समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री आजम खान ने शुक्रवार को लखनऊ में सपा प्रमुख अखिलेश यादव से मुलाकात की। यह मुलाकात यूं तो एक शिष्टाचार भेंट लग सकती है, मगर इसकी राजनीतिक टाइमिंग और संदर्भ इसे खास बना देते हैं।
लगातार दूसरी मुलाकात, सियासी संकेत गहरे
यह अखिलेश यादव और आजम खान के बीच एक महीने के भीतर दूसरी मुलाकात है। पहली मुलाकात 8 अक्टूबर को हुई थी, जब अखिलेश यादव जेल से रिहाई के बाद रामपुर जाकर आजम से मिले थे। इस बार आजम खुद लखनऊ पहुंचे — बिना किसी पूर्व सूचना के। यही कारण है कि इस मुलाकात ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है।
आजम का व्यंग्य और व्यथा
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के “माफिया मुक्त उत्तर प्रदेश” बयान पर आजम खान ने चुटकी लेते हुए कहा,
“मैं खड़ा तो हूं सबसे बड़ा माफिया आपके सामने, मैं नंबर-1 माफिया हूं। मुझसे बड़ा माफिया कौन है?”
यह बयान सिर्फ व्यंग्य नहीं, बल्कि उनके भीतर की पीड़ा और असंतोष का प्रतीक भी है। जेल से रिहाई के बाद से आजम लगातार अपने खिलाफ हुई कार्रवाई को “राजनीतिक प्रतिशोध” बताते रहे हैं।
अखिलेश की सोशल मीडिया पोस्ट — मेलमिलाप का संदेश
अखिलेश यादव ने मुलाकात के बाद X (ट्विटर) पर लिखा, “न जाने कितनी यादें संग ले आए, जब वो आज हमारे घर पर आए! ये जो मेलमिलाप है यही हमारी साझा विरासत है।”
यह पंक्ति सियासी प्रतीकात्मकता से भरी हुई है। अखिलेश का यह बयान यह संकेत देता है कि वे आजम को न सिर्फ पुराने साथी के रूप में देख रहे हैं, बल्कि उनके साथ पुनः समीकरण सुधारने की कोशिश भी कर रहे हैं।
न जाने कितनी यादें संग ले आए
जब वो आज हमारे घर पर आए!ये जो मेलमिलाप है यही हमारी साझा विरासत है। pic.twitter.com/hPr56uCLFB
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) November 7, 2025
सियासी समीकरण और मुस्लिम मतदाताओं का संकेत
आजम खान लंबे समय से सपा के मुस्लिम चेहरा माने जाते रहे हैं। जेल जाने और पार्टी के भीतर कुछ मतभेदों के बाद यह चेहरा धुंधला पड़ गया था। मगर अब जबकि लोकसभा चुनाव 2026 की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं, अखिलेश यादव मुस्लिम वोटबैंक को एकजुट रखना चाहेंगे।
इस लिहाज से आजम खान के साथ यह मेलमिलाप, राजनीतिक मजबूती और सामाजिक संतुलन दोनों के लिहाज से अहम है।
हाल की मुलाकातों का सियासी संदर्भ
गौर करने वाली बात यह भी है कि एक दिन पहले मुख्तार अंसारी के भाई सिबगतुल्लाह अंसारी भी आजम खान से मिले थे। इससे साफ है कि उत्तर प्रदेश में विपक्षी खेमे में संभावित ध्रुवीकरण या एकजुटता की प्रक्रिया चल रही है।
आजम का यह बयान कि “देश का माहौल खराब हो रहा है, इसलिए सबको एकजुट होना जरूरी है” — विपक्षी गठबंधन को लेकर एक अप्रत्यक्ष संकेत माना जा रहा है।
भविष्य की राजनीति पर असर
आजम खान की सक्रियता सपा में पुराने नेताओं की वापसी और सम्मान की मांग को भी हवा दे सकती है।
मुस्लिम और पिछड़े वर्गों में सपा की पकड़ मजबूत करने की रणनीति का हिस्सा भी यह मुलाकात हो सकती है।
साथ ही, भाजपा की “माफिया मुक्त” राजनीति के नैरेटिव को प्रतिक्रिया देने की कोशिश भी इसमें झलकती है।
अखिलेश यादव और आजम खान की यह मुलाकात सिर्फ दोस्ताना भेंट नहीं, बल्कि सपा की नई राजनीतिक दिशा का संकेत भी हो सकती है।आजम के व्यंग्यपूर्ण तेवर और अखिलेश की भावनात्मक प्रतिक्रिया — दोनों मिलकर बताते हैं कि सपा एक बार फिर “पुराने साथियों की एकजुटता” के रास्ते पर लौटना चाहती है।अब देखना यह होगा कि क्या यह मेलमिलाप स्थायी राजनीतिक साझेदारी में बदलता है या सिर्फ प्रतीकात्मक सहानुभूति भर साबित होता है।














