Tuesday, July 1, 2025
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आख़िर उत्तर प्रदेश में अधिकारियों के ताबड़तोड़ तबादले के मायने क्या हैं?

उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे आने के बाद से प्रशासनिक फेरबदल शुरू हो गया है। योगी आदित्यनाथ सरकार ने एक बड़ा फेरबदल 25 जून को किया, जब 12 जिलों के जिलाधिकारियों (डीएम) को एक साथ बदल दिया गया। इसके अलावा, पुलिस विभाग समेत लगभग सभी विभागों में भी ताबड़तोड़ तबादले हो रहे हैं। इसी 25 जून को भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के आठ अधिकारियों के तबादले हुए, जिसमें सात जिलों को नए एसपी मिले।

राजनीतिक विश्लेषक प्रदेश में विभिन्न विभागों में हो रहे प्रशासनिक फेरबदल को बीजेपी के लोकसभा चुनावों में खराब प्रदर्शन से जोड़ रहे हैं। उनका मानना है कि जिन लोकसभा सीटों पर बीजेपी को हार मिली है, अधिकतर वहीं के अधिकारियों का तबादला हुआ है। जिन 12 जिलों में जिलाधिकारी बदले गए, उनमें से 11 में बीजेपी चुनाव हारी है। उन सात जिलों में, जहां नए पुलिस कप्तान नियुक्त हुए, उनमें पांच जगह बीजेपी चुनाव हारी थी।

(बाएं से दाएं)डीएम सीतापुर, डीएम चित्रकूट, डीएम बांदा, इन तीनों को नए ज़िलों में पोस्टिंग मिली है

फेरबदल का ‘चुनाव कनेक्शन’

सीतापुर, सहारनपुर, बस्ती, संभल, लखीमपुर खीरी, बांदा, मुरादाबाद, कौशांबी, चित्रकूट, हाथरस और श्रावस्ती के डीएम बदले गए हैं। इनमें केवल हाथरस में बीजेपी चुनाव जीती है। सीतापुर और सहारनपुर में कांग्रेस और बाकी सभी जगह संभल, लखीमपुर खीरी, बांदा, मुरादाबाद, कौशांबी, चित्रकूट, और श्रावस्ती में सपा चुनाव जीती है। इसके अलावा, मेरठ, आजमगढ़, बरेली, सहारनपुर, मुरादाबाद, प्रतापगढ़, और चंदौली को नए पुलिस कप्तान मिले हैं। इनमें भी पांच जगह, आजमगढ़, सहारनपुर, मुरादाबाद, प्रतापगढ़, और चंदौली में बीजेपी चुनाव में नाकाम रही थी।

बीजेपी की प्रतिक्रिया

बीजेपी नेता इन प्रशासनिक फेरबदलों को सामान्य प्रक्रिया बता रहे हैं। बीजेपी प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी कहते हैं कि यह फेरबदल सामान्य है और हमारी सरकार में प्रत्येक वर्ष जून माह में तबादले किए जाते हैं। वह कहते हैं, तबादलों से अधिकारियों में नई ऊर्जा आती है और वह बेहतर काम करते हैं। त्रिपाठी के अनुसार, इस समय काफी समय से एक जगह पर रुके अधिकारियों को हटाया जा रहा है ताकि सरकारी कार्य प्रणाली में और पारदर्शिता लाई जा सके।

विशेषज्ञों की राय

उत्तर प्रदेश की राजनीति पर नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार नावेद शिकोह कहते हैं कि जिन जिलों में बीजेपी चुनाव हारी, वहां के अधिकारी बीजेपी के नेताओं और कार्यकर्ताओं की आवाज को अनदेखा कर रहे थे। वह मानते हैं कि अब डीएम और पुलिस कप्तान हटाकर बीजेपी सरकार कार्यकर्ताओं और नेताओं को संतुष्ट करने का प्रयास कर रही है। शिकोह कहते हैं कि जमीन पर सक्रिय बीजेपी नेता लगातार इन अधिकारियों की शिकायतें पार्टी के आलाकमान से करते रहे, लेकिन उनकी बात पर तवज्जो नहीं दी जाती थी। इसके पीछे कारण था कि बीजेपी को भरोसा था कि अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का नेतृत्व चुनाव जीतने के लिए पर्याप्त है।

