कर्नाटक की राजनीति एक बार फिर उथल-पुथल के दौर में प्रवेश करती दिख रही है। राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर अंदरखाने लंबे समय से चर्चाएं जारी हैं। इन्हीं परिस्थितियों के बीच अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) के महासचिव और कर्नाटक मामलों के प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला ने राज्य के विधायकों के साथ तीन दिवसीय संवाद अभियान की शुरुआत की है, जिससे पार्टी संगठन की जमीनी स्थिति का आकलन किया जा सके।
पहले दिन: असंतुष्ट विधायकों की नाराजगी का सामना
सोमवार को रणदीप सुरजेवाला ने चिकबल्लापुर और कोलार जिलों के विधायकों के साथ बैठक की। इस दौरान सरकार के कामकाज और मंत्रियों की सुस्त जवाबदेही को लेकर कई विधायक खुलकर नाराज नजर आए। कगवाड़ से विधायक राजू कागे, जो पिछले कुछ समय से सरकार से खफा हैं, उनके भी सुरजेवाला से मुलाकात करने की संभावना जताई जा रही है।
राजू कागे पहले ही यह संकेत दे चुके हैं कि विकास कार्यों में देरी और कोष आवंटन में अनियमितताओं के चलते वे अपने पद से इस्तीफा तक देने पर विचार कर रहे हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि “प्रशासनिक तंत्र पूरी तरह से चरमरा गया है” और विधायकों की बातों को सरकार में गंभीरता से नहीं लिया जा रहा।
दूसरा दिन: बेंगलुरु और आसपास के जिलों के 20 विधायकों से मुलाकात
मंगलवार को संवाद के दूसरे दिन सुरजेवाला ने बेंगलुरु शहरी, ग्रामीण, दक्षिण, मैसूरु, चामराजनगर, दक्षिण कन्नड़ और कोलार क्षेत्र के करीब 20 विधायकों से मुलाकात की। यह बातचीत विधायकों की क्षेत्रीय स्थिति, विकास कार्यों की प्रगति, सरकार की 5 गारंटी योजनाओं के क्रियान्वयन और संगठनात्मक मजबूती पर केंद्रित रही।
सुरजेवाला का बयान: “सत्ता परिवर्तन की खबरें कोरी कल्पना”
मीडिया में चल रही सत्ता परिवर्तन की अटकलों को खारिज करते हुए सुरजेवाला ने कहा कि “ऐसी खबरें महज कोरी कल्पना हैं, जिनका पार्टी संगठन से कोई लेना-देना नहीं है।” उन्होंने कहा कि “यह बैठक एक संगठनात्मक अभ्यास है, जिसका उद्देश्य विधायकों के निर्वाचन क्षेत्रों में सरकार की योजनाओं की स्थानीय स्तर पर समीक्षा करना और उनके कार्यों का मूल्यांकन करना है।”
उन्होंने जोर देकर कहा कि कांग्रेस पार्टी अपने पांच गारंटी वादों—गृहलक्ष्मी, शक्ति, अन्न भाग्य, युवा निधि और गृहनिर्माण योजना—पर गंभीरता से काम कर रही है और इनकी ग्रासरूट इम्प्लीमेंटेशन की निगरानी जरूरी है।
क्या चल रही है अंदरूनी राजनीति?
हालांकि रणदीप सुरजेवाला नेतृत्व परिवर्तन की बातों को झुठला रहे हैं, लेकिन राज्य के भीतर गुटबाजी, असंतुष्ट विधायकों की खुलती नाराजगी और मुख्यमंत्री सिद्धारमैया एवं उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के समर्थकों के बीच वर्चस्व की लड़ाई इन अटकलों को हवा दे रही है। खासतौर पर राज्य में कैबिनेट विस्तार की अनिश्चितता, मंत्री पद की चाहत और क्षेत्रीय असंतुलन को लेकर असंतोष कई बार सतह पर आ चुका है।
कांग्रेस नेतृत्व की रणनीति
कांग्रेस आलाकमान चाहता है कि 2024 के लोकसभा चुनावों में खराब प्रदर्शन के बाद भी कर्नाटक में पार्टी की पकड़ बनी रहे और विधायकों का विश्वास कायम रखा जाए। इसी कारण सुरजेवाला द्वारा सीधे संवाद की यह रणनीति अपनाई गई है, ताकि चुनावों के बीच पार्टी संगठन बिखरने से बच जाए।
कर्नाटक कांग्रेस इस समय एक नाजुक मोड़ पर है। जहां एक ओर सुरजेवाला नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों को नकार रहे हैं, वहीं राज्य के कई विधायक प्रशासनिक कार्यशैली, कैबिनेट की सुस्ती, और विकास की धीमी गति को लेकर खुलकर नाराज हैं। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या कांग्रेस इस असंतोष को नियंत्रित कर पाती है या राज्य में एक और राजनीतिक पुनर्गठन की पटकथा तैयार हो रही है।