
गुजरात के द्वारका और बेट द्वारका में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) का जलपोत पुरातत्व विंग (UAW) समुद्र की गहराई में छिपे इतिहास की परतें खोलने में जुटा है। यह अन्वेषण अभियान फरवरी 2025 में किए गए सर्वेक्षण का विस्तार है, जिसे ASI के अतिरिक्त महानिदेशक प्रो. आलोक त्रिपाठी के नेतृत्व में संचालित किया जा रहा है। खास बात यह है कि इस टीम में तीन महिला गोताखोरों को भी शामिल किया गया है, जो समुद्री पुरातत्व की दुनिया में एक मिसाल पेश कर रही हैं।
समुद्री इतिहास की तलाश
द्वारका न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से भी भारत का एक अनमोल धरोहर स्थल है। प्राचीन ग्रंथों में वर्णित ‘डूबे हुए द्वारका’ की खोज कई दशकों से इतिहासकारों और पुरातत्वविदों के शोध का विषय रही है। इसी कड़ी में फरवरी 2025 में ASI की पांच सदस्यीय टीम ने गोमती क्रीक के दक्षिणी हिस्से में सर्वेक्षण किया था, जिसका मकसद पहले खोजे गए अवशेषों की स्थिति का आकलन करना और भविष्य में संभावित खुदाई स्थलों की पहचान करना था।
क्या है जलपोत पुरातत्व अनुसंधान का उद्देश्य?
वर्तमान अभियान का उद्देश्य है —
✅ समुद्र में डूबे हुए पुरातात्विक अवशेषों की खोज
✅ उनका दस्तावेजीकरण और वैज्ञानिक विश्लेषण
✅ पुरातत्वविदों को जलपोत पुरातत्व का प्रशिक्षण देना
अभियान के दौरान समुद्री तल से प्राप्त अवशेषों के आधार पर उनकी प्राचीनता और ऐतिहासिक महत्त्व का निर्धारण किया जाएगा।
पहले भी मिली हैं ऐतिहासिक धरोहरें
2005 से 2007 के बीच ASI ने द्वारका के तटवर्ती क्षेत्रों में शोध किया था। उस दौरान कई प्राचीन मूर्तियां, पत्थर के लंगर, तांबे और लोहे के अवशेष, मिट्टी के बर्तन और गहने प्राप्त हुए थे। वर्ष 2007 में द्वारकाधीश मंदिर के उत्तरी द्वार के पास खुदाई के दौरान 10 मीटर गहरी और 26 परतों वाली संरचनाएं खोजी गई थीं।
मिशन में महिला गोताखोरों की भूमिका
इस बार के अभियान में शामिल तीन महिला गोताखोर विशेष ध्यान आकर्षित कर रही हैं —
👩🔬 डॉ. अपराजिता शर्मा – सहायक अधीक्षण पुरातत्वविद, UAW
👩🔬 पूनम विंद – सहायक अधीक्षण पुरातत्वविद
👩🔬 डॉ. राजकुमारी बर्बिना – सहायक पुरातत्वविद
इनके साथ अभियान निदेशक हेमासागर ए. नाइक और 9 सदस्यीय विशेषज्ञ टीम समुद्र के गर्भ में छिपे इतिहास की परतें उधेड़ने में जुटी है।
आगे की योजना
यह अभियान अब ओखामंडल क्षेत्र तक विस्तार पा चुका है। पुरातत्वविदों द्वारा संभावित स्थलों की पहचान कर वैज्ञानिक पद्धति से उनका विश्लेषण किया जा रहा है। यदि यह शोध सफल रहा, तो यह भारतीय पुरातत्व में एक ऐतिहासिक उपलब्धि साबित हो सकती है, जिससे द्वारका के रहस्यों से पर्दा उठेगा।