Wednesday, November 26, 2025
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लखनऊ में ‘दिव्य गीता कार्यक्रम’: सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा—गीता को केवल पढ़ें नहीं, जीवन में उतारें

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने लखनऊ में आयोजित दिव्य गीता कार्यक्रम में कहा कि श्रीमद्भगवद्गीता केवल पढ़ने या सुनने का ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह जीवन को जीने की कला सिखाती है। उन्होंने कहा कि कार्यक्रम का समापन भले ही हो गया हो, लेकिन गीता का संदेश आत्मसात करना और उसे व्यवहार में लाना ही हम सबका वास्तविक कर्तव्य है।

भागवत ने कहा कि गीता के 700 श्लोक मानव जीवन के हर क्षेत्र के लिए मार्गदर्शक हैं। “यदि हम प्रतिदिन केवल दो श्लोक पढ़कर उन पर मनन करें और उनसे प्राप्त सार को आचरण में लाएँ, तो एक वर्ष में हमारा जीवन गीतामय बनने की दिशा में बहुत आगे बढ़ सकता है,” उन्होंने कहा।

कार्यक्रम में डॉ. भागवत मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे।


“दुनिया दिशाहीनता का अनुभव कर रही है, समाधान गीता में है” — मोहन भागवत

अपने उद्बोधन में उन्होंने कहा कि जैसे महाभारत के युद्धक्षेत्र में अर्जुन मोह में पड़ गए थे, वैसे ही आज पूरा विश्व भय, मोह, तनाव और संघर्षों के बीच मार्गदर्शन की खोज कर रहा है। भौतिक प्रगति बढ़ी है, परंतु आंतरिक शांति का अभाव आज भी यथावत है।

उन्होंने कहा कि कई लोग अब यह समझने लगे हैं कि अब तक वे गलत मार्ग पर चले और सही दिशा की आवश्यकता है। यह सही दिशा भारत की सनातन परंपरा और श्रीमद्भगवद्गीता के ज्ञान में निहित है, जिसने सदियों तक विश्व को संतुलन और शांति प्रदान की है।

लखनऊ में ‘दिव्य गीता कार्यक्रम’: सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा—गीता को केवल पढ़ें नहीं, जीवन में उतारें


गीता का मर्म सरल भाषा में समझना ज़रूरी

सरसंघचालक ने कहा कि गीता उपनिषदों और दर्शनशास्त्रों का सार है। अर्जुन जैसे धीर-वीर भी जब मोहग्रस्त हो सकते हैं, तो आम मनुष्य का भ्रमित होना स्वाभाविक है। ऐसे में भगवान कृष्ण का उपदेश — धर्म, सत्य और कर्तव्य — हमेशा हर परिस्थिति में मार्गदर्शन देता है।

उन्होंने कहा:

समस्या से भागना नहीं, उसका सामना करना सबसे पहला उपदेश है।

‘मैं करता हूँ’ — यह अहंकार है; वास्तविक कर्ता परमात्मा हैं।

शरीर नश्वर है, आत्मा अविनाशी।

गीता को आचरण में लाने से जीवन सार्थक, निर्भय और उद्देश्यपूर्ण बनता है। उन्होंने कहा कि परोपकार की भावना से किया गया छोटा-सा कार्य भी महत्त्वपूर्ण होता है, और यही गीता का संदेश विश्व में शांति ला सकता है।


“जीओ और जीने दो”— मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ

कार्यक्रम में उपस्थित उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि भारत में धर्म केवल पूजा-विधि नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला है। उन्होंने कहा कि सनातन धर्मावलंबी गीता के 18 अध्याय और 700 श्लोकों को श्रद्धा से पढ़ते हैं और उन्हें जीवन में लागू करते हैं।

योगी ने कहा:

“अन्याय नहीं होना चाहिए, और न किसी के साथ अन्याय करना चाहिए।”

“धर्म के मार्ग पर चलने से ही विजय प्राप्त होती है।”

“श्रीकृष्ण का संदेश है — निष्काम कर्म करो, फल की चिंता मत करो।”

उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी शताब्दी की ओर बढ़ रहा है, और दुनिया यह जानकर आश्चर्य करती है कि यह संगठन बिना किसी बाहरी funding के समाज के सहयोग से सेवा कार्य करता है।

लखनऊ में ‘दिव्य गीता कार्यक्रम’: सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा—गीता को केवल पढ़ें नहीं, जीवन में उतारें


“सेवा सौदेबाजी नहीं, कर्तव्य है”— योगी आदित्यनाथ

सीएम ने कहा कि संघ का स्वयंसेवक किसी पीड़ित व्यक्ति की सेवा करते समय उसकी जाति, भाषा, धर्म या क्षेत्र नहीं देखता। संघ का मूल मंत्र है — राष्ट्र प्रथम, और समाज के हर पीड़ित के साथ खड़ा होना उसका कर्तव्य है।

उन्होंने कहा कि पिछले सौ वर्षों में संघ ने बिना किसी सौदेबाजी या स्वार्थ के सेवा को अपनी साधना बनाया है, जबकि दुनिया के कुछ हिस्सों में सेवा को सौदे का माध्यम भी बनाया गया है।


आचार्यों ने बताया— गीता का संदेश सार्वभौमिक

गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज ने कहा कि दिव्य गीता प्रेरणा उत्सव केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि राष्ट्रव्यापी प्रेरणा का स्रोत है।
रामानंदाचार्य श्रीधर महाराज ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण का समाधान भी गीता और वेदों में निहित है — जल संरक्षण, यज्ञ और प्रकृति की रक्षा इसका आधार हैं।
स्वामी परमात्मानंद जी महाराज ने कहा कि गीता का पहला और अंतिम शब्द ‘धर्म’ है, इसलिए यह संपूर्ण ग्रंथ धर्म की शिक्षा देता है।

कार्यक्रम का संयोजन मणि प्रसाद मिश्र ने किया। इस अवसर पर अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख स्वान्तरंजन, वरिष्ठ प्रचारक प्रेम कुमार, शिवनारायण, अनिल, कौशल, कृपाशंकर, यशोदानंदन, डॉ. अशोक, डॉ. लोकनाथ सहित बड़ी संख्या में स्वयंसेवक उपस्थित रहे।

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