Wednesday, October 8, 2025
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दिल्ली: शनिवार सुबह कई स्कूलों में बम की धमकी — छात्रों को निकालकर सर्च, केजरीवाल और विपक्षी आरोप-प्रत्यारोप तेज

नई दिल्ली — 20 सितंबर 2025 — शनिवार सुबह राजधानी के कई स्कूलों को अनाम फोन कॉल के माध्यम से बम से उड़ाने की धमकी मिली। धमकी मिलते ही स्कूलों को तत्काल खाली कराया गया और पुलिस व बम निष्क्रियता दस्ते (EOD) ने परिसर की तफ्तीश शुरू कर दी। घटनाओं ने माता-पिता में दहशत फैला दी और सुरक्षा, जवाबदेही तथा निवारक उपायों पर राजनीतिक विवाद भी भड़का दिया।

घटना का क्रम और प्राथमिक कार्रवाई

सुबह कई स्कूलों ने फोन पर धमकी मिलने की सूचना दी। जिन संस्थानों का नाम सामने आया उनमें द्वारका का दिल्ली पब्लिक स्कूल (DPS-Dwarka), कृष्णा मॉडल पब्लिक स्कूल और सर्वोदय विद्यालय शामिल हैं।

स्कूल प्रशासन ने सुरक्षा अनुमानों के अनुरूप तुरंत विद्यार्थियों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाकर माता-पिता को सूचित किया; स्कूली बसों/वैनों को लौटाया गया और निर्धारित स्टॉप-पॉइंट पर बच्चों को सौंपा गया। DPS-Dwarka ने स्कूल बंद रहने और उस दिन के परीक्षा कार्यक्रम स्थगित करने का ऐलान किया।

स्थानिक पुलिस उपायुक्तों और EOD टीमों ने घटनास्थल पर पहुंच कर सर्च ऑपरेशन चलाया। अभी तक मिली रिपोर्टों के अनुसार विस्फोटक पदार्थ नहीं मिले; जांच जारी है।

केजरीवाल का हमला — “चार-इंजन वाली सरकार” पर निशाना

पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सोशल मीडिया पर भाजपा सरकार पर तीखा हमला किया। उन्होंने लिखा कि दिल्ली के स्कूलों पर बार-बार मिलने वाली धमकियों से बच्चों और माता-पिता के बीच डर फैला हुआ है और पिछले एक साल में न तो कोई ठोस पकड़ हुई, न कोई प्रभावी कार्रवाई दिखाई दी। केजरीवाल ने कहा कि “चार-इंजन वाली बीजेपी सरकार” राजधानी की सुरक्षा संभालने में असफल रही है और लोग रोज डर के वातावरण में जी रहे हैं।

आलोचना और उल्टा सवाल: केजरीवाल के कार्यकाल में भी धमकियाँ आती थीं — क्यों नहीं रोका गया?

केजरीवाल की आलोचना के बाद कई भाजपा नेताओं और आलोचकों ने सवाल उठाए कि ऐसी तरह की झूठी धमकियाँ उनके (केजरीवाल के) मुख्यमंत्री काल में भी आती थीं — तो उन्होंने तब काठ की नोक पर निवारक कदम क्यों नहीं उठाये। सोशल मीडिया और कुछ टीवी पैनलों पर यह भी कहा गया कि सुरक्षा-तंत्र को मजबूत करने और चेतावनी-तंत्र स्थापित करने के लिये दीर्घकालिक, गैर-राजनीतिक उपायों की साजिशे जरूरी थीं, पर वे लागू नहीं हुए। इस तरह दोनों ओर से आरोप-प्रत्यारोप सार्वजनिक बहस का हिस्सा बन गए हैं।

यह पैटर्न नई बात नहीं — इस महीने पहले भी झूठी धमकियाँ

सितंबर माह में यह दूसरी बार है जब शैक्षणिक संस्थानों/सरकारी संस्थाओं को धमकी मिली हो:

9 सितंबर को नई दिल्ली के University College of Medical Sciences (UCMS) को ई-मेल के जरिए बम धमकी मिली और कैम्पस खाली कराया गया था।

इससे पहले Maulana Azad Medical College और मुख्यमंत्री सचिवालय को भी धमकियाँ मिली थीं। हर बार जांच में धमकियाँ झूठी पाईं गईं, पर व्यवधान और भय की स्थिति बनती रही।

स्कूलों और पुलिस की प्रतिक्रिया — क्या किया जा रहा है?

स्कूलों ने एप्थ-प्रोटोकॉल के तहत छात्रों को सुरक्षित तरीके से माता-पिता को सौंपा, परीक्षाएँ/कक्षाएं स्थगित कीं और अभिभावकों को सूचनाएं जारी कीं।

पुलिस ने EOD के साथ मिलकर त्वरित सर्च ऑपरेशन चला कर परिसर सुरक्षित घोषित किए जाने के बाद ही गतिविधियों को पुनःमान्य किया।

अधिकारियों ने कहा है कि फोन कॉल व ई-मेल की स्रोत-जाँच, कॉल-ट्रेसेबिलिटी और डिजिटल फ़ॉरेंसिक पर तेजी से काम चल रहा है। जांच में जो भी तकनीकी सबूत मिले, उन्हें सीआईडी/एनआईए के समन्वय से आगे बढ़ाया जाएगा।

माता-पिता, विद्यालय और प्रशासन के लिये सुझावित कदम

1.तेज़ और स्पष्ट सूचना-चैनल: स्कूल-पुलिस-डिस्ट्रिक्ट स्तर पर एक फास्ट-ट्रैक सूचना चैनल बना होना चाहिए जिससे अभिभावकों को समय पर विश्वस्‍नीय अपडेट मिल सके।

2.निवारक इंटेलिजेंस: फोन-कॉल्स की शीघ्र जांच और संभावित स्रोतों की ट्रेसिंग के लिये टेली-कम्पनियों तथा साइबर विंग के साथ समन्वय आवश्यक।

3.सार्वजनिक समन्वय अभ्यास: नियमित ड्रिल्स और अभिभावक-अधिवेशन ताकि पैनिक कम हो और हैंडलिंग सुव्यवस्थित हो।

4.राजनीकृत बयानबाज़ी से परहेज़: सुरक्षा मामलों पर राजनीतिक रैलियों/आरोप-प्रत्यारोप से आगे बढ़कर तकनीकी और नीतिगत समाधान पर एकजुटता दिखानी चाहिए।

नतीजा — राजनीतिक टकराव बनाम दीर्घकालिक समाधान की ज़रूरत

हालांकि शनिवार की धमकियाँ फिलहाल झूठी साबित हुई हैं, बार-बार के ऐसे झूठे अलर्ट से शहर में नक़ली-डर का माहौल बनता है और शिक्षा-प्रणाली पर असर पड़ता है। राजनीति में लगे आरोप-प्रत्यारोप यह दिखाते हैं कि सुरक्षा के मुद्दे तत्काल राजनीतिक विमर्श का हिस्सा बन जाते हैं, पर प्रभावी समाधान के लिये दोनों किनारों से निरंतर, गैर-राजनीकृत और तकनीकी कदम चाहिए।

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VIKAS TRIPATHI
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