बिहार विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी राज्य में “वोटर अधिकार यात्रा” निकाल रहे हैं। इस यात्रा में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं। दोनों नेता लगातार भाजपा और चुनाव आयोग पर “वोट चोरी” का आरोप लगाते हुए निशाना साध रहे हैं। रविवार को यह यात्रा अररिया पहुंची, जहाँ राहुल गांधी, तेजस्वी यादव, दीपंकर भट्टाचार्य और मुकेश सहनी सहित इंडिया गठबंधन के नेताओं ने संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस की।
प्रेस कॉन्फ्रेंस में सभी नेताओं ने भाजपा सरकार और चुनाव आयोग पर जमकर हमला बोला। लेकिन जब राहुल गांधी से तेजस्वी यादव को महागठबंधन का मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करने को लेकर सवाल पूछा गया, तो उन्होंने सीधे जवाब देने से परहेज किया और मुद्दे को टाल गए। यही बात इस समय बिहार की राजनीति में सबसे बड़ी पहेली बनी हुई है।
कांग्रेस की रणनीति: जातिगत समीकरण और वोट-बैंक की चिंता
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस की हिचकिचाहट के पीछे जातिगत संतुलन और वोट बैंक की राजनीति है। वरिष्ठ पत्रकार ओम प्रकाश अश्क बताते हैं कि कांग्रेस को आशंका है कि अगर चुनाव से पहले तेजस्वी यादव को सीएम पद का फेस घोषित कर दिया गया, तो अगड़ी जातियों, दलितों और गैर-यादव ओबीसी समुदाय का एक बड़ा हिस्सा उनसे दूरी बना सकता है। कांग्रेस चाहती है कि सीएम उम्मीदवार का फैसला चुनाव परिणाम आने के बाद हो, ताकि जातीय ध्रुवीकरण से बचा जा सके।
वहीं, दूसरी ओर एनडीए ने पहले ही नीतीश कुमार को अपना नेता मानकर चुनाव में उतरने का ऐलान कर दिया है। प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी भी उनके नेतृत्व को चुनौती दे रही है। ऐसे में महागठबंधन के पास अब तक स्पष्ट चेहरा न होना उसे नुकसान पहुँचा सकता है।
सीट बंटवारे की पेचीदगी और कांग्रेस की “वेट एंड वॉच” नीति
तेजस्वी यादव को सीएम पद का उम्मीदवार घोषित करने में कांग्रेस की अनिच्छा का एक और कारण सीट बंटवारे की खींचतान भी है। अब तक महागठबंधन में पाँच दौर की बैठकें हो चुकी हैं, लेकिन कोई ठोस सहमति नहीं बन पाई है।
2020 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन केवल 19 सीटें ही जीत पाई थी। इस बार राजद कांग्रेस को इतनी अधिक सीटें देने के पक्ष में नहीं है। सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस उतनी ही सीटों पर चुनाव लड़ने की इच्छुक है, जितनी उसने पिछली बार लड़ी थीं। जब तक इस पर सहमति नहीं बनती, कांग्रेस खुलकर तेजस्वी के समर्थन से बच रही है।
वामपंथी और सहयोगी दलों की मांगें
सीटों को लेकर विवाद केवल कांग्रेस और राजद के बीच ही नहीं है। वामपंथी दल – सीपीआई (एमएल), सीपीआई और माकपा – भी 2024 के लोकसभा चुनावों में अपने प्रदर्शन के आधार पर अधिक सीटें मांग रहे हैं। भाकपा (माले) लगभग 24 सीटों की मांग कर रही है, जबकि 2020 में उसने 19 सीटों पर चुनाव लड़ा था।
इधर, विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के प्रमुख मुकेश सहनी ने 60 सीटों और उपमुख्यमंत्री पद की मांग कर दी है, जिससे समीकरण और उलझ गए हैं।
गठबंधन में “बड़े भाई” की भूमिका पर टकराव
17 अगस्त को सासाराम से राहुल गांधी और तेजस्वी यादव ने वोटर अधिकार यात्रा की शुरुआत की थी। उस समय की तस्वीर, जिसमें राहुल गांधी खुले जीप में हाथ हिलाते नजर आए और तेजस्वी यादव गाड़ी चला रहे थे, सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुई। इस तस्वीर को प्रतीकात्मक संदेश के रूप में देखा गया कि बिहार की राजनीति की कमान भले ही कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय दल के पास हो, लेकिन राज्य की असली बागडोर राजद और तेजस्वी के हाथों में है।
राजद यह दिखाना चाहती है कि कांग्रेस को गठबंधन में बराबरी का दर्जा मिले, लेकिन नेतृत्व का चेहरा वही होगा। जबकि कांग्रेस सीट बंटवारे और अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता को ध्यान में रखते हुए सार्वजनिक रूप से तेजस्वी को स्वीकार करने से बच रही है।
कांग्रेस की हिचकिचाहट से महागठबंधन में असमंजस की स्थिति बनी हुई है। राजद बार-बार यह स्पष्ट कर चुका है कि मुख्यमंत्री पद का चेहरा तेजस्वी यादव ही होंगे, लेकिन कांग्रेस रणनीतिक कारणों से इसे चुनाव से पहले घोषित नहीं करना चाहती। नतीजा यह है कि गठबंधन के भीतर अविश्वास और सीट बंटवारे को लेकर टकराव लगातार बढ़ता जा रहा है।
आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या कांग्रेस और राजद के बीच कोई “मध्य रास्ता” निकलता है या फिर यह असमंजस महागठबंधन के चुनावी अभियान पर भारी पड़ता है।