देश के कई हिस्सों में जहां प्याज के दाम सामान्य बने हुए हैं, वहीं मध्य प्रदेश के किसानों को इन दिनों भारी नुकसान झेलना पड़ रहा है। राज्य के कई जिलों में प्याज की कीमतें 1 से 2 रुपये प्रति किलो तक गिर गई हैं, जिससे किसान हताश और निराश हैं।
“मंडी आने-जाने का खर्च भी नहीं निकल रहा”
मंदसौर जिले के पंथ पिपलोदा गांव के किसान बब्बू मालवी बताते हैं, “मैंने एक बीघा में प्याज की खेती की थी। करीब 6 से 7 क्विंटल प्याज निकला, लेकिन मंडी में दाम सुनकर विश्वास नहीं हुआ। आज प्याज का भाव सिर्फ 1.99 रुपये प्रति किलो था। इतने दाम पर तो मंडी तक आने-जाने का किराया भी नहीं निकल पा रहा। फसल की लागत तो बहुत दूर की बात है।”
वे आगे कहते हैं कि परिवहन, मजदूरी और खाने-पीने का खर्च मिलाकर सौ रुपये से ज्यादा खर्च हो जाता है, जबकि बिक्री से इतनी आमदनी भी नहीं होती।
कांग्रेस ने सरकार पर साधा निशाना
प्याज की गिरती कीमतों को लेकर कांग्रेस पार्टी ने भी चिंता जताई है। पार्टी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘X’ पर पोस्ट कर केंद्र और राज्य सरकारों पर निशाना साधा।
कांग्रेस ने लिखा —“मध्य प्रदेश में प्याज किसान खून के आंसू रो रहे हैं। मंडियों में प्याज मात्र 2 रुपये किलो बिक रहा है। किसान अपनी फसल औने-पौने दामों में बेचने को मजबूर हैं, जबकि प्रधानमंत्री ने किसान की आय दोगुनी करने का वादा किया था।”
इस पोस्ट के साथ कांग्रेस ने रतलाम कृषि उपज मंडी की एक तस्वीर भी साझा की, जिसे मध्य प्रदेश कांग्रेस ने आगे बढ़ाया है।
VIDEO | Madhya Pradesh: Onion prices in Mandsaur have plummeted to Rs 1 per kg, forcing farmers to sell at heavy losses.
Farmer Babbu Malvi from Panth Piploda says, “I planted onion in one bigha land and got around 6-7 quintals. The rate of onion per kg was Rs 1.99 today, not… pic.twitter.com/rbxowmg4pn
— Press Trust of India (@PTI_News) November 12, 2025
“इतने दाम पर बेचने से अच्छा मवेशियों को खिला दें”
मंदसौर मंडी में पहुंचे बरखेड़ा गांव के किसान भोपाल सिंह सिसोदिया ने बताया, “मैं 7 क्विंटल प्याज लेकर आया था। मंडी में सिर्फ 170 रुपये प्रति क्विंटल भाव मिला — यानी करीब 1.70 रुपये किलो। इतने कम दाम पर तो न लागत निकलती है, न किराया-भाड़ा। अब तो लगने लगा है कि इसे मवेशियों को खिला दें, बेचने से बेहतर वही होगा।”
किसानों की बढ़ी परेशानी, राहत की उम्मीद
लगातार गिरती कीमतों ने किसानों की कमर तोड़ दी है। वे अब सरकारी मदद और समर्थन मूल्य की मांग कर रहे हैं, ताकि उनकी लागत और मेहनत दोनों का उचित मूल्य मिल सके।














