Tuesday, July 1, 2025
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“धारा 10 की झुनझुनी और भूमाफियाओं की रागिनी: जब प्राधिकरण सोता रहा, और शहर बनते गए!”

विकास त्रिपाठी की विशेष रिपोर्ट:

उत्तर प्रदेश औद्योगिक क्षेत्र विकास अधिनियम, 1976 की धारा 10 — जिसे औद्योगिक विकास प्राधिकरणों का ‘अमोघ अस्त्र’ कहा जाता है — आजकल एक ‘नकली तलवार’ सरीखी लगती है, जो म्यान से तो निकलती है, पर किसी पर असर नहीं करती।

जनपद गौतमबुद्धनगर की धरती पर ये धारा कुछ इस तरह असर दिखाती है कि जब भी कोई भू-माफिया या अवैध कॉलोनाइज़र किसी खेत, खलिहान या जंगल को ‘महल बनाने लायक ज़मीन’ समझ बैठता है, तो धारा 10 एक हल्की सी कांख-कांख करती है, प्राधिकरण कुछ नोटिस निकालता है और फिर सब सो जाते हैं।

और इधर कॉलोनियाँ, जैसे रातों-रात बसी टाउनशिप स्कीमें हों — हर घर में बिजली नहीं, पर नक्शा ज़रूर है!सदरपुर, भंगेल, शाहबेरी या वैदपुरा — क्या फर्क पड़ता है?भूमाफिया इन गांवों में नगर नियोजन के पोस्ट-ग्रेजुएट हो चुके हैं। उन्हें मालूम है कि पहले सड़क निकालो, फिर चारदीवारी बनाओ, और जब तक पुलिस आए — छत भी ढक लो!

धारा 10 का नोटिस आजकल डायबिटिक दवा की तरह हो गया है — खाओ, पर मिठाई मत छोड़ो!
नोएडा अथवा ग्रेटर नोएडा के नक्शे में अब दो शहर दिखते हैं — एक वैध, दूसरा धारा 10 द्वारा “सूचित”।

जब प्राधिकरण नींद से जागता है, तब तक हाल कुछ ऐसा हो चुका होता है —
दीवारें खड़ी, बिजली चोरी से चालू, पानी बोरिंग से, और सीवर नाली में डंप!

ग्रेटर नोएडा का वैदपुरा इसका जीता-जागता उदाहरण है। नवंबर 2024 में दर्जन भर ‘विला आर्किटेक्ट्स’ को नोटिस दिए गए। जनवरी 2025 में पुलिस से एफआईआर की मांग की गई। अप्रैल आते-आते विला बनकर Airbnb पर चढ़ गए, लेकिन एफआईआर अब भी पुलिस की फाइल में ‘रिलेशन में है’!

तुस्याना के जंगल में “वन्य जीवन” अब सिर्फ भू-माफियाओं का है — वहाँ अब न तेंदुए मिलते हैं, न पेड़। हाँ, कॉलोनी के एंट्री गेट पर “ड्रीम होम्स” का बोर्ड ज़रूर लगा है।

और प्राधिकरण?
वो ‘सोता हुआ रावण’ है, जो तभी उठता है जब रामायण खत्म हो जाती है। फिर आकर कहता है — “अब बुलडोजर चलाओ!”
पर जब घर बन गए, परिवार बस गए, वोटर लिस्ट में नाम आ गया — तब बुलडोजर चलाना क्या सिर्फ क़ानून का पालन है या ‘इवेंट मैनेजमेंट’?

यह सवाल नहीं, सरकारी सिस्टम की सबसे बड़ी विडंबना है।

बात यहीं खत्म नहीं होती — धारा 10 उन संपत्तियों पर तो असर दिखा देती है जहाँ आम नागरिक ने गलती से एक शेड बढ़ा लिया हो या बालकनी का ग्रिल बाहर निकल गया हो। वहां प्राधिकरण की टीम MRI मशीन लेकर आती है — माप, नोटिस, तोड़फोड़ सब 3 दिन में!
पर शाहबेरी जैसी जगहों पर, जहाँ पूरी कॉलोनियाँ बिना किसी मंजूरी के विकसित हो चुकी हैं, वहां धारा 10 को गूंगा-बहरा अंधा बना दिया जाता है।

हाल ही में ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण की अपर मुख्य कार्यपालक अधिकारी श्रीमती प्रेरणा सिंह ने सभी अवैध कॉलोनियों पर बुलडोजर चलाने के संकेत दिए हैं
पर सवाल है: जब अस्पताल की इमारत बन जाए, तभी इलाज क्यों?
धारा 10 आज भी कानून की किताब में जिंदा है, पर जमीनी हकीकत में सिर्फ इतना कहती है —
“हम नोटिस दे चुके हैं, अब भगवान ही मालिक है!”

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VIKAS TRIPATHIhttp://www.pardaphaas.com
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