पटना: बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) में सीटों का बंटवारा अब तय हो गया है। इस बार बीजेपी और जेडीयू को 101-101 सीटें, चिराग पासवान की पार्टी 29 सीटें, जबकि जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा को 6-6 सीटें दी गई हैं।
जहां कम सीटों को लेकर मांझी और कुशवाहा में नाराजगी की लहर है, वहीं चिराग पासवान का चेहरा खिला हुआ है। माना जा रहा है कि उनकी रणनीति और राजनीतिक दबाव का ही नतीजा है कि उन्हें इस बार इतनी बड़ी हिस्सेदारी मिली है।
रणनीतिकार के रूप में उभरे चिराग पासवान
बिहार की राजनीति में चिराग पासवान अब सिर्फ एक युवा नेता नहीं, बल्कि एक रणनीतिक खिलाड़ी के रूप में उभरे हैं।
जानकार बताते हैं कि उन्होंने जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा के साथ मिलकर एनडीए के भीतर एक “दबाव समूह” (pressure group) बनाया था। इस रणनीति का असर इतना हुआ कि बीजेपी और जेडीयू को उन्हें 29 सीटें देने पर मजबूर होना पड़ा।
बीजेपी पर डाला दबाव, दिखाई अपनी ताकत
चिराग पासवान ने चुनावी हलचल शुरू होते ही बीजेपी और जेडीयू दोनों पर सीट बंटवारे को लेकर दबाव बनाना शुरू कर दिया था।
इसका असर यह हुआ कि बीजेपी अब जेडीयू के बराबर सीटों पर चुनाव लड़ रही है — जो पहले कभी नहीं हुआ था।
इस बार चिराग ने 2020 के अनुभव से सबक लेते हुए बेहद संयमित लेकिन प्रभावी रणनीति अपनाई। बिना किसी विवाद या बगावत के उन्होंने साबित कर दिया कि वे बिहार की राजनीति में अब सिर्फ 5-6% वोट बैंक के नेता नहीं, बल्कि एक मुख्य फैक्टर हैं।
2020 का सबक बना सफलता की कुंजी
साल 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान ने अकेले मैदान में उतरकर सिर्फ 1 सीट जीती थी। उस हार ने उन्हें गहराई से सोचने पर मजबूर किया।
इस बार उन्होंने पहले से ही रणनीति बनाते हुए मांझी और कुशवाहा जैसे नेताओं से अपने रिश्ते मजबूत किए, ताकि कोई अकेला न रह जाए।
दिलचस्प यह है कि पहले बीजेपी मांझी को चिराग के खिलाफ इस्तेमाल करती थी, लेकिन चिराग ने समीकरण बदल दिए और मांझी को अपने साथ कर लिया।
बीजेपी नेताओं ने की चिराग को मनाने की पूरी कोशिश
सीट बंटवारे के दौर में बीजेपी नेताओं ने चिराग को मनाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी।
धर्मेंद्र प्रधान, विनोद तावड़े और मंगल पांडे जैसे दिग्गज नेता चिराग के घर पहुंचे।
इतना ही नहीं, नित्यानंद राय एक ही दिन में तीन बार उनके घर पहुंचे।
आखिरकार, उन्होंने चिराग की मां से मुलाकात कर पारिवारिक रिश्तों का हवाला दिया, जिसके बाद बात कुछ आगे बढ़ी।
पहले चिराग को 18–22 सीटें मिलने की चर्चा थी, लेकिन बातचीत के बाद यह आंकड़ा बढ़कर 29 सीटों तक पहुंच गया।
चिराग की रणनीति से बीजेपी को भी फायदा
चिराग पासवान ने न केवल खुद के लिए बल्कि बीजेपी के लिए भी माहौल अनुकूल बनाया।
साल 2024 के लोकसभा चुनाव में उनका प्रदर्शन शानदार रहा, जबकि उनके चाचा पशुपति पारस को बड़ा झटका लगा था।
इससे उन्होंने यह भी साबित किया कि वे ही रामविलास पासवान की राजनीतिक विरासत के असली उत्तराधिकारी हैं।
चिराग की रणनीति से ही बिहार में पहली बार बीजेपी जेडीयू के बराबर सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
राजनीतिक हलकों में अब उन्हें उनके पिता की तरह ‘मौसम वैज्ञानिक’ कहा जा रहा है — जो राजनीतिक हवा का रुख पहचानने और गठबंधन में अधिकतम लाभ उठाने में माहिर हैं।