कोल्हापुर (महाराष्ट्र):
कभी भेड़-बकरियां चराने वाला एक साधारण ग्रामीण युवक आज पूरे देश के लिए मिसाल बन गया है। महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले के यमगे गांव से ताल्लुक रखने वाले बिरदेव सिद्धप्पा डोणे ने बिना किसी कोचिंग और गाइडेंस के UPSC जैसी कठिन परीक्षा में 551वीं रैंक हासिल कर इतिहास रच दिया है। तीसरे प्रयास में मिली यह कामयाबी न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि यह दिखाती है कि अगर इरादे मजबूत हों, तो हालात कभी रास्ता नहीं रोक सकते।
झोपड़ी से सीधे UPSC की मेरिट लिस्ट तक
बिरदेव एक चरवाहे परिवार से हैं, जिनका मुख्य व्यवसाय आज भी भेड़-बकरियों और गायों को पालना और चराना है। उनका परिवार अब भी एक साधारण झोपड़ी में रहता है, जहां चारों ओर पशुओं के लिए बाड़े बने हुए हैं। जब उनका UPSC परिणाम घोषित हुआ, तब वे बेलगांव जिले के अथणी क्षेत्र में अपने पिता के साथ भेड़ों को चरा रहे थे। न कोई बड़ा शहर, न कोई कोचिंग सेंटर – सिर्फ खुद पर विश्वास और दिन-रात की मेहनत।
तीसरी बार में मिला सफलता का स्वाद
बिरदेव के पास न कोई विशेष संसाधन थे, न ही कोई मार्गदर्शक। उन्होंने पहले दो प्रयासों में असफलता का सामना किया, लेकिन कभी हार नहीं मानी। उनका आत्मविश्वास और अनुशासन ही उनकी सबसे बड़ी पूंजी बने। तीसरे प्रयास में उन्होंने वो कर दिखाया, जो लाखों अभ्यर्थी वर्षों की तैयारी के बाद भी नहीं कर पाते।
“मुझे IPS बनने की उम्मीद है” – बिरदेव
अपने सफर को साझा करते हुए बिरदेव ने कहा, “मुझे उम्मीद है कि मेरी रैंक के अनुसार मुझे IPS कैडर मिल सकता है, लेकिन मैं जो भी पद पाऊं, मेरा उद्देश्य रहेगा कि मैं देश की सेवा करूं और लोगों की भलाई के लिए काम करूं।”
गांव से बधाइयों का तांता
बिरदेव की सफलता की खबर जैसे ही गांव में फैली, वहां स्थानीय लोग बधाई देने पहुंचने लगे। उनके संघर्ष और मेहनत ने न सिर्फ उनके गांव और जिले, बल्कि पूरी समुदाय का नाम रोशन किया है।
यह कहानी हमें सिखाती है कि…
- अगर लक्ष्य तय हो और मेहनत ईमानदार हो, तो कोई भी सपना दूर नहीं।
- कठिनाइयों और संसाधनों की कमी, केवल बहाने बनते हैं, अगर जज़्बा हो तो हर दीवार गिराई जा सकती है।
- संघर्ष की झोपड़ी से निकलकर भी भारत का अफसर बना जा सकता है।