राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शुक्रवार को घोषणा की कि इस साल दक्षिण अफ्रीका में होने वाले जी-20 शिखर सम्मेलन में कोई भी अमेरिकी सरकारी अधिकारी भाग नहीं लेगा। ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में इस निर्णय की वजह दक्षिण अफ्रीका में श्वेत किसानों के साथ होने वाले कथित दुर्व्यवहार और उनपर हमलों, तथा उनकी जमीन और खेतों की जब्ती को बताया और लिखा: “यह पूरी तरह से शर्मनाक है कि जी-20 दक्षिण अफ्रीका में आयोजित होगा।”
ट्रंप पहले ही घोषणा कर चुके थे कि वह व्यक्तिगत रूप से शिखर सम्मेलन में शामिल नहीं होंगे। शुरुआत में उनकी जगह उपराष्ट्रपति जेडी वेंस भेजे जाने की बात कही जा रही थी, लेकिन अब बताया गया है कि वेंस भी शिखर सम्मेलन में भाग नहीं लेंगे।
यूएस प्रशासन का रवैया और आरोप
ट्रंप प्रशासन ने लंबे समय से दक्षिण अफ्रीकी सरकार पर यह आरोप लगाया है कि वह श्वेत अल्पसंख्यक किसानों के साथ होने वाले हमलों और उत्पीड़न की निंदा करने में विफल रही है। प्रशासन ने यह भी संकेत दिए हैं कि श्वेत दक्षिण अफ्रीकियों को विशेष तौर पर शरणार्थी रिहायश देने की प्राथमिकता दी जा रही है, यह तर्क देते हुए कि वे अपने देश में भेदभाव और हिंसा का सामना कर रहे हैं।
दक्षिण अफ्रीका की प्रतिक्रिया
दक्षिण अफ्रीका सरकार ने इन आरोपों पर हैरानी जताई है और कहा है कि देश में श्वेतों का जीवन स्तर सामान्यतः अश्वेत निवासियों की तुलना में बेहतर रहा है — यह वह स्थिति है जो रंगभेदी शासन (अपार्थाइड) के अंत के तीन दशकों से अधिक समय के बाद भी दिखाई देती है। राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा ने ट्रंप को बताया है कि अफ्रीकी लोगों के साथ कथित भेदभाव और उत्पीड़न की खबरें “पूरी तरह से झूठी” हैं और ऐसी कड़वी टिप्पणियों से देश की तस्वीर बिगड़ती है।
कूटनीतिक तनाव और पृष्ठभूमि
यह घोषणा यूएस-दक्षिण अफ्रीका संबंधों में बढ़ते तनाव को दर्शाती है। इस साल की शुरुआत में विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने भी विदेश मंत्रियों की जी-20 बैठक का बहिष्कार किया था, तब इसका कारण एजेंडा पर विविधता, समावेशिता और जलवायु परिवर्तन पर ज़ोर होना बताया गया था। इसी कड़ी में, ट्रंप ने मियामी में दिए एक भाषण में कहा था कि दक्षिण अफ्रीका को जी-20 से बाहर कर दिया जाना चाहिए — ऐसी तीखी भाषा ने दोनों देशों के बीच कूटनीतिक माहौल को और जटिल बना दिया है।
दक्षिण अफ्रीका द्वारा इस वर्ष जी-20 की मेज़बानी और उस पर उठ रहे विवादों ने वैश्विक मंच पर एक नयी कूटनीतिक बहस को जन्म दे दिया है — जहां एक ओर मानवाधिकार और सुरक्षा के दावों को लेकर तीखी टिप्पणियाँ हो रही हैं, तो दूसरी ओर मेजबान देश की जवाबदेही और आंतरिक परिस्थितियों पर प्रश्न उठ रहे हैं। इस कड़वे संवाद का असर न केवल जी-20 की टाइमलाइन और उपस्थिति पर देखा जाएगा बल्कि दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों पर भी पड़ने की संभावना है।