विपक्ष की प्रतिक्रिया

विपक्ष इस प्रशासनिक फेरबदल को अधिकारियों का उत्पीड़न बता रहा है। उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय राय कहते हैं कि बीजेपी जिन लोकसभा सीटों पर इंडिया गठबंधन से हारी है, वहां के अधिकारियों को प्रताड़ित कर रही है। सपा प्रवक्ता और पूर्व विधानमंडल सदस्य सुनील कुमार कहते हैं कि तबादला सूची से साफ होता है कि अधिकतर उन्हीं जिलों के डीएम और कप्तान बदले गए हैं, जहां बीजेपी हारी है। उन्होंने कहा कि हार के बाद अधिकारियों को बदलने की परंपरा गलत है।

पूर्व डीजीपी की राय

उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक (पूर्व डीजीपी) विक्रम सिंह कहते हैं कि चुनावों के बाद तबादला होना कोई नई बात नहीं है, ऐसा सभी सरकारें करती हैं। वह कहते हैं कि वह 1980 से देख रहे हैं कि हर चुनाव के नतीजों के बाद प्रशासनिक बदलाव होते हैं। हालांकि, पूर्व डीजीपी कहते हैं कि कभी भी ईमानदार अधिकारियों और सत्तारूढ़ दल के कार्यकर्ताओं के बीच समन्वय बन नहीं पाता है। इसका कारण वो बताते हैं कि कार्यकर्ताओं की इतनी अधिक मांगें और उम्मीदें होती हैं, जिन्हें पूरा करना किसी भी अधिकारी के लिए संभव नहीं होता।

पूर्व मुख्य सचिव को सेवा विस्तार नहीं मिला

उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्रा का सेवा विस्तार नहीं मिलना भी इसी नजर से देखा जा रहा है। कहा जा रहा है कि 1984 बैच के आईएएस मिश्रा को 2021 से अब तक तीन बार सेवा विस्तार मिला था। लेकिन पूर्वी उत्तर प्रदेश के मऊ जिले के रहने वाले मिश्रा को चौथी बार सेवा विस्तार नहीं मिला और 30 जून, 2024 को वह सेवानिवृत्त हो गए। विपक्ष का कहना है कि मिश्रा के गृह जिले मऊ (घोसी) और उसके आस-पास के जिलों गाज़ीपुर और आज़मगढ़ में मिली हार से नाराज़ बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने मिश्रा की छुट्टी कर दी। मऊ, घोसी और आज़मगढ़ तीनों सीटों पर इंडिया गठबंधन (समाजवादी पार्टी) के उम्मीदवारों को जीत हासिल हुई है।

अधिकारियों के तबादले का असर

अमर उजाला के पूर्व संपादक कुमार भवेश चंद्र कहते हैं कि प्रदेश में अधिकारियों के रोज हो रहे तबादलों को चुनावों में बीजेपी के खराब प्रदर्शन से जोड़कर देखा जा रहा है। वह कहते हैं, तबादला सूची से स्पष्ट होता है कि अधिकतर वहीं के अधिकारी बदले जा रहे हैं, जहां बीजेपी चुनाव हारी है। भवेश चंद्र मानते हैं कि केवल कार्यकर्ताओं की नहीं बल्कि मंत्रियों की भी सुनवाई नहीं हो रही थी, अधिकारी अपनी मनमानी कर रहे थे। योगी सरकार को लगता था कि राम मंदिर के उद्घाटन के बाद “हिंदुत्व” की लहर चलेगी और बीजेपी आसानी से चुनाव जीत जाएगी। इसलिए सरकार कार्यकर्ताओं और मंत्रियों की शिकायतों को लेकर कभी गंभीर नहीं हुई।

भवेश चंद्र कहते हैं, ”नतीजे नकारात्मक आने के बाद से बीजेपी में प्रदेश में करीब 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनावों से पहले डर है। लोकसभा चुनावों के बाद अगर उपचुनावों में हार होती है तो इससे 2027 विधानसभा का खेल भी बिगड़ सकता है। हार की समीक्षा के बाद ताबड़तोड़ अधिकारी बदले जा रहे हैं ताकि नए अधिकारी पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं की सुनें और उनका मनोबल बढ़ सके।”

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