पटना/दिल्ली — बिहार में विधानसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद अब सीट शेयरिंग को लेकर राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) में शामिल दलों के बीच सीटों के बंटवारे पर लगातार बैठकों का दौर जारी है। मंगलवार को दिल्ली में कई दौर की चर्चाएं हुईं, जबकि अब बुधवार को पटना में एनडीए की बड़ी बैठक बुलाई गई है, जिसमें बीजेपी, जेडीयू, एलजेपी (रामविलास), हम (HAM) और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी समेत सभी सहयोगी दलों के शीर्ष नेता शामिल होंगे।
दिल्ली से पटना तक सीट बंटवारे पर गहमागहमी
सूत्रों के अनुसार, बीजेपी और जेडीयू दोनों 103-103 सीटों पर चुनाव लड़ने का फॉर्मूला तैयार कर चुके हैं। बाकी बची सीटों को एनडीए के अन्य घटक दलों में बांटने पर विचार हो रहा है। हालांकि, इस पर सभी दलों की सहमति बन पाना अभी चुनौतीपूर्ण लग रहा है।
मांझी की नाराजगी — सीटों को लेकर असहमति
सूत्रों के मुताबिक, HAM प्रमुख और केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी मौजूदा सीट ऑफर से असंतुष्ट हैं। वे अपनी पार्टी के लिए 15 से 18 सीटों की मांग कर रहे हैं, जबकि बीजेपी फिलहाल 7–8 सीटें देने पर विचार कर रही है। इसी मुद्दे को लेकर मांझी नाराज बताए जा रहे हैं। बीजेपी के वरिष्ठ नेता लगातार उनसे बातचीत कर उन्हें मनाने की कोशिश में जुटे हैं।
उपेंद्र कुशवाहा और चिराग पासवान की मांगें
राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP) के नेता उपेंद्र कुशवाहा ने भी 15 सीटों की मांग रखी है। वहीं, एलजेपी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान सबसे बड़ी मांग कर रहे हैं — वे 40–50 सीटें चाहते हैं, जबकि बीजेपी उन्हें करीब 20 सीटें देने को तैयार है।
यदि चिराग पासवान इस प्रस्ताव पर सहमत नहीं होते हैं, तो उन्हें एक विधान परिषद और एक राज्यसभा सीट की पेशकश की जा सकती है।
धर्मेंद्र प्रधान से मुलाकात
सीट बंटवारे के बीच मंगलवार को बीजेपी नेता धर्मेंद्र प्रधान चिराग पासवान के दिल्ली स्थित आवास पहुंचे और उनसे मुलाकात की। हालांकि, इस बैठक में क्या तय हुआ, इसकी आधिकारिक जानकारी सामने नहीं आई है। चिराग और मांझी दोनों केंद्र सरकार में सहयोगी हैं, ऐसे में बीजेपी दोनों को साधने की पूरी कोशिश कर रही है ताकि गठबंधन में कोई दरार न पड़े।
पटना बैठक पर सबकी निगाहें
बुधवार को होने वाली एनडीए की पटना बैठक में सीट शेयरिंग पर अंतिम फैसला होने की संभावना है। बीजेपी चाहती है कि जल्द से जल्द फॉर्मूला तय कर उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी जाए, ताकि चुनाव प्रचार की तैयारियां शुरू की जा सकें।
विश्लेषकों का मानना है कि उम्मीदवारों की घोषणा में देरी राजनीतिक दलों के लिए नुकसानदेह साबित हो सकती है, क्योंकि इससे मतदाताओं में भ्रम की स्थिति बन सकती है और विपक्ष को फायदा मिल सकता है।