2025 में प्रस्तावित बिहार विधानसभा चुनावों से पहले चुनाव आयोग द्वारा शुरू किए गए मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान (Special Intensive Revision) पर सियासी घमासान तेज हो गया है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस अभियान पर सवाल खड़े करते हुए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) पर निशाना साधा है।
स्वयंसेवकों की पहचान सार्वजनिक की जाए: अखिलेश यादव
अखिलेश यादव ने मांग की कि सबसे पहले उन ‘स्वयंसेवकों’ की पहचान उजागर की जाए जिन्हें बिहार और बंगाल जैसे संवेदनशील राज्यों में मतदाताओं की जन्मतिथि और जन्मस्थान के सत्यापन के लिए तैनात करने की योजना बनाई जा रही है।
उन्होंने आशंका जताई कि ये स्वयंसेवक संभवतः सत्तारूढ़ दल के सहयोगी संगठनों से जुड़े हो सकते हैं और उनके राजनीतिक झुकाव मतदाता सूची में भेदभाव और धांधली को बढ़ावा दे सकते हैं। “इन स्वयंसेवकों के सोशल मीडिया खातों की भी जांच होनी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे किसी राजनीतिक दल से जुड़े नहीं हैं।”
“जरूरत पड़ी तो कोर्ट जाएंगे”
सपा प्रमुख ने स्पष्ट किया कि संदिग्ध या राजनीतिक रूप से पक्षपाती लोगों को किसी भी कीमत पर इस प्रक्रिया में शामिल नहीं होने दिया जाना चाहिए, भले ही इसके लिए न्यायालय का दरवाजा क्यों न खटखटाना पड़े। “चुनाव आयोग को मतदाता सूची के पुनरीक्षण का अधिकार है, लेकिन यह पहली बार है जब आम लोगों को ‘स्वयंसेवक’ बनाकर सूची संशोधन का काम सौंपा जा रहा है। यह बेहद खतरनाक परंपरा की शुरुआत है।”
“जो सूची पिछले जून में सही थी, वो इस जून में गलत कैसे?”
अखिलेश ने चुनाव आयोग की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि अगर पिछले साल की मतदाता सूची सही थी तो अब उसमें बदलाव की जरूरत क्यों पड़ रही है? उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा हार के डर से चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिश कर रही है। “बिहार, बंगाल और कल को उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में भाजपा कुछ वोटों को हटाकर बाजी पलटने की कोशिश कर रही है, लेकिन यह चाल काम नहीं आएगी। भाजपा हारेगी और हमेशा के लिए हारेगी।”
किन राज्यों में हो रहा है यह अभियान?
बिहार में यह अभियान 2025 की शुरुआत से चल रहा है और इसके बाद पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी में भी शुरू किया जाएगा — जहां अगले वर्ष विधानसभा चुनाव होने हैं।
अखिलेश यादव का यह बयान सिर्फ मतदाता सत्यापन प्रक्रिया पर सवाल नहीं है, बल्कि यह चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर भी एक बड़ा राजनीतिक हमला है। आने वाले विधानसभा चुनावों में मतदाता सूची की विश्वसनीयता और पारदर्शिता को लेकर यह मुद्दा और अधिक तूल पकड़ सकता है।