एक ज़माना था जब रामनिवास सुरजा खेड़ा हरियाणा विधानसभा में ‘विकास पुरुष’ कहलाते थे — और आज? वही सुरजा खेड़ा अब ईडी की पेशी में सिर झुकाए खड़े हैं, हाथ में जवाबों की जगह खामोशी, और चेहरे पर वो ‘राजनीतिक मासूमियत’, जो अकसर घोटालों के पर्दाफाश के बाद दिखाई देती है।
ईडी की दस्तक और अदालत की चुटकी: “इतने भी लालची मत बनो!”
170 करोड़ रुपये के कथित जमीन मुआवजा घोटाले में ईडी ने पंचकूला की विशेष पीएमएलए कोर्ट से सुरजा खेड़ा की 14 दिन की हिरासत मांगी — कोर्ट ने मुस्कराते हुए जवाब दिया, “इतने भी लालची मत बनो, पांच दिन बहुत हैं!”
राजनीति में यह शायद पहली बार था जब कोर्ट की टिप्पणी भ्रष्टाचार से ज़्यादा तंज की तरह गूंजती दिखी।
‘कैश संस्कृति’ का आर्किटेक्ट: सुरजा खेड़ा और उनका फाइनेंस मंत्री बंसल
सिर्फ सुरजा खेड़ा ही नहीं, उनके साथ गिरफ्तार हुए HSVP के पूर्व वरिष्ठ लेखा अधिकारी सुनील बंसल इस लूट कथा के सह-लेखक हैं।
ईडी के मुताबिक, दोनों ने मिलकर एक “कैश-प्रेमी विकास मॉडल” रचा — एक ऐसा मॉडल जिसमें पैसा सरकारी खजाने से निकलकर सीधे निजी खातों में पहुंचता था, और दस्तावेज़ों में “विकास” लिखा होता था।
जब विधायक बना फील्ड बैंकर: सूटकेस से सिस्टम तक
रामनिवास खुद नकदी उठाने जाते थे — बिचौलियों से डायरेक्ट डील, और फिर पैसे की ‘विकास यात्रा’।
सरकारी सिस्टम के भीतर एक समानांतर अर्थव्यवस्था — जिसमें लूट थी, लेकिन लिपिबद्ध; भ्रष्टाचार था, लेकिन “रेगुलर”।
भूतिया खाता, गायब रिकॉर्ड: और विकास कागज़ों पर ही रह गया
2015 से 2019 के बीच एक ऐसा बैंक खाता सक्रिय रहा जिससे 70 करोड़ रुपये के लेन-देन हुए — पर मज़े की बात?
यह खाता HSVP के आधिकारिक रिकॉर्ड में था ही नहीं!
यानी — खाते में पैसे थे, सिस्टम में खाता नहीं। विकास था, लेकिन नक्शे पर नहीं, सिर्फ रिपोर्ट में।
सेवा का अंत, ईडी की शुरुआत
रामनिवास की ‘जनसेवा’ 2015 में शुरू हुई और 2019 तक चली।
2023 में जब ईडी ने दस्तावेज़ टटोले, तो विकास के पीछे छिपी बेशुमार दौलत की परतें खुलने लगीं।
अब तक तीन अनंतिम कुर्की आदेश जारी हो चुके हैं, और करीब 21 करोड़ की संपत्ति ज़ब्त।
सूत्रों की मानें तो अगला एपिसोड और भी चौंकाने वाला हो सकता है — और गिरफ्तारियां अभी अधूरी हैं।
वकील की दलील बनाम ईडी की पड़ताल
रामनिवास के वकील कोर्ट में बोले — “गिरफ्तारी गलत है।”
जवाब मिला — “और जो सौ करोड़ निकाल लिए, वो क्या सही थे?”
ईडी का तर्क था कि आरोपियों को सबूतों से रूबरू कराना ज़रूरी है, ताकि जांच को प्रभावित न किया जा सके।
‘विकास’ की परिभाषा बदलती है, चेहरा नहीं?
रामनिवास सुरजा खेड़ा, जो कभी जनता के जनप्रतिनिधि थे, अब ईडी के दस्तावेज़ों में एक ‘वित्तीय अपराधी’ की शक्ल में दर्ज हैं।
सवाल सिर्फ यह नहीं कि उन्होंने कितना लूटा,
सवाल यह है — क्या हम जनता फिर उन्हीं चेहरों को वोट की माला पहनाने जा रही है?
जब लोकतंत्र के मंच पर भ्रष्टाचार का पर्दा डाला जाता है, तब नेताओं के भाषणों में विकास और ईडी की फाइलों में अपराध, एक ही चेहरे के दो चेहरे बन जाते हैं।