
बिहार की राजनीति में दो दशकों से अहम भूमिका निभा रहे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आगामी 2025 विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए अपनी चुनावी रणनीति को तेज कर दिया है। एनडीए का चेहरा बने नीतीश इस बार पूरी तरह से दलित और महिला मतदाताओं को केंद्र में रखकर एक नई रणनीति अपना रहे हैं, जिसे “डी-एम फॉर्मूला” (Dalit–Mahila) कहा जा रहा है।
चुनावी चुनौतियां बढ़ीं, नीतीश ने बदला गेमप्लान
2025 के चुनाव नीतीश के लिए आसान नहीं हैं। एक तरफ विपक्षी खेमा तेजस्वी यादव, कांग्रेस और प्रशांत किशोर जैसे नेताओं के नेतृत्व में एकजुट होता दिख रहा है, तो दूसरी तरफ बीजेपी के अंदरखाने से भी कई असंतोष के स्वर उठते रहे हैं। ऐसे में नीतीश ने अपने पुराने फॉर्मूले को और धार दी है—यानी महिला और दलित मतदाताओं के भरोसे को फिर से मजबूत करना।
महिलाओं को साधने निकले नीतीश: शुरू हुआ महिला संवाद कार्यक्रम
नीतीश कुमार ने ‘महिला संवाद अभियान’ की शुरुआत की है, जो अगले दो महीनों तक राज्य के करीब 70,000 स्थानों पर चलेगा। इसके लिए पटना से 50 विशेष प्रचार वाहन रवाना किए गए हैं। इस अभियान के ज़रिए 2 करोड़ महिलाओं तक पहुंचने का लक्ष्य रखा गया है।
इस कार्यक्रम में जीविका दीदियों, छात्राओं, गृहिणियों और ग्रामीण महिलाओं को सरकारी योजनाओं की जानकारी दी जाएगी। इसमें विशेष रूप से महिला आरक्षण, शराबबंदी, कन्या उत्थान योजना, पोशाक योजना, बाल विवाह व दहेज उन्मूलन जैसे मुद्दों को केंद्र में रखा गया है। यह अभियान ना सिर्फ जागरूकता का माध्यम है, बल्कि यह तेजस्वी यादव की ‘माई बहिन मान योजना’ का भी सीधा जवाब माना जा रहा है।
भीम संवाद से भीम महाकुंभ तक: दलित वोटों के लिए पूरी ताकत
बिहार के 18% दलित वोटर किसी भी दल के लिए सत्ता की चाबी हैं। यही कारण है कि नीतीश कुमार ने हाल के महीनों में भीम संसद, भीम संवाद, और अब भीम महाकुंभ जैसे आयोजनों के जरिए दलित समाज को साधने की कोशिश शुरू की है। 14 अप्रैल को आंबेडकर जयंती के अवसर पर नीतीश ने ‘आंबेडकर समग्र योजना’ का ऐलान किया, जो इस दिशा में एक बड़ा संकेत है।
जल्द ही होने वाला भीम महाकुंभ इस रणनीति की अगली कड़ी होगा, जिसमें नीतीश सरकार अब तक दलित समाज के लिए उठाए गए कदमों को गिनाएगी और आगामी योजनाओं का ब्लूप्रिंट भी प्रस्तुत करेगी।
राजनीतिक समीकरण और विपक्ष की चुनौती
नीतीश की रणनीति के केंद्र में वो ‘साइलेंट वोटर’ हैं जो सार्वजनिक मंचों पर नहीं दिखते लेकिन वोटिंग के दिन सत्ता का गणित बदल देते हैं। कांग्रेस, आरजेडी और जनसुराज जैसे दल भी दलित और महिला वोटरों को साधने की मुहिम में लगे हुए हैं। कांग्रेस ने दलित चेहरे राजेश कुमार को प्रदेश अध्यक्ष और सुशील पासी को सह-प्रभारी बनाकर यह संकेत दे दिया है। तेजस्वी यादव की नई योजनाएं भी महिला मतदाताओं पर नजरें टिकाए हुए हैं।
क्या डी-एम फॉर्मूला नीतीश को पांचवीं बार सत्ता दिलाएगा?
2005, 2010, 2015 और 2020 में लगातार सत्ता में रहे नीतीश कुमार अब 2025 को लेकर कोई रिस्क नहीं लेना चाहते। उनका पूरा ध्यान जातीय और सामाजिक समीकरणों को फिर से साधने पर है। डी-एम फॉर्मूला के सहारे नीतीश एक बार फिर अपना सियासी वर्चस्व कायम रखने की जद्दोजहद में हैं।

VIKAS TRIPATHI
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