
Devendra Fadnavis: बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस ने 5 दिसंबर को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में तीसरी बार शपथ ली। मुंबई के ऐतिहासिक आजाद मैदान में राज्यपाल सी.पी. राधाकृष्णन ने उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। इस समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, और कई अन्य प्रमुख नेता मौजूद रहे। शिवसेना (शिंदे गुट) के प्रमुख एकनाथ शिंदे और एनसीपी नेता अजित पवार ने उपमुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।
हालांकि मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद फडणवीस के सामने कई बड़ी चुनौतियां हैं, जिन्हें पार करना उनके लिए आसान नहीं होगा। आइए जानते हैं किन 5 प्रमुख मोर्चों पर उन्हें अपनी ताकत आजमानी होगी।
1. गुड गवर्नेंस: आर्थिक चुनौतियों के बीच विकास को गति देना
देवेंद्र फडणवीस का पहला कार्यकाल गुड गवर्नेंस के लिए जाना जाता है। जलयुक्त शिवार योजना से लेकर मुंबई-नागपुर समृद्धि महामार्ग और मुंबई मेट्रो विस्तार जैसी योजनाओं ने उनकी छवि को मजबूत किया।
लेकिन तीसरे कार्यकाल में उनके सामने राज्य की आर्थिक स्थिति सबसे बड़ी चुनौती है।
- राजकोषीय घाटा बढ़ रहा है।
- एफडीआई (विदेशी निवेश) में गिरावट आई है।
- बेरोजगारी शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में चिंता का विषय बनी हुई है।
- राजस्व में कमी और कर्ज़ का बोझ ₹7.82 लाख करोड़ तक पहुंच चुका है।
इन परिस्थितियों में, विकास कार्यों के लिए पर्याप्त धनराशि जुटाना और आर्थिक स्थिरता बनाए रखना एक कठिन चुनौती होगी।
2. मराठा आरक्षण: दोनों समुदायों के बीच संतुलन बनाना
मराठा आरक्षण का मुद्दा महाराष्ट्र की राजनीति में एक जटिल समस्या बन चुका है।
- मनोज जरांगे पाटिल लंबे समय से मराठा आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे हैं।
- ओबीसी समुदाय को आशंका है कि मराठा आरक्षण से उनके हिस्से में कटौती की जाएगी।
फडणवीस सरकार के सामने चुनौती यह है कि मराठा और ओबीसी समुदाय के बीच संतुलन कैसे बनाए रखें। अगर यह मुद्दा सही तरीके से नहीं संभाला गया, तो यह आगामी चुनावों में बड़ा नुकसान पहुंचा सकता है।
3. चुनावी वादों को पूरा करने का दबाव
महायुति की जीत में ‘लाडकी बहिन योजना’ का बड़ा योगदान रहा है। इस योजना के तहत 21 से 65 वर्ष की उन महिलाओं को हर महीने ₹1500 दिए जाते हैं, जिनकी वार्षिक आय ₹2.5 लाख से कम है।
- सरकार ने इस राशि को बढ़ाकर ₹2100 करने का वादा किया है।
- कल्याणकारी योजनाओं पर ₹90