हैं — क्या माँगा गया है
VHP ने आयोजकों से कहा है कि गरबा पंडालों में प्रवेश धर्म के आधार पर सीमित रखा जाए। साथ ही आयोजकों को निर्देश दिये गये कि:
पंडाल में आने वालों से आधार कार्ड दिखवाएँ ताकि धर्म की पहचान सुनिश्चित की जा सके।
प्रवेश से पहले हर शख्स को तिलक लगवाना और देवी की पूजा कराना अनिवार्य रखा जाए।
पंडालों के मुख्य द्वार पर धार्मिक चिह्न/चित्र लगाए जाएँ, और गैर-हिंदुओं के प्रवेश पर रोक लगायी जाए।
कुछ मंडलों ने तो पंडाल परिसर में ऐसे पोस्टर्स भी लगाए, जिनमें स्पष्ट रूप से मुस्लिमों के प्रवेश पर रोक या “लव-जिहाद” चेतावनी लिखी हुई पाई गयी — यह जानकारी मुंबई के मालाड वेस्ट के डायमंड मार्किट मंडल के संदर्भ में मिली है।
रामदास अठावले की सख्त प्रतिक्रिया — “त्योहार का माहौल खराब होगा”
केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि ऐसा आह्वान समाज में हिंसा और विभाजन पैदा कर सकता है। उन्होंने चेतावनी दी कि त्योहारों को समरसता और शांति के साथ मनाया जाना चाहिए और किसी भी तरह के धार्मिक भेदभाव को प्रोत्साहित नहीं किया जाना चाहिए। अठावले ने आयोजकों को वैधानिक और संवैधानिक हदों का पालन करने की नसीहत दी है।
पुलिस और प्रशासन की स्थिति — सतर्कता और अनुमति व्यवस्था
स्थानीय पुलिस और प्रशासन ने फिलहाल कहा है कि वे स्थिति पर नजर रखे हुए हैं और कहीं भी शांति भंग होने की आशंका दिखने पर कड़ा कदम उठाया जाएगा। कई पंडाल समितियों ने पुलिस से अनुमति लेकर कार्यक्रम पंजीकृत कराये हैं — इनके नियमों का उल्लंघन पाए जाने पर प्रशासन हस्तक्षेप कर सकता है।
पुलिस के अधिकारियों ने मीडिया से कहा (अनाम स्रोत के हवाले), कि वे पहले से ही बढ़ती भीड़ प्रबंधन, पैदल मार्ग और सुरक्षा के साथ साथ सोशल मीडिया मॉनिटरिंग पर ध्यान दे रहे हैं ताकि किसी भी तरह के दंगाई तत्व को समय रहते रोका जा सके।
विधिक व संवैधानिक सवाल — क्या “धर्म-आधारित प्रवेश” वैध है?
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि सार्वजनिक जगहों पर किसी धर्म के लोगों को ही अनुमति देना संविधान के समता (Article 14) और धार्मिक स्वतंत्रता (Article 25) के सिद्धांतों के खिलाफ हो सकता है। साथ ही, Aadhaar की मांग और उसकी जाँच से जुड़े प्रश्न भी खड़े होते हैं — आधार कार्ड का उपयोग किस परिस्थिति में वैध है और निजी आयोजक उसे जबरन मांग सकते हैं या नहीं, इस पर UIDAI तथा सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन आवश्यक है। निजी आयोजक बिना विधिक आधार के किसी की पहचान के लिये आधार डेटा स्टोर/रखा भी नहीं सकते — इसलिए आयोजकों की ओर से पहचान-प्रक्रिया लागू करने से पहले कानूनी सलाह और प्रशासनिक अनुमति जरूरी होगी।
समाजिक प्रतिक्रिया — विरोध और समर्थन दोनों मिले
कुछ सामाजिक समूहों और स्थानीय आयोजकों ने VHP के निर्देशों का कड़ा विरोध किया है और इसे “भेदभावपूर्ण” व “तोड़-मरोड़ राजनीति” करार दिया। इन समूहों ने कहा कि त्योहार खुले और समावेशी होने चाहिए।
दूसरी ओर कुछ पारंपरिक समूहों और स्थानीय स्तर पर कुछ नागरिकों ने सुरक्षा और चेतावनी के तौर पर सरकार और आयोजकों की चिन्ताओं को समझने की भी बात कही — उनका तर्क है कि इतिहास में भी कुछ जगहों पर सांप्रदायिक तनाव के कारण झंझट हुआ है, अतः आयोजकों की सतर्कता ज़रूरी है पर उसके लिये वैधानिक रास्ता अपनाना चाहिये।
“मीट-शॉप बंद” और एन्फोर्समेंट के दावे — कानून के दायरे में?
कुछ संगठनों ने कहा कि पंडालों के आसपास मटन/मीट की दुकानें बंद रखी जाएँ और जो दुकानें खुली पायी गयीं उन्हें जबरन बंद कराया जाएगा। ऐसे आदेश स्थानीय व्यापार एवं सार्वजनिक व्यवस्था से जुड़े नियमों का उल्लंघन कर सकते हैं — प्रशासन को इन दावों को देखते हुए समझौता और संतुलित निगरानी करनी होगी; जबरन दुकान बंद कराना अवैध होना भी साबित हो सकता है।
जोखिम, चुनौतियाँ और प्रशासनिक सुझाव
1.भेदभाव बनाम सुरक्षा: कानून-सम्मत सुरक्षा प्रोटोकॉल लागू कर के स्थानीय पंडाल सुरक्षा बढ़ायी जा सकती है — पर धर्म-आधारित प्रतिबंध संवैधानिक चुनौती बन सकते हैं।
2.आधार-जाँच का वैधानिक पहलू: आयोजकों को आधार-आधारित पहचान लागू करने से पहले UIDAI और स्थानीय प्रशासन से स्पष्ट अनुमति लेनी चाहिए — वरना निजता और डेटा सुरक्षा के उल्लंघन के आरोप लग सकते हैं।
3.सोशल मीडिया मॉनिटरिंग: अफवाह फैलाने वाले पोस्ट और फेक-न्यूस पर प्रशासन व सोशल प्लेटफॉर्म्स को साथ लेकर त्वरित कार्यवाही करनी होगी।
4.पुलिस–समन्वय: आयोजक, पुलिस और स्थानीय प्रशासन के बीच स्पष्ट SOP (सुरक्षा मानक) तय होने चाहिए — भीड़ नियंत्रण, इमरजेंसी निकास, CCTV और महिला सुरक्षा प्रावधान अनिवार्य।
5.समावेशी संदेश: प्रशासन और गुडविल अंबेसडर (स्थानीय नेता, धर्मगुरु) को समुदायों को जोड़ने वाले संदेश देने चाहिए ताकि त्योहारों का माहौल बनाए रखा जाए।
क्या आगे हो सकता है — परिदृश्य
यदि पंडालों पर धर्म-आधारित प्रतिबंधों के साथ सज्जा और प्रवेश लागू हुए तो कानूनी चुनौती तथा स्थानीय तनाव की आशंका बढ़ेगी।
प्रशासन उल्लंघन पाए जाने पर पोस्टर्स हटवाने, अनुमति रद्द करने और आयोजकों पर कार्रवाई करने का सहारा ले सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय/उच्च न्यायालय स्तर पर भी इस तरह के निर्देशों की वैधता पर मुक़दमे दर्ज हो सकते हैं।
नवरात्रि के पावन अवसर पर गरबा–डांडिया के आयोजक सुरक्षा व सांस्कृतिक अखंडता बनाए रखने का दावा कर रहे हैं, मगर धर्म-आधारित प्रवेश और आधार-आधारित पहचान की माँग संवैधानिक और कानूनी दिक्कतें खड़ी करती है। त्योहारों को समावेशी, शांतिपूर्ण और सुरक्षित बनाए रखने के लिए कानून-व्यवस्था और नागरिक अधिकारों के बीच संतुलन बनाना अनिवार्य होगा — वरना छोटी–सी चिंगारी बड़े सामाजिक मतभेद में बदल सकती है। स्थानीय प्रशासन, पुलिस और समुदायों को मिलकर कानून के दायरे में रहकर समाधान निकालना होगा।