पुणे में हाल ही में एक ऐसी ख़बर घिरती दिख रही है कि राजनीति और प्रशासन दोनों ही उथल-पुथल के बीच आ गए हैं। विपक्ष ने लंबे समय से कार्रवाई की मांग की — और अब पुलिस ने FIR दर्ज कर मामला न्यायिक रास्ते पर भी पहुँचता दिख रहा है। आरोपों के केंद्र में हैं महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम अजित पवार के बेटे पार्थ पवार की कंपनी Amadea Enterprises और उसके कुछ सहयोगी।
मुख्य बातें — क्या-क्या आरोप हैं
FIR में जिन तीन लोगों का नाम सामने आया है: शीतल तेजवानी (जिनके पास पार्थ पवार की पावर ऑफ़ अटॉर्नी का दावा है), दिग्विजय पाटिल (Amadea का पार्टनर), और रविन्द्र तारु (रजिस्टार)।
आरोप है कि सरकारी ज़मीन जिसकी अनुमानित कीमत ≈ ₹1,800 करोड़ बताई जाती है, उसे सिर्फ़ ₹300 करोड़ में खरीदा गया।
सबसे तेज़ आरोप स्टाम्प ड्यूटी की हेराफेरी का है — कुल ≈ ₹21 करोड़ की स्टाम्प ड्यूटी चोरी/छल का आरोप लगाया जा रहा है; FIR में दावा है कि सिर्फ़ ₹500 के स्टाम्प का उपयोग करके बड़े फ़ैंसले किए गए।
पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है; साथ ही राज्य सरकार ने भी जांच के निर्देश दिए हैं।
मुख्यमंत्री ने तुरंत कदम उठाए
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने मामले की गम्भीरता देखते हुए तहरीलदारी व रजिस्ट्री प्रक्रिया में शामिल अधिकारियों पर सख्त रूख अपनाया — तहसीलदार सूर्यकांत येवले और उपनिबंधक रविन्द्र तारु को तत्काल निलंबित कर दिया गया। सरकार ने कहा है: “यदि अनियमितता पाई गई तो कड़ी कार्रवाई होगी।”
विपक्ष का शोर — SIT की मांग
विपक्ष ने लंबे समय से इस मामले पर स्पष्टता और कड़े कदम की माँग की थी — यहाँ तक कि SIT जाँच की भी मांग उठी। यही राजनीतिक दबाव संभावित रूप से FIR दर्ज होने और उच्चस्तरीय जाँच के आदेश का कारण बना।
सवाल जो हवा में लटके हुए हैं
क्या वाकई ज़मीन का असल मूल्य और बिक्री मूल्य के बीच इतना बड़ा अंतर पाया जाएगा?
स्टाम्प ड्यूटी में हुई कथित हेराफेरी कैसे संभव हुई — प्रक्रियागत चूक थी या जानबूझ कर की गई साजिश?
दोष सिद्ध होने पर किन-किन लोगों के खिलाफ किस तरह की कार्रवाई होगी — प्रशासनिक सज़ा, आर्थिक जुर्माना या आपराधिक मुक़दमा?
आगे क्या होने की उम्मीद रखें
1.पुलिस/सत्यापन टीम की जाँच — दस्तावेज़, रजिस्ट्री, और स्टाम्प रिकॉर्ड की क्रॉस-चेकिंग।
2.यदि दस्तावेज़ों में घोटाला पाया गया तो आरोप तय होंगे और आगे की कानूनी कार्रवाई शुरू होगी।
3.राजनीतिक बयानों और मीडिया कवरेज के मुताबिक़ मामला और गरमा सकता है — SIT या उच्चस्तरीय आयोग तैनात होने की संभावना बनी हुई है।
पुणे का यह मामला सिर्फ़ एक जमीन लेन-देन का विवाद नहीं रह गया — यह प्रशासनिक पारदर्शिता, राजनैतिक जवाबदेही और कानूनी प्रक्रिया की कसौटी बन चुका है। जांच जो भी बताए — नतीजे महाराष्ट्र की राजनीति और लोक-प्रशासन दोनों पर असर डाल सकते हैं |














