लखनऊ: बहुचर्चित और हाई-प्रोफाइल श्रवण साहू हत्याकांड में नया मोड़ आया है। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने इस मामले में दोषी बाबू खान को जमानत दे दी है। यह फैसला समानता के सिद्धांत पर आधारित है, क्योंकि इसी केस में पहले ही एक अन्य आरोपी अजय पटेल को अप्रैल 2025 में जमानत मिल चुकी थी।
कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को दी चुनौती
जस्टिस पंकज भाटिया और जस्टिस छितिज शैलेंद्र की वेकेशन बेंच ने 24 जून 2025 को बाबू खान की जमानत याचिका को स्वीकार किया। याचिका में सीबीआई की विशेष अदालत द्वारा सुनाए गए आजीवन कारावास के निर्णय को चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने माना कि अजय पटेल को जमानत देते समय अभियोजन यह सिद्ध नहीं कर पाया था कि वह हत्या की साजिश में शामिल था — यही तर्क बाबू खान के पक्ष में भी लागू हुआ।
सीबीआई कोर्ट ने सुनाई थी उम्रकैद की सजा
22 अगस्त 2024 को सीबीआई की विशेष अदालत ने बिजनेसमैन श्रवण साहू की हत्या की साजिश रचने के मामले में बाबू खान को दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास और ₹1.10 लाख के जुर्माने की सजा सुनाई थी। इस केस में कुल आठ लोगों को दोषी करार दिया गया था। बाबू खान ने पिछले वर्ष हाई कोर्ट में अपील दाखिल की थी, जिस पर अब जाकर फैसला आया है।
क्या है श्रवण साहू हत्याकांड?
श्रवण साहू की हत्या, उनके बेटे आयुष साहू की वर्ष 2013 में हुई हत्या के बाद शुरू हुई घटनाओं की कड़ी का हिस्सा थी।
16 अक्टूबर 2013 को लखनऊ के हजरतगंज इलाके में आयुष का बीयर खरीदने को लेकर अकील अंसारी से विवाद हुआ था।
विवाद इतना बढ़ा कि अकील और उसके साथियों ने आयुष की हत्या कर दी।
अकील को हत्या का दोषी ठहराया गया और उसे भी आजीवन कारावास की सजा मिली।
श्रवण साहू ने बेटे की हत्या के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ी और खुद इस केस में एक प्रमुख गवाह बने। लेकिन अकील अंसारी को डर था कि श्रवण की गवाही से उसे कड़ी सजा हो सकती है। इसी डर के चलते उसने श्रवण की हत्या की साजिश रची।
1 फरवरी 2017 को दो बाइक सवार हमलावरों ने श्रवण को उस समय गोली मारी जब वे दालमंडी, बड़ा चौराहा स्थित अपनी दुकान पर बैठे थे।
गोली लगने के बाद श्रवण को ट्रॉमा सेंटर ले जाया गया, जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।
इस जघन्य हत्या के बाद श्रवण के दूसरे बेटे सुनील साहू ने FIR दर्ज करवाई और अकील अंसारी को दोनों हत्याओं का मास्टरमाइंड बताया। केस की गंभीरता को देखते हुए जांच सीबीआई को सौंपी गई।
सीबीआई ने मामले में 51 गवाहों और 100 से अधिक दस्तावेजों को कोर्ट में पेश किया। इसी मुकदमे में बाबू खान को सह-अभियुक्त के रूप में दोषी ठहराया गया था।