उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले से इंसाफ और मानवता की मिसाल पेश करने वाली खबर सामने आई है। यहां तीन साल से हत्या के आरोप में जेल में बंद एक युवक को अदालत ने सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। खास बात यह रही कि आरोपी की आर्थिक स्थिति कमजोर थी और वह अपने बचाव के लिए वकील नहीं कर सका। ऐसे में जिला जज धर्मेंद्र कुमार पांडे ने खुद पहल करते हुए आरोपी को सरकारी वकील के माध्यम से कानूनी सहायता दिलवाई।
आर्थिक तंगी में फंसा गरीब आरोपी
गाजीपुर – जंगीपुर थाना क्षेत्र के सरस्वतीनगर निवासी गोलू उर्फ अमित गुप्ता को वर्ष 2022 में एक युवक राहुल कुशवाहा की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था। जेल में रहते हुए उसकी आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर हो गई थी। परिवार न तो उससे मिलने आता था और न ही केस लड़ने के लिए कोई वकील नियुक्त कर पाया।
न्यायाधीश ने उठाया मानवीय कदम
इस स्थिति की जानकारी होने पर जिला एवं सत्र न्यायाधीश धर्मेंद्र कुमार पांडे ने स्वयं मामले में हस्तक्षेप किया और सरकारी अधिवक्ता रतन श्रीवास्तव को अमित गुप्ता का पक्ष रखने की जिम्मेदारी दी। इसके बाद रतन श्रीवास्तव ने केस से जुड़े सभी तथ्यों को अदालत के सामने विस्तार से रखा।
नौ गवाहों के बावजूद नहीं साबित हुआ आरोप
अदालत में अभियोजन पक्ष की ओर से कुल नौ गवाह पेश किए गए, लेकिन किसी भी गवाह या साक्ष्य से अमित गुप्ता की घटना में संलिप्तता साबित नहीं हो पाई। कोर्ट ने सभी बिंदुओं पर विचार करते हुए पाया कि आरोपी के खिलाफ ठोस सबूत नहीं हैं।
‘बेनीफिट ऑफ डाउट’ पर हुआ बरी
अंततः अदालत ने साक्ष्यों के अभाव में आरोपी को “बेनीफिट ऑफ डाउट” (संदेह का लाभ) देते हुए मामले से बरी कर दिया। लगभग तीन साल जेल में बिताने के बाद अमित गुप्ता को आखिरकार आजादी मिली।
न्यायपालिका की संवेदनशीलता का उदाहरण
यह मामला केवल एक व्यक्ति की रिहाई की कहानी नहीं, बल्कि न्यायपालिका की संवेदनशीलता और मानवीय दृष्टिकोण का उदाहरण है। जब आर्थिक स्थिति के कारण न्याय से वंचित होने की संभावना थी, तब जिला जज ने संविधान द्वारा प्रदत्त ‘फ्री लीगल एड’ (मुफ्त कानूनी सहायता) की व्यवस्था का सही अर्थों में पालन किया।