कर्नाटक में हालिया बाढ़ और उत्तर कर्नाटक के प्रभावित जिलों के मद्देनज़र पूर्व प्रधानमंत्री एच. डी. देवेगौड़ा ने राज्य सरकार की लागू की जा रही ‘पांच गारंटी’ योजनाओं को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा है कि इन योजनाओं ने राज्य की वित्तीय स्थिति को दुरतर कर दिया है और उसके कारण बाढ़ से निपटने के लिए पर्याप्त संसाधन उपलब्ध नहीं रह गए हैं। देवेगौड़ा ने कहा है कि वे एक सप्ताह के भीतर कलबुर्गी और आसपास के प्रभावित इलाकों का दौरा करेंगे और प्रभावितों के लिए मुआवज़ा दिलाने की माँग लेकर प्रधानमंत्री से भी मुलाक़ात करेंगे।
देवेगौड़ा का आरोप और सत्ताधारी विधायकों की प्रतिक्रिया
देवेगौड़ा ने कहा है कि कई कांग्रेस विधायक भी मानते हैं कि इतनी गंभीर बाढ़ की स्थिति से निपटने के लिए “पैसे नहीं हैं।” उन्होंने यह भी दावा किया कि राज्य के खजाने पर चल रही बड़ी सार्वजनिक खर्ची — यानी ‘पांच गारंटी’ — का भारी असर पड़ा है और यही वजह है कि तत्काल राहत व पुनर्वास के लिए पर्याप्त वित्त उपलब्ध नहीं हो रहा। इस नोट पर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप तीव्र होते जा रहे हैं।
पांच गारंटी — क्या हैं प्रमुख प्रावधान?
कर्नाटक की ‘पांच गारंटी’ का उद्देश्य कमजोर वर्गों व समुदायों के सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा जाल को मज़बूत करना है। प्रमुख योजनाएँ इस प्रकार हैं:
Gruha Jyothi (गृह ज्योति) — प्रत्येक परिवार को 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली देने का वादा।
Gruha Lakshmi (गृह लक्ष्मी) — परिवार की महिला मुखिया को मासिक आर्थिक सहायता (₹2,000) प्रदान करने का वादा।
Anna Bhagya (अन्न भाग्य) — BPL परिवार के प्रत्येक सदस्य को प्रति माह 10 किलो चावल देने का वादा।
Yuva Nidhi (युवा निधि) — बेरोज़गार स्नातकों को मासिक अनुदान (₹3,000) और डिप्लोमा धारकों को सीमित अवधि के लिए सहायता (₹1,500) देने का वादा।
Shakti (शक्ति) — महिलाओं को राज्य के भीतर सरकारी बसों में मुफ्त यात्रा की सुविधा।
खर्च और संसाधन — किस हद तक बोझ बढ़ा?
सरकारी आंकड़ों और बजट हाइलाइट्स के मुताबिक इन योजनाओं पर राज्य ने बड़े पैमाने पर खर्च किया है — रिपोर्टों में यह भी संकेत मिलता है कि पांच गारंटी कार्यक्रमों पर अरबों रुपये का व्यय हो चुका है और बजट-प्राथमिकताओं में बदलाव के कारण अभूयवक्त मांगों और आकस्मिक राहत कार्यों के लिए सीमित निधि बची है। देवेगौड़ा जैसे नेताओं का तर्क यही है कि इसी वित्तीय दबाव ने बाढ़ राहत व पुनर्वास क्षमताओं को प्रभावित किया है।
राज्य सरकार की कोशिशें और विरोधी दावे
वहीं कर्नाटक सरकार ने बाढ़-प्रभावित किसानों व परिवारों के लिए अतिरिक्त पैकेजों और सहायता की बात कही है और अधिकारियों ने प्रभावित इलाकों में राहत कार्य तेज़ करने के संकेत दिए हैं। केंद्र व राज्य के बीच समन्वय, फंड-रिलीज़ और तात्कालिक मदद की मांगें अब राजनीतिक बहस का केंद्र बन चुकी हैं। देवेगौड़ा का दौरा और प्रधानमंत्री से अपील इस लड़खड़ाते वित्तीय-रिप्लाई का राजनीतिक आयाम और भी बढ़ा सकते हैं।
क्या आगे होगा?
वर्तमान माहौल में आवश्यक है कि सरकारी खातों, आपदा-प्रबंधन बजट व दोनों पक्षों के तर्कों की पारदर्शी जाँच हो — ताकि यह स्पष्ट हो सके कि वित्तीय सीमाओं के कारण राहत-कार्य प्रभावित हुए या स्थानीय तात्कालिक प्रबंधन में कमी के कारण परिस्थितियाँ बिगड़ीं। देवेगौड़ा के क्षेत्र दर्शन और प्रधानमंत्री से उनकी मीटिंग अगले कुछ दिनों में राजनीतिक रूपरेखा और राहत नीतियों पर प्रभाव डाल सकती है।