नई दिल्ली — कभी-कभी एक छोटा सा वीडियो ही बताने के लिये काफी होता है कि नियम-कायदे और सत्ता का टकराव किस तरह आम आदमी की जमीनी हक़ीक़त पर असर डालता है। सोलापुर के करमाला में अवैध खनन के खिलाफ कार्रवाई कर रही 2022 बैच की आईपीएस अधिकारी अंजना कृष्णा वी. एस. का वही किस्सा आज सोशल मीडिया पर घूम रहा है — और इसकी एक सादगी में बड़ी कहानी छिपी है।
जब एक ईमानदार अधिकारी अपने काम पर लगी होती है — मिट्टी, मशीन और कागज़ों के बीच — तो उम्मीद यही होती है कि कानून खुद बोल उठेगा। अंजना कृष्णा, जो केरल के तिरुवनंतपुरम की साधारण पृष्ठभूमि से निकलकर पुलिस सेवा तक पहुँची हैं, वही कर रहीं थीं: नियम लागू करना, अवैध काम रोकना। उनके पिता का टेक्सटाइल व्यवसाय, माँ का लोकल कोर्ट में टाइपिंग का काम — ये सब बताते हैं कि सामने खड़ा आदमी कोई नाटक नहीं करता, बस अपना फ़र्ज निभा रहा होता है।
फिर हुआ वही जो अक्सर होता है: किसी ने बिना औपचारिकता के फोन लगाकर मामला बड़े दायरे में ला दिया — और फोन हाथ में आते ही किसी बड़े नेता का नाम जुड़ा। वीडियो में दिखता है कि एक वरिष्ठ नेता ने कार्रवाई रोकने के लिये कहा। सवाल उठता है — क्या सत्ता की एक आवाज़ किसी की हिम्मत तोड़ सकती है? क्या वही आदमी जो रोज़ सरकारी आदेशों के नाम पर जिम्मेदारी संभालता है, अपनी ईमानदारी पर खड़ा रह पाएगा जब ताकतवर दबाव आता है?
अंजना ने शायद सोचा भी न होगा कि रोज़मर्रा की एक कार्रवाई राष्ट्रीय सुर्ख़ियों की चीज़ बन जाएगी। जब नेता ने फोन पर बात की, बातचीत में दबाव और भावनात्मक टकराव साफ़ दिखा — एक तरफ़ कर्तव्य, दूसरी तरफ़ राजनीतिक हस्तक्षेप। और बीच में खड़ी वह अधिकारी — जिसकी पढ़ाई सेंट मैरीज़ और एनएसएस कॉलेज से हुई, जिसने अपने अन्दर नीयत और अनुशासन पाला है — उसे सिर्फ़ अपना काम करना था, पर वही काम उसकी और समाज की परख बन गया।
IPS officer Anjana Krishna from Solapur Rural Police went to take action against illegal sand mining after villagers complained about illegal sand mining.
A local NCP member at the spot called up Ajit Pawar and made the officer to speak to him. Another villager recorded the call… pic.twitter.com/A9On8JZ30J
— Congress Kerala (@INCKerala) September 5, 2025
यह कहानी किसी एक घटना की रिपोर्ट से बढ़कर है — यह उस रोज़मर्रा की लड़ाई की मिसाल है जहाँ हमारे नियम-कायदे, प्रशासनिक ईमानदारी और राजनीतिक महत्वाकांक्षा आम आदमी के अधिकारों और ग्रहणशील अधिकारियों के मनोबल से टकराते हैं। अंजना जैसे अधिकारी तब ही हिम्मत दिखा पाते हैं जब उन्हें संस्थागत समर्थन और सार्वजनिक सहारा मिलता है — वरना कितनी ही बार उनकी आवाज़ दब जाती है, और कर्तव्य ही असमाप्त रह जाता है।
अंत में: यह मामला सिर्फ़ एक वायरल वीडियो नहीं; यह सवाल है — हम अपने सामने आने वाले निष्पक्ष अधिकारियों को क्या सहारा देते हैं या सत्ता के दबावों के सामने उन्हें अकेला छोड़ देते हैं? अगर एक अधिकारी को अपना काम करने के लिये सुरक्षा और सम्मान मिला, तो छोटे-बड़े समाज की जमीन मजबूत रहेगी। वरना, ईमानदारी ही कल्पना बनकर रह जाएगी।