
हिंदी सिनेमा के दिग्गज अभिनेता मनोज कुमार का 87 वर्ष की उम्र में मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में निधन हो गया। अपनी देशभक्ति से ओत-प्रोत फिल्मों के कारण वह न सिर्फ दर्शकों के दिलों में बसे रहे, बल्कि उन्हें ‘भारत कुमार’ की उपाधि भी मिली।
उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गहरा शोक व्यक्त करते हुए कहा, “मनोज कुमार भारतीय सिनेमा के प्रतीक थे, जिनकी फिल्मों में देशभक्ति की अनोखी चमक थी। उनके कार्यों ने राष्ट्रीय गौरव की भावना को जगाया और वे आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करते रहेंगे।”
राष्ट्रभक्ति का सिनेमाई चेहरा: मनोज कुमार
“है प्रीत जहां की रीत सदा…”
राष्ट्रभक्ति के इस अमर गीत को सुनते ही मनोज कुमार की छवि जेहन में उभर आती है। जब देश आजादी के बाद राष्ट्र-निर्माण की राह पर था, तब मनोज कुमार की फिल्मों और गानों ने जन-जन के मन में देशभक्ति की भावना को मजबूत किया।
उन्होंने ‘पूरब और पश्चिम’, ‘उपकार’, ‘रोटी कपड़ा और मकान’, ‘क्रांति’ जैसी कई ऐतिहासिक फिल्मों से भारतीय सिनेमा को समृद्ध किया।
‘जय जवान, जय किसान’ को परदे पर जीवंत किया
1965 में आई फिल्म ‘शहीद’ में उन्होंने भगत सिंह का किरदार निभाया, जिसने उन्हें देशभर में लोकप्रिय बना दिया।
इसके बाद 1967 में ‘उपकार’ में उन्होंने न केवल अभिनय किया बल्कि इसे निर्देशित भी किया। यह वही फिल्म थी जिसने लाल बहादुर शास्त्री के ‘जय जवान, जय किसान’ नारे को जन-जन तक पहुंचाया।
सिनेमा का सर्वोच्च सम्मान: दादा साहेब फाल्के पुरस्कार
मनोज कुमार की अमूल्य सिनेमाई विरासत को सम्मानित करते हुए उन्हें 2015 में भारतीय सिनेमा के सर्वोच्च पुरस्कार ‘दादा साहेब फाल्के’ से नवाजा गया। यह सम्मान उनकी देशभक्ति, सादगी और प्रेरणादायक सिनेमा की विरासत को अमर कर गया।
एक युग का अंत, लेकिन प्रेरणा अमर रहेगी
मनोज कुमार का जाना भारतीय सिनेमा के एक युग का अंत है, लेकिन उनकी देशभक्ति, आदर्शवाद और प्रेरणादायक कहानियां हमेशा जीवंत रहेंगी।
उनकी स्मृति में एक ही पंक्ति गूंज रही है—
“मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती…”
भारत कुमार को शत-शत नमन!