पटना, विशेष रिपोर्ट: राजनीति के स्ट्रैटेजिस्ट प्रशांत किशोर (PK) बिहार की सियासत में खुलकर सक्रिय हो गए हैं और उनके प्रभाव की लकीरें साफ दिख रही हैं — खासकर चिराग पासवान की ओर। PK की चिराग के प्रति स्पष्ट अनुकूलता और एनडीए के भीतर उनकी रणनीतिक सक्रियता ने यह शक कर दिया है कि यदि मौका मिला तो चिराग को मुख्यमंत्री के रूप में आगे बढ़ाने की तैयारी हो सकती है।
‘चिराग के लिए रास्ता सुगम’ — क्या संकेत मिल रहे हैं?
सूत्रों के अनुसार PK ने राज्य के कुछ प्रमुख नेताओं और दलों पर आरोप-प्रहार करके नीतीश सरकार की छवि पर सवाल उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। इन हमलों से भाजपा व जेडीयू के वरिष्ठ चेहरों की छवि प्रभावित हुई है और इसकी आहट से चिराग के समक्ष अवसर जन्म ले रहे हैं — ऐसा माना जा रहा है। PK चिराग को ‘बेधड़क, लोकप्रिय और प्रोग्रेसिव’ नेता के रूप में पेश कर रहे हैं, जिससे उनके लिए राजनीति का रास्ता आसान लगे।
एनडीए में सुलगते अंतराल — आरोपों से बढ़ी अनिश्चितता
बड़े नेताओं पर लगे आरोपों के बाद एनडीए के अंदर असमंजस की स्थिति पैदा हुई है। कुछ नेताओं के खिलाफ उठ रहे गंभीर आरोपों ने दल के भीतर दो गुट बनने की धारणा को हवा दी है। ऐसी परिस्थितियों में एलजेपी की साख और चिराग की लोकप्रियता उन्हें ‘विकल्प’ के रूप में उभारने में मदद कर सकती है — यही वजह है कि पार्टी के अंदर चिराग के लिए उम्मीदें बढ़ रही हैं।
एलजेपी की रणनीति: धैर्य और अवसर दोनों साथ में
एलजेपी जानती है कि फिलहाल नीतीश कुमार के रहते सीएम पद पर कोई वैकेंसी नहीं है। इसलिए चिराग की टीम ने धैर्य के साथ-साथ अंदरूनी कूटनीति भी तेज की है — जेडीयू से तालमेल सुधारने, दल के भीतर अलग पहचान कायम करने और जाति-धर्म के पार नेता के तौर पर छवि निखारने का काम चल रहा है। पार्टी यह मानकर चल रही है कि चुनाव परिणामों के बाद अगर अवसर मिला तो वह चिराग को प्रमुख दावेदार के रूप में आगे बढ़ाएगी।
PK की ‘डाइनामिक’ रणनीति — आरोप, उदारता और प्योर पॉलिटिक्स
PK का हमला केवल आरोप लगाने तक सीमित नहीं रहा; वे चिराग को एक ऐसा नेता दिखाना चाहते हैं जो जाति व धर्म से ऊपर उठकर राजनीति कर सकता है। इसी द्वंद्वात्मक शैली — एक तरफ प्रमुख नेताओं पर आक्षेप, दूसरी तरफ चिराग की प्रशंसा — से PK एनडीए के भीतर चिराग की स्वीकार्यता बढ़ाने की जुगत लगा रहे हैं।
पिछला अनुभव और आगे का परिदृश्य
2010 और 2020 के घटनाक्रमों का सबक यह है कि राजनीतिक समीकरण तेजी से बदल सकते हैं। चिराग ने पहले बगावत करके अपनी पार्टी को नुकसान भी कराया है, पर अब वे अधिक परिपक्व और संयमित दिखते हैं। पार्टी सूत्र यह भी कहते हैं कि चिराग ने पिता रामविलास पासवान की कुछ गलतियों से सीख ली है और वही गलतियाँ दोहराने का इरादा नहीं रखते।
नतीजा — मौका भी और चुनौती भी
सियासी मार्केट में फिलहाल ‘कोई वैकेंसी नहीं’ की पारंपरिक दलील भी चली आ रही है, पर वास्तविक राजनीति अवसरों पर खड़ी होती है। PK की चालों ने चिराग के रास्ते में जो दरारें पैदा की हैं, वे एलजेपी के लिए उत्साहजनक हैं — और अगर चुनाव परिणाम और अंदरूनी झटके ऐसे ही रहे तो चिराग के लिए मौका बन सकता है।