Tuesday, July 1, 2025
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नीतीश-नायडू की इफ्तार पर मुस्लिम संगठनों का बायकॉट, जमीयत उलमा-ए-हिंद ने साधी चुप्पी तोड़ने की अपील

बिहार में वक्फ संशोधन विधेयक 2024 के खिलाफ मुस्लिम संगठनों का विरोध अब और तेज हो गया है। इस नाराजगी का असर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की इफ्तार पार्टी पर भी पड़ा, जिसे ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, इमारत-ए-शरिया समेत कई प्रमुख मुस्लिम संगठनों ने ठुकरा दिया। इन संगठनों ने नीतीश कुमार पर मुस्लिम समुदाय की उपेक्षा का आरोप लगाते हुए उनके धर्मनिरपेक्ष दावों को महज एक दिखावा करार दिया।

वक्फ संशोधन विधेयक बना विवाद की जड़

मुस्लिम संगठनों का कहना है कि वक्फ संशोधन विधेयक 2024 मुस्लिम समाज की धार्मिक और सामाजिक संपत्तियों पर सरकारी नियंत्रण स्थापित करने का प्रयास है। इस विधेयक के विरोध में अब तक कई विरोध प्रदर्शन भी हो चुके हैं। संगठनों का आरोप है कि नीतीश कुमार भाजपा के दबाव में मुस्लिम विरोधी नीतियों का समर्थन कर रहे हैं।

इफ्तार के न्योते पर संगठनों का सख्त रुख

नीतीश कुमार द्वारा 23 मार्च को आयोजित इफ्तार पार्टी का बहिष्कार करते हुए जमीयत उलमा-ए-हिंद, इमारत-ए-शरिया, खानकाह ए मुजीबिया, जमीयत अहले हदीस, जमात-ए-इस्लामी हिंद और खानकाह रहमानी समेत 8 मुस्लिम संगठनों ने मुख्यमंत्री को एक पत्र भेजा। इस पत्र में कहा गया कि जब सरकार मुसलमानों की जायज मांगों को नजरअंदाज कर रही है, तो इस तरह की औपचारिक दावतों का कोई मतलब नहीं रह जाता।

नीतीश सरकार पर लगे गंभीर आरोप

मुस्लिम संगठनों का कहना है कि नीतीश कुमार धर्मनिरपेक्ष शासन के वादे के साथ सत्ता में आए थे, लेकिन भाजपा के साथ गठबंधन करने के बाद उन्होंने मुस्लिम समाज की अनदेखी शुरू कर दी। संगठनों ने इसे सत्ता की लालसा करार देते हुए कहा कि नीतीश कुमार की सरकार एक ऐसे कानून का समर्थन कर रही है, जो असंवैधानिक और अल्पसंख्यक विरोधी है।

अरशद मदनी ने जताई कड़ी नाराजगी

जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने इस मुद्दे पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा—
“जो नेता खुद को सेक्युलर कहते हैं और मुसलमानों के समर्थन का दावा करते हैं, वे आज चुप्पी साधे हुए हैं। वे सत्ता की लालच में अन्याय को बढ़ावा दे रहे हैं।”
उन्होंने कहा कि मुसलमानों को योजनाबद्ध तरीके से निशाना बनाया जा रहा है, धार्मिक स्थलों को विवादों में घसीटा जा रहा है और सांप्रदायिक तनाव को भड़काकर मुसलमानों को हाशिए पर धकेला जा रहा है।

अब इफ्तार और ईद मिलन में नहीं होगी शिरकत

मदनी ने साफ किया कि जमीयत उलमा-ए-हिंद अब नीतीश कुमार, चंद्रबाबू नायडू और अन्य नेताओं की इफ्तार पार्टियों, ईद मिलन समारोहों और किसी भी औपचारिक आयोजन में हिस्सा नहीं लेगा। उन्होंने कहा कि जो नेता मुसलमानों की समस्याओं पर चुप हैं, उनके साथ मंच साझा करने का कोई औचित्य नहीं है।

सियासी हलचल तेज, क्या होगा असर?

बिहार में मुस्लिम संगठनों का यह खुला विरोध राजनीतिक माहौल को नया मोड़ दे सकता है। नीतीश कुमार पहले ही भाजपा के साथ अपने गठबंधन को लेकर मुस्लिम समाज में भरोसा खो चुके हैं। ऐसे में इस बहिष्कार से आने वाले चुनावों में जदयू की साख को और नुकसान पहुंच सकता है।

अब देखना होगा कि नीतीश कुमार इस विरोध को शांत करने के लिए क्या कदम उठाते हैं या फिर वे इसे नजरअंदाज करने की रणनीति अपनाते हैं। लेकिन एक बात साफ है— बिहार की राजनीति में यह मामला जल्द ठंडा पड़ने वाला नहीं है।

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VIKAS TRIPATHI
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