
Supreme court gift deed quash senior citizen welfare : भारत में बुजुर्ग माता-पिता के अधिकारों की सुरक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है। अब अगर माता-पिता अपनी संपत्ति और गिफ्ट बच्चों को सौंपने के बाद उनकी अनदेखी का सामना करते हैं, तो वे उस संपत्ति को वापस ले सकते हैं। इस फैसले ने वरिष्ठ नागरिकों के अधिकारों को मजबूती प्रदान करते हुए एक नई उम्मीद जगाई है।
बुजुर्गों के अधिकारों की रक्षा का संकल्प
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि कोई बच्चा अपने माता-पिता का ख्याल रखने में विफल रहता है, तो उनके द्वारा ट्रांसफर की गई संपत्ति वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम (Welfare of the Parents and Senior Citizens Act) के तहत शून्य घोषित की जाएगी। कोर्ट ने इस अधिनियम को एक फायदेमंद कानून बताते हुए कहा कि इसका उद्देश्य बुजुर्गों के अधिकारों की रक्षा करना है।
क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला?
- माता-पिता द्वारा बच्चों को ट्रांसफर की गई प्रॉपर्टी तभी मान्य रहेगी जब वे उनकी देखभाल करेंगे।
- बच्चों द्वारा माता-पिता की उपेक्षा या अनदेखी करने पर संपत्ति का ट्रांसफर रद्द किया जा सकता है।
- संपत्ति ट्रांसफर को धोखाधड़ी, जबरदस्ती, या अनुचित प्रभाव के तहत माना जाएगा यदि बच्चों ने उनकी देखभाल की शर्तों का उल्लंघन किया।
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले को पलटा
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि प्रॉपर्टी ट्रांसफर तभी रद्द की जा सकती है, जब गिफ्ट डीड में पहले से ही इस बात का जिक्र हो। सुप्रीम कोर्ट ने इसे कानून के उद्देश्य के खिलाफ बताया और कहा कि उदार दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए।
वरिष्ठ नागरिकों के लिए यह फैसला क्यों अहम है?
- संरक्षा की गारंटी: यह फैसला बुजुर्ग माता-पिता को आर्थिक और भावनात्मक सुरक्षा प्रदान करेगा।
- संतानों की जिम्मेदारी: अब बच्चे अपनी जिम्मेदारियों से नहीं बच सकते।
- धोखाधड़ी पर रोक: प्रॉपर्टी ट्रांसफर में जबरदस्ती या धोखाधड़ी के मामलों पर लगाम लगेगी।
केस स्टडी: बुजुर्ग महिला की याचिका
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक बुजुर्ग महिला का मामला आया, जिसमें उन्होंने याचिका दायर की कि उनके बेटे को ट्रांसफर की गई संपत्ति रद्द की जाए। महिला ने बताया कि उनका बेटा प्रॉपर्टी मिलने के बाद उनकी देखभाल नहीं कर रहा। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को स्वीकार करते हुए महिला के पक्ष में फैसला सुनाया और संपत्ति ट्रांसफर रद्द कर दी।
अधिनियम की धारा 23 का महत्व
वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम की धारा 23 स्पष्ट रूप से कहती है कि:
- माता-पिता द्वारा दी गई संपत्ति या गिफ्ट तभी वैध होंगे, जब बच्चे उनकी देखभाल करेंगे।
- अगर बच्चे अपनी जिम्मेदारी निभाने में विफल होते हैं, तो संपत्ति का ट्रांसफर शून्य घोषित किया जाएगा।
क्या कहता है यह फैसला?
जस्टिस सी. टी. रविकुमार और जस्टिस संजय करोल की बेंच ने कहा कि यह फैसला संयुक्त परिवार प्रणाली के कमजोर पड़ने और बुजुर्गों की बढ़ती अनदेखी को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। अदालत ने कहा:
“यह कानून अकेले रह रहे बुजुर्गों के अधिकारों की रक्षा के लिए बनाया गया है और यह उन्हें समाज में सम्मानजनक जीवन जीने का हक देता है।”
नए युग की शुरुआत
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला बुजुर्गों के लिए एक बड़ी राहत और बच्चों के लिए एक चेतावनी है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि बुजुर्ग माता-पिता को उनकी जीवन के अंतिम चरण में उपेक्षा का सामना न करना पड़े।
अब यह देखना होगा कि इस कानून के लागू होने से समाज में क्या बदलाव आते हैं और क्या यह फैसला बुजुर्गों की जिंदगी में वह सम्मान और सुरक्षा ला पाएगा, जिसके वे हकदार हैं।