नई दिल्ली — इंदौर के कार्टूनिस्ट हेमंत मालवीय का विवादित व्यंग्य चित्र और उससे जुड़ा मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। मंगलवार को अदालत में मालवीय की ओर से कहा गया कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और RSS की तस्वीर पर बनाया गया यह अशोभनीय व्यंग्यकार्टून लेकर फेसबुक, इंस्टाग्राम और अन्य सोशल-मीडिया प्लेटफॉर्म पर सार्वजनिक रूप से माफीनामा प्रकाशित करेंगे।
कोर्ट में पेशी और वकील का बयान
मालवीय की ओर से सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील वृंदा ग्रोवर पेश हुईं और उन्होंने जस्टिस अरविंद कुमार व जस्टिस एन.वी. अंजारिया की बेंच के सामने बताया कि पूर्व के निर्देश के अनुरूप माफीनामा पहले ही दाखिल कर दिया गया है और आगे संबंधित पोस्ट सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से हटा दिए जाएंगे; साथ ही मालवीय अपने व्यक्तिगत अकाउंट पर भी माफी प्रकाशित करेंगे।
अदालत ने दी अस्थायी सुरक्षा — माफी की समयसीमा भी तय
बेंच ने माफी प्रकाशित करने पर सहमति व्यक्त करते हुए मालवीय को गिरफ़्तारी से अस्थायी सुरक्षा दी और माफीनामा निर्धारित अवधि में प्रकाशित करने का निर्देश दिया। इसके साथ ही अदालत ने इस मामले की अगली सुनवाई तय करते हुए जांच जारी रहने तक कुछ दिशानिर्देश भी जारी किए। सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले भी इस प्रकरण में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और उसकी सीमाओं पर चिंता जताई थी।
किस धाराओं में मामला दर्ज है
मालवीय के खिलाफ मध्य प्रदेश में दर्ज FIR में भारतीय दंड संहिता के प्रासंगिक प्रावधानों के साथ-साथ सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67A का भी हवाला दिया गया है — आरोप हैं कि सोशल-मीडिया पोस्ट में प्रधानमंत्री, RSS और धार्मिक संदर्भों का अपमानजनक और आपत्तिजनक संदर्भ था। मालवीय ने अपनी याचिका में कहा है कि यह व्यंग्य कोरोना-काल में वैक्सीन को लेकर उठ रही चर्चाओं पर किया गया था और बाद में किसी अन्य यूजर ने उस कार्टून को जातिगत टिप्पणी जोड़कर शेयर कर दिया था, जिसे उन्होंने साझा किया पर समर्थन नहीं किया।
सुप्रीम कोर्ट की चिन्ता और अभिव्यक्ति-सीमाएँ
अदालत ने मामले की सुनवाई के दौरान न केवल व्यक्तिगत सुरक्षा से जुड़े आदेश दिए, बल्कि सार्वजनिक मंचों पर अभिव्यक्ति के इस्तेमाल और उसके दुरुपयोग के विषय पर भी स्पष्ट चिंता ज़ाहिर की। न्यायालय ने कहा कि स्वतंत्रता के नाम पर किसी को भी “कुछ भी कहने” की खुली छूट नहीं दी जा सकती और ऐसी घटनाएँ नियंत्रण के दायरे में लाई जानी चाहिए — संकेत देते हुए कि भविष्य में डिजिटल प्लेटफॉर्म पर आपत्तिजनक पोस्टिंगों को नियंत्रित करने के लिए दिशा-निर्देशों की आवश्यकता पर विचार हो सकता है।
मालवीय का बचाव और कथ्य
मालवीय का तर्क रहा है कि उनकी रचना एक ऐतिहासिक/समानांतर व्यंग्य थी, जिसका मकसद सार्वजनिक बहस को चुनौती देना था न कि किसी संस्था, व्यक्ति या धर्म का अपमान करना। उन्होंने अदालत को बताया कि उनकी मंशा आलोचनात्मक टिप्पणी तक सीमित थी और उन्होंने पहले भी संबंधित सामग्री हटाने व माफी देने का आश्वासन दिया। अदालत ने इस आश्वासन को ध्यान में रखते हुए अस्थायी राहत प्रदान की।
आगे की प्रकिया
अदालत ने मामले की अगली सुनवाई के लिए मामले को सूचीबद्ध किया है और तब तक अदालत की शर्तों के अनुरूप माफी की प्रकिया पूरी करने को कहा गया है। इस प्रकरण से जुड़े कानूनी, संवैधानिक और नैतिक पहलुओं पर लंबी बहस की संभावना है — खासकर यह सवाल कि लोकतान्त्रिक विमर्श में व्यंग्य की क्या सीमा होनी चाहिये और डिजिटल स्पेस में उसकी क्या जिम्मेदारियाँ हैं।