Tuesday, July 1, 2025
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पंढरपुर वारी पर विवादित बयान देने के बाद अबू आजमी ने मांगी माफी, वारकरी समाज से जताया सम्मान

मुंबई/सोलापुर: समाजवादी पार्टी के विधायक अबू आजमी ने पंढरपुर वारी यात्रा पर दिए गए अपने विवादित बयान के लिए माफी मांग ली है। उन्होंने कहा कि उनके शब्दों से यदि वारकरी समाज की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची है, तो वे अपने बयान वापस लेते हैं और दिल से क्षमा चाहते हैं। आजमी ने कहा कि उनका उद्देश्य किसी की धार्मिक आस्था को चोट पहुंचाना नहीं था, बल्कि अल्पसंख्यक समुदाय के साथ हो रहे भेदभाव की ओर ध्यान दिलाना था।


अबू आजमी ने क्या कहा माफी मांगते हुए?

अबू आजमी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा,

“मेरे हालिया वक्तव्य को दुर्भावनापूर्ण तरीके से तोड़-मरोड़कर पेश किया गया। यदि इससे वारकरी समाज की भावना आहत हुई हो, तो मैं अपने शब्द पूरी तरह वापस लेता हूं और क्षमा चाहता हूं। मेरी नीयत कभी किसी की धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाने की नहीं रही है। मैं वारी परंपरा का दिल से सम्मान करता हूं। यह महाराष्ट्र की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर का गौरव है।”

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वे हर धर्म, संस्कृति और सूफी संतों का हमेशा सम्मान करते आए हैं और भविष्य में भी करते रहेंगे।


क्या था विवादित बयान?

अबू आजमी ने पंढरपुर वारी यात्रा में निकलने वाली पालकी की तुलना सड़क पर नमाज पढ़ने से कर दी थी। उन्होंने कहा था,

“कई हिंदू त्योहार सड़कों पर मनाए जाते हैं, लेकिन मुस्लिम अगर कुछ मिनट के लिए सड़क पर नमाज पढ़ें तो शिकायतें की जाती हैं। पुणे से निकलते समय कहा गया कि जल्दी जाओ, नहीं तो पालकी जुलूस की वजह से सड़कें बंद हो जाएंगी।”

उनके इस बयान से वारकरी समाज और हिंदू संगठनों में नाराजगी फैल गई।


राजनीतिक प्रतिक्रिया और चेतावनी

भाजपा आध्यात्मिक मोर्चा के नेताओं ने इस बयान को महाराष्ट्र की अस्मिता पर हमला बताया। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर इस तरह की बयानबाजी जारी रही तो कड़ा विरोध होगा। नासिक में विरोध प्रदर्शनों के बाद आजमी को सफाई देने और माफी मांगने पर मजबूर होना पड़ा।


भेदभाव के मुद्दे पर आजमी की सफाई

आजमी ने दोहराया कि उनके शब्दों का उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदाय के साथ हो रहे भेदभाव पर सरकार का ध्यान दिलाना था।

“मेरी मंशा सरकार के दोहरे मापदंडों पर सवाल उठाना था ताकि अल्पसंख्यक समुदाय को यह महसूस न हो कि उनके लिए अलग कानून हैं। हम समानता, हक और सम्मान की लड़ाई जारी रखेंगे, लेकिन देश की एकता पर कभी आंच नहीं आने देंगे।”

अबू आजमी के इस बयान और उसके बाद की माफी ने एक बार फिर राजनीति और समाज के बीच धर्म और आस्था से जुड़े संवेदनशील मुद्दों पर बहस छेड़ दी है। यह मामला न केवल धार्मिक सहिष्णुता का, बल्कि सार्वजनिक जीवन में जिम्मेदार बयानों की आवश्यकता का भी प्रतीक बन गया है।

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