Wednesday, October 8, 2025
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“लालू से ज़्यादा भ्रष्टाचार नीतीश के दौर में” — प्रशांत किशोर ने बिहार सरकार पर किया बुरा वार

पटना: जनसुराज पार्टी के संस्थापक और चुनाव रणनीतिकार-turned-राजनेता प्रशांत किशोर इन दिनों बिहार विधानसभा चुनाव से पहले ताबड़तोड़ रैलियों और तेज हमलों की वजह से सुर्खियों में हैं।सार्वजनिक रैलियों में उन्होंने राज्य की वर्तमान सियासी व्यवस्था, आर्थिक स्थिति और भ्रष्टाचार को लेकर तीखे आरोप लगाए — जिनमें यह दावा सबसे चर्चित रहा कि आज की सरकार स्वतंत्रता के बाद की सबसे भ्रष्ट सरकारों में से एक है और कुछ मामलों में लालू राज से भी ज़्यादा भ्रष्टाचार हुआ है।

प्रशांत किशोर ने कहा कि बिहार आज भी देश के सबसे गरीब, पिछड़े और पलायन वाले राज्यों में शामिल है और यह केवल किसी एक दल की नाकामी नहीं है — पिछले 35-40 सालों की कुव्यवस्था के लिए हर कोई जिम्मेदार है। उन्होंने स्वीकार किया कि वे खुद भी उस सिस्टम का हिस्सा रहे हैं, पर अब स्थिति बेहद चिंताजनक हो चली है।

नीतीश कुमार के शासनकाल पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि 2005 में जब नीतीश सत्ता में आए तो उम्मीद जगी थी कि विकास होगा, सड़कों व बिजली में सुधार हुआ भी — लेकिन 20 साल के शासन के बावजूद समग्र विकास का बड़ा परिवर्तन नज़र नहीं आता। किशोर का कहना था कि कुछ सुविधाओं के बावजूद आज बिहार की आर्थिक और सामाजिक दशा में मूलभूत बदलाव नहीं दिखते।

सबसे नाटकीय दावों में से एक यह रहा कि कुछ निर्वाचित नेताओं और अफसरों के पास अचानक बड़ी संपत्ति आ रही है — कुछ मामलों में विदेशी संपत्तियों के खऱीदने तक के आरोप लगे हैं। प्रशांत किशोर ने कहा कि लोग दस्तावेज़ों के साथ प्रमाण दे रहे हैं और इन्हें लेकर वे आवाज़ उठा रहे हैं।

किशोर के आरोपों के बाद राजनीतिक प्रतिक्रिया तेज हुई — कुछ भाजपा/जेडीयू नेताओं ने पलटवार किया और राज्य के वरिष्ठ नेताओं ने उन पर मानहानि व झूठे आरोप लगाने का आरोप लगाया। उसी कड़ी में जेडीयू नेता व बिहार के मंत्री अशोक चौधरी ने किशोर को 100 करोड़ रुपये का मानहानि नोटिस भेजा है, जिसमें उन्होंने एक सप्ताह में अपने आरोपों के प्रमाण माँगे हैं। इस घोषणा से सियासी गरमाहट और बढ़ी है। प्रशांत किशोर ने यह भी कहा कि वे व्यक्तिगत रूप से किसी के खिलाफ बेबुनियाद आरोप नहीं लगाते — पर जब बार-बार सूचना और दस्तावेज़ उनके पास आ रहे हैं तो खामोश नहीं रहा जा सकता। उनका कहना है कि जनता को सच्चाई बताने के लिए उन्हें बोलना होगा और भ्रष्टाचार की लकीरों को उजागर करना होगा।

नतीजा: यह मामला बिहार चुनावी राजनीति में नए मोड़ का संकेत है — आरोप-प्रत्यारोप तेज हैं और अगली कुछ दिनों में दोनों पक्षों से कानूनी और पॉलिटिकल प्रतिक्रियाएँ देखने को मिल सकती हैं। प्रशांत किशोर की दलील और उनके द्वारा पेश किए जा रहे दस्तावेज़ों की विश्वसनीयता ही आगे की बहस तय करेगी।

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VIKAS TRIPATHI
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