नई दिल्ली। देश की राजधानी दिल्ली एक बार फिर धमाकों से दहल उठी है। सोमवार दोपहर लाल किले के पास स्थित मेट्रो स्टेशन के गेट नंबर-1 के बाहर खड़ी एक कार में अचानक भीषण धमाका हुआ। धमाके की आवाज दूर-दूर तक सुनाई दी और मौके पर अफरातफरी मच गई। कार में आग लगने के बाद पास खड़ी दो और गाड़ियों ने भी लपटें पकड़ लीं।
इस दर्दनाक हादसे में अब तक 13 लोगों की मौत और 30 से अधिक घायल होने की पुष्टि हुई है। घायलों को तुरंत एलएनजेपी अस्पताल ले जाया गया है, जहां कई की हालत नाजुक बताई जा रही है।
घटना की सूचना मिलते ही पुलिस, फायर ब्रिगेड और बम निरोधक दस्ते मौके पर पहुंच गए। पूरे इलाके को घेरकर तलाशी अभियान चलाया जा रहा है। राजधानी में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है।
यह हादसा उन भयावह यादों को ताजा कर गया है, जब 20 साल पहले इसी तरह के धमाकों ने दिल्ली की खुशियों को मातम में बदल दिया था — 29 अक्टूबर 2005 को।
29 अक्टूबर 2005: जब दीपावली की रौशनी में गूंजे थे धमाके
दीपावली आने ही वाली थी। दिल्ली के बाजारों में रौनक अपने चरम पर थी — सरोजिनी नगर, पहाड़गंज, करोल बाग… हर गली, हर दुकान जगमगा रही थी। लोग नए कपड़े, सजावट और मिठाइयों की खरीदारी में डूबे थे। लेकिन उस शाम खुशियों की जगह चीखें गूंजने लगीं।
पहला धमाका — पहाड़गंज, नेहरू मार्केट
समय: शाम 5:38 बजे
पहाड़गंज की भीड़भाड़ भरी नेहरू मार्केट में जोरदार विस्फोट हुआ। दुकानों के शीशे चकनाचूर हो गए, सड़क पर अफरातफरी मच गई। त्योहार की हलचल पल भर में दहशत और खूनखराबे में बदल गई।
दूसरा धमाका — डीटीसी बस में विस्फोट
स्थान: ओखला-गोविंदपुरी
समय: 5:52 बजे
पहले धमाके के कुछ मिनट बाद बाहरी मुद्रिका की एक डीटीसी बस में दूसरा धमाका हुआ। बस में बैठे कंडक्टर ने संदिग्ध बैग देखकर ड्राइवर को चेताया।
ड्राइवर कुलदीप सिंह ने अपनी जान जोखिम में डालकर बैग को बाहर फेंकने की कोशिश की — लेकिन उसी क्षण धमाका हो गया।
वह गंभीर रूप से घायल हो गए और एक आंख की रोशनी चली गई। मगर उनकी बहादुरी से दर्जनों यात्रियों की जान बच गई।
तीसरा धमाका — सरोजिनी नगर
समय: 5:56 बजे
केवल चार मिनट बाद सरोजिनी नगर के बाजार में तीसरा और सबसे विनाशकारी विस्फोट हुआ। त्योहार की भीड़ के बीच छोड़ा गया एक बैग पलभर में फट गया। दुकानों में आग लग गई, गैस सिलेंडर फटने से आग और भड़क उठी।
सिर्फ सरोजिनी नगर में ही 37 लोगों की जान चली गई। पूरा इलाका चीखों और रोने की आवाजों से भर गया।
जांच और जिम्मेदार
जांच में सामने आया कि धमाकों के पीछे आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के सदस्य थे। पांच संदिग्धों पर मुकदमा चला, लेकिन अदालत ने दो को बरी किया और एक को दोषी ठहराया।
डीटीसी ड्राइवर कुलदीप सिंह ने बाद में कहा था —
“मुझे दो बातों का अफसोस रहेगा…
एक, कि सभी दोषियों को सजा नहीं मिली;
और दूसरा, मैं अपने बच्चे का चेहरा पहली बार नहीं देख सका क्योंकि मैं उस वक्त अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच था।”
दीपावली की वह धनतेरस — जो कभी नहीं भूलती
29 अक्टूबर 2005 की वह धनतेरस अब सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि आतंकवाद की काली याद बन चुकी है।
उस दिन जिन घरों में दीप जलने थे, वहाँ अब तस्वीरों के आगे दीए जलते हैं।
आज जब दिल्ली में फिर धमाका हुआ है, तो लोगों के दिल में वही पुराना डर लौट आया है —
कहीं इतिहास खुद को दोहरा तो नहीं रहा?














