नयी दिल्ली — भारत-बांग्लादेश के दो देशों के बीच जारी कूटनीतिक तनाव का असर अब व्यापार पर भी साफ़ दिखने लगा है। विदेश व्यापार महानिदेशालय (DGFT) की ताज़ा अधिसूचना के अनुसार, बांग्लादेश से भूमि मार्ग (लैंड रूट) के जरिए आयात किए जाने वाले कुछ जूट-पदार्थों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। हालांकि इन वस्तुओं का आयात समुद्री मार्ग यानी महाराष्ट्र के न्हावा शेवा बंदरगाह के माध्यम से जारी रखा जा सकेगा।
किस पर रोक है (मुख्य वस्तुएँ)
अधिसूचना के मुताबिक़ भूमि मार्ग से आयात पर रोक वाला सूचीबद्ध सामानों में शामिल हैं —
जूट या अन्य फाइबर के ब्लीच्ड/अनब्लीच्ड बास्त (bast) फाइबर से बने कपड़े,
सुतली, डोरी व जूट की रस्सियाँ,
जूट के बोरे व थैले।
पहले भी लगाए जा चुके हैं प्रतिबंध
यह कदम नई नहीं है — जून में 27 तारीख़ को भी भारत ने कुछ जूट उत्पादों और बुने हुए कपड़ों के भूमि मार्ग आयात पर प्रतिबंध लगाया था, मगर तब भी आयात न्हावा शेवा बंदरगाह के जरिए अनुमति के साथ जारी रखी जा रही थी। अप्रैल और मई में भी बांग्लादेश से आयात पर इसी तरह के नियंत्रण व बंदिशों की घोषणा की जा चुकी है।
सप्लाई चैन व उद्योग पर असर
कपड़ा व जूट सेक्टर में बांग्लादेश भारत का महत्वपूर्ण प्रतिद्वंदी और आपूर्तिकर्ता दोनों है। भूमि मार्ग पर प्रतिबंध से सीमावर्ती व्यापारिक संपर्क प्रभावित होंगे और निश्चित तौर पर सीमा-पार छोटी आपूर्ति शृंखलाएँ प्रभावित होंगी। वहीं न्हावा शेवा पर निर्भरता बढ़ने से परिवहन-लागत, समय और लॉजिस्टिक पर अतिरिक्त दबाव बन सकता है।
राजनीतिक पृष्ठभूमि
इन नीतिगत कदमों का राजनीतिक संदर्भ भी है। बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के खिलाफ हालिया घटनाओं व उसके बाद से उत्पन्न पारस्परिक खिंचाव, साथ ही बांग्लादेश के कुछ राजनैतिक नेता/घटनाओं के बयान-प्रभाव के चलते द्विपक्षीय संबंधों में तनाव बढ़ा है। भारत ने पहले भी कुछ रेडीमेड कपड़ों और प्रोसेस्ड फूड जैसे वस्तुओं के आयात पर बंदरगाह-आधारित शर्तें लगायी थीं। अप्रैल में ट्रांसशिपमेंट सुविधा में भी पाबंदियाँ लगाई जा चुकी थीं।
व्यापार आंकड़े (प्रस्तुत संदर्भ)
वाणिज्य-व्यापार के आँकड़ों के अनुसार 2023–24 में भारत और बांग्लादेश के बीच कुल व्यापार करीब 12.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर था। 2024–25 के आँकड़ों में भारत का निर्यात लगभग 11.46 बिलियन डॉलर रहा जबकि आयात करीब 2 अरब डॉलर दर्ज किया गया। (उपरोक्त आंकड़े संदर्भ के तौर पर प्रस्तुत हैं)।
आगे की सम्भावनाएँ
विशेषज्ञों के अनुसार, यदि कूटनीतिक तालमेल बेहतर होता है तो सीमांत व्यापार धीरे-धीरे सामान्य हो सकता है। फिलहाल सरकार का रुख सुरक्षा और राजनैतिक फैसलों के मद्देनज़र परखा जा रहा है। कारोबारियों और निर्यातकों को वैकल्पिक लॉजिस्टिक व बाजार-रणनीतियाँ अपनानी पड़ सकती हैं — जैसे न्हावा शेवा जैसे समुद्री मार्गों पर निर्भरता बढ़ाना, आपूर्ति श्रृंखलाओं को फिर से व्यवस्थित करना और स्थानीय कच्चे माल के विकल्प तलाशना।