Wednesday, October 8, 2025
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बिहार चुनाव 2025: मांझी की मांग पर बीजेपी के दिग्गज मनाने पहुंचे — सीट शेयरिंग पर कड़ा मंथन

बिहार विधानसभा चुनावों की तारीखों के ऐलान से पहले सियासी हलचल तेज़ हो गई है। NDA में सीटों के बंटवारे को लेकर चल रही बातचीत में आज बीजेपी के केंद्रीय नेताओं ने जीतनराम मांझी से मुलाकात कर उन्हें मनाने की कोशिश की। भाजपा के चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान के साथ विनोद तावड़े और सम्राट चौधरी भी मांझी के आवास पर पहुंचे।

बैठक का मकसद: सीटें और समीकरण

मुलाकात का मुख्य एजेंडा आगामी चुनावों में सीटों का बंटवारा और गठबंधन का सामरिक समीकरण तय करना था। सूत्रों के मुताबिक मांझी अपनी पार्टी के लिए 18–20 सीटें मांगे पर अड़े हुए हैं — जो गठबंधन के समग्र समीकरण और बीजेपी के लिए कट्टर चुनौती बन सकती हैं। बैठक में यही कोशिश की गई कि मांझी को सम्भव समझौते के दायरे में लाया जाए, लेकिन फिलहाल उनकी नाराज़गी बनी हुई है।

कौन-कौन आए और क्या कहा गया

धर्मेंद्र प्रधान: पार्टी के मुख्य वार्ताकार के तौर पर बैठकों का नेतृत्व कर रहे हैं।

विनोद तावड़े और सम्राट चौधरी: स्थानीय व संगठनात्मक परिप्रेक्ष्य से मांझी को राजी करने के लिए शामिल।
सूत्रों का कहना है कि प्रतिनिधिमंडल ने मांझी से समन्वय का आवाहन किया और गठबंधन के संभावित फायदे समझाने की कोशिश की, मगर मांझी की सीट मांग पर फिलहाल कोई स्पष्ट समाधान नहीं निकला।

सत्तात्मक परिदृश्य: महत्त्वपूर्ण बिंदु

वर्तमान में बिहार की राजनीति में NDA और महागठबंधन के समीकरण नए सिरे से बन रहे हैं।

महुआ, गोपालगंज जैसे कई इलाकों में सीट-स्तर पर जद्दोजहद तेज़ है; स्थानीय घटक दलों की मांगें भी निर्णायक होंगी।

इस बार चुनाव आयोग ने कहा है कि चुनाव 22 नवंबर से पहले पूरा कर दिया जाएगा, जिससे मतदान अगले महीने होने की संभावना जाहिर हो रही है।

JDU का अनुरोध और जनादेश का दबाव

JDU ने चुनाव आयोग से एक चरण में मतदान कराने की मांग उठाई है ताकि बाहर गए प्रवासी श्रमिक और अन्य लोग भी आसानी से वोट डाल सकें। यह माँग चुनावी प्रक्रिया को सुगम बनाने और अधिकतम मतदान सुनिश्चित करने के मकसद से की गई है — पर चुनाव विधि और चरणबद्धता पर अंतिम निर्णय आयोग पर निर्भर करेगा।

राजनीतिक प्रभाव और संभावित परिणाम

1.मांझी का रुख निर्णायक: यदि मांझी अपने 18–20 सीटों के दावे पर अड़ते रहे, तो NDA के भीतर सीट आवंटन में दबाव बढ़ेगा और कुछ सीटों पर परस्पर टकराव भी देखने को मिल सकता है।

2.गठबंधन की मजबूती पर असर: छोटे घटक दलों की नाराज़गी बड़े गठबंधन के समग्र प्रदर्शन को प्रभावित कर सकती है — खासकर उन जिलों में जहाँ प्रति-मतगार संख्याएँ निर्णायक होती हैं।

3.स्थानीय समीकरण और प्रत्याशियों की छवि: स्थानीय नेता व प्रभारी किस हद तक समझौते में सफल होते हैं, वही अंतिम तालमेल और जीत-हार का आधार निर्धारित करेगा।

क्या होगा अगला कदम?

बीजेपी नेतृत्व और NDA के अन्य घटक दलों के मध्य और अधिक बैठकें होने की संभावना है।

मांझी के साथ आगे की बातचीत में पार्टी संगठन, प्रत्याशी चयन और सीटों के वेब-आकर्षण (vote-share projections) पर चर्चा होगी।

यदि समझौता नहीं बनता तो स्थानीय स्तर पर सीटों के लिए कड़ी टक्कर और प्रत्याशियों के महासंग्राम की संभावना बढ़ सकती है।


बिहार में सीट-शेयरिंग की गुत्थी अभी खुलना बाकी है। धर्मेंद्र प्रधान, विनोद तावड़े और सम्राट चौधरी की मांझी से मुलाकात निर्णायक मोड़ साबित हो सकती है — लेकिन फिलहाल मांझी की अड़चन ने सत्ता समीकरण में अनिश्चितता बढ़ा दी है। चुनाव आयोग के अंतिम ऐलान के बाद ही वास्तविक राजनीतिक तस्वीर साफ़ होगी।

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