नोएडा, उत्तर प्रदेश- साइबर अपराधियों की जालसाजी का शिकार इस बार देश की सुरक्षा से जुड़े रहे एक पूर्व वायुसेना अधिकारी बने हैं। जेवर निवासी 59 वर्षीय मिश्री लाल, जो भारतीय वायु सेना से रिटायर्ड हैं, को साइबर ठगों ने न केवल धमकी देकर मानसिक रूप से प्रताड़ित किया, बल्कि उन्हें 26 दिनों तक “डिजिटल अरेस्ट” में रखकर करीब 1 करोड़ रुपये की ठगी कर डाली।
कैसे रचा गया साइबर जाल?
मिश्री लाल के अनुसार, उन्हें एक अज्ञात कॉल आई जिसमें खुद को TRAI (टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया) का अधिकारी बताने वाले एक व्यक्ति ने कहा कि उनके मोबाइल नंबर से आपत्तिजनक गतिविधियां की जा रही हैं। इसके बाद कथित “मुंबई पुलिस”, “ईडी अधिकारी” और “बैंक प्रतिनिधियों” से लगातार कॉल्स आने लगे।
उन्हें बताया गया कि उनके खिलाफ धन शोधन (मनी लॉन्ड्रिंग) और आतंकी वित्त पोषण जैसे गंभीर आरोप हैं। ठगों ने उन्हें डराया कि उनकी संपत्ति जब्त कर ली जाएगी, गिरफ्तारी हो सकती है, और यह केस राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा है।
26 दिन तक रहा “डिजिटल अरेस्ट”
इस मनोवैज्ञानिक दबाव में आकर मिश्री लाल को घर में कैद जैसा रखा गया। उन्हें किसी से बात न करने, फोन बंद न करने, कॉल पर बने रहने, और प्रत्येक निर्देश का पालन करने को कहा गया — इस प्रक्रिया को साइबर भाषा में डिजिटल अरेस्ट कहा जाता है।
इस दौरान उन्होंने भय और भ्रम की स्थिति में अपने विभिन्न खातों से रकम को पांच से अधिक बैंक खातों में ट्रांसफर कर दिया, जिससे जालसाजों ने कुल मिलाकर ₹1 करोड़ से अधिक की रकम हड़प ली।
FIR दर्ज, जांच शुरू
घटना की जानकारी मिलते ही मिश्री लाल ने नोएडा के साइबर थाने में शिकायत दर्ज कराई है। पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी है और जिन खातों में पैसे भेजे गए थे, उनकी ट्रांजैक्शन ट्रेस की जा रही है।
बढ़ रही है ऐसे मामलों की संख्या
हाल के महीनों में नोएडा और दिल्ली-NCR क्षेत्र में इसी तरह के हाई-प्रोफाइल साइबर फ्रॉड के कई मामले सामने आए हैं। पूर्व अधिकारी, वरिष्ठ नागरिक, डॉक्टर और कारोबारी लगातार साइबर अपराधियों के निशाने पर हैं।
सवालों के घेरे में साइबर सुरक्षा व्यवस्था
•आखिर इतने लंबे समय तक किसी व्यक्ति को “डिजिटल कैद” में रखकर डराना कैसे संभव हो गया?
•क्या ट्राई, पुलिस और अन्य एजेंसियों के नाम पर हो रही कॉल्स को ट्रैक नहीं किया जा सकता?
•क्या बैंक इतनी बड़ी रकम ट्रांसफर होते देख कोई अलर्ट जारी नहीं कर सकते?
यह मामला एक बार फिर देश में साइबर जागरूकता और डिजिटल सुरक्षा प्रणाली की खामियों को उजागर करता है।
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