Tuesday, July 1, 2025
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“ईमानदारी की राह में रोड़ा? आज़मगढ़ में एक्सईएन की चालबाज़ी या अफसरशाही की सच्चाई!”

आज़मगढ़, उत्तर प्रदेश — एक तरफ प्रदेश की नौकरशाही में ईमानदारी और सख़्ती के लिए पहचाने जाने वाले अफसर हैं, तो दूसरी ओर विभागीय लापरवाही और जवाबदेही से बचने की कोशिशें। मामला आज़मगढ़ ज़िले का है, जहाँ नव-तैनात ज़िलाधिकारी आईएएस रविंद्र कुमार और सिंचाई विभाग के एक्सईएन अरुण सचदेव के बीच टकराव ने प्रशासनिक हलकों में हलचल मचा दी है।


DM रविंद्र कुमार: एक सख़्त लेकिन ईमानदार अफसर

अभी केवल डेढ़ महीने पहले ही आज़मगढ़ में ज़िलाधिकारी के रूप में कार्यभार संभालने वाले आईएएस रविंद्र कुमार को प्रदेश के उन अधिकारियों में गिना जाता है जिन्होंने फर्रुखाबाद, बुलंदशहर, झांसी और बरेली जैसे ज़िलों में अपने उत्कृष्ट कार्यों से अलग पहचान बनाई है। बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों के दौरे, विकास कार्यों की सतत निगरानी और शासन के निर्देशों को लागू कराने में उनकी सक्रियता ज़िले में साफ़ दिखाई दे रही है।


बाढ़ समीक्षा बैठक और इंजीनियर की ‘ग़ायबी’

हाल ही की एक घटना में जब डीएम अपने अधिकारियों के साथ बाढ़ प्रभावित इलाकों के भौतिक निरीक्षण पर निकले, तो सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता (एक्सईएन) अरुण सचदेव बिना किसी पूर्व सूचना के नदारद पाए गए। यह पहली बार नहीं हुआ।

बाद में जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग (VC) की तैयारियों के लिए बाढ़ संबंधी रिपोर्ट मांगी गई, तब भी सिंचाई विभाग ने रिपोर्ट नहीं भेजी। यही नहीं, मुख्य सचिव द्वारा बुलाई गई जिला स्तरीय समीक्षा बैठक में भी एक्सईएन की ओर से रिपोर्ट भेजने में कोताही बरती गई।


डांट-फटकार के बाद एक्सईएन ने खेला उलटा पत्ता?

सरकारी काम में लापरवाही, उच्चाधिकारियों के निर्देशों की अवहेलना और विकास कार्यों में बाधा जैसे गंभीर आरोपों के मद्देनज़र डीएम रविंद्र कुमार ने एक्सईएन को तलब कर सख़्त जवाब तलब किया और मामले को मुख्यमंत्री कार्यालय तक रिपोर्ट कर दिया।

यह कार्रवाई होते ही एक्सईएन अरुण सचदेव ने अपना “दर्द” सार्वजनिक कर दिया। उन्होंने डीएम पर ही आरोप लगाते हुए, सिंचाई विभाग के मुख्य अभियंता (HOD) को एक पत्र भेजा और उसे मीडिया में वायरल करवा दिया।


"ईमानदारी की राह में रोड़ा? आज़मगढ़ में एक्सईएन की चालबाज़ी या अफसरशाही की सच्चाई!"

सवाल उठते हैं…

क्या यह पत्र एक जिम्मेदार अफसर की शिकायत है या सिर्फ़ कार्रवाई से बचने की रणनीति?

क्या ईमानदारी से काम कर रहे अफसरों को विभागीय मिलीभगत के ज़रिये बदनाम करने की साज़िश रची जा रही है?

और सबसे अहम – क्या जनता के हक़ में काम करना अब अधिकारियों के लिए जोखिम बनता जा रहा है?


ईमानदारी पर हमला या कार्यप्रणाली की आलोचना?

आज़मगढ़ में यह मामला केवल एक अफसर बनाम इंजीनियर नहीं है, यह सिस्टम में पारदर्शिता और जवाबदेही बनाम लालफीताशाही की लड़ाई का उदाहरण भी है। जहां एक तरफ जनता की सेवा के लिए ज़मीनी काम कर रहे आईएएस अफसर हैं, वहीं दूसरी ओर वे हैं जो शायद सवालों से भागना चाहते हैं, जवाबदेही से नहीं जूझना चाहते।

अब यह देखना बाकी है कि शासन किसके साथ खड़ा होता है — सच्चाई के या साज़िश के?

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