
Sanjeev Bhatt: गुजरात के पोरबंदर की एक अदालत ने पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को 1997 के हिरासत में यातना मामले में बड़ी राहत देते हुए बरी कर दिया है। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि अभियोजन पक्ष इस मामले को साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत पेश नहीं कर सका, और इसलिए संजीव भट्ट को सबूतों के अभाव में संदेह का लाभ देते हुए दोषमुक्त किया गया।
कोर्ट का निर्णय
अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट मुकेश पंड्या ने शनिवार को अपना निर्णय सुनाते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष के आरोप केवल संदेह के आधार पर टिके हुए थे और उनके पास ऐसा कोई ठोस प्रमाण नहीं था, जो यह साबित कर सके कि भट्ट ने हिरासत में यातना दी थी। अदालत ने यह भी कहा कि भट्ट उस समय एक लोक सेवक के रूप में अपने कर्तव्यों का पालन कर रहे थे और उन पर लगाए गए आरोप केवल कल्पना पर आधारित हैं।
क्या है मामला?
यह मामला 1997 का है, जब नारन जादव नामक व्यक्ति ने पोरबंदर पुलिस पर आरोप लगाया था कि उन्हें गुनाह कबूल करवाने के लिए हिरासत में यातनाएं दी गईं। नारन जादव 1994 के हथियार बरामदगी मामले में 22 आरोपियों में से एक थे। अभियोजन पक्ष के अनुसार, 5 जुलाई 1997 को जादव को अहमदाबाद की साबरमती सेंट्रल जेल से ट्रांसफर वारंट पर पोरबंदर लाया गया और तत्कालीन एसपी संजीव भट्ट के आवास पर ले जाया गया। आरोप था कि जादव को बिजली के झटके सहित गंभीर यातनाएं दी गईं, जो उनके शरीर के विभिन्न हिस्सों और निजी अंगों तक पहुंचीं।
मामले की पृष्ठभूमि
अदालत ने 1998 में इस मामले में संज्ञान लिया था और 31 दिसंबर 1998 को मामला दर्ज करने के आदेश दिए थे। इसके बाद 15 अप्रैल 2013 को अदालत ने संजीव भट्ट और कांस्टेबल वजुभाई चौ के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया। हालांकि, सुनवाई के दौरान अदालत ने पाया कि इन आरोपों को साबित करने के लिए अभियोजन पक्ष के पास पर्याप्त साक्ष्य नहीं थे।
संजीव भट्ट का अब तक का कानूनी सफर
संजीव भट्ट के खिलाफ पहले से ही कई गंभीर मामले लंबित हैं।
- 1990 का हिरासत मौत मामला: इस मामले में उन्हें जामनगर में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है।
- 1996 का ड्रग्स मामला: राजस्थान के एक वकील को फंसाने के लिए ड्रग्स रखने के आरोप में उन्हें 20 साल की जेल की सजा सुनाई गई है।
संजीव भट्ट वर्तमान में राजकोट सेंट्रल जेल में बंद हैं और इन दोनों मामलों में अपनी सजा काट रहे हैं।
अदालत की टिप्पणी
अदालत ने अपने फैसले में यह भी कहा कि लोक सेवकों के खिलाफ इस प्रकार के मामलों में आरोप साबित करने के लिए ठोस और विश्वसनीय साक्ष्य आवश्यक हैं। सिर्फ संदेह के आधार पर किसी को दोषी ठहराना न्याय की मूल भावना के खिलाफ है।
संजीव भट्ट को 1997 के हिरासत में यातना मामले में बरी किया जाना उनके लिए एक बड़ी राहत है। हालांकि, उनके खिलाफ अन्य मामलों में सजा बरकरार है। यह मामला न केवल उनके कानूनी संघर्ष को दर्शाता है, बल्कि न्याय व्यवस्था में ठोस साक्ष्यों की अनिवार्यता को भी रेखांकित करता है।
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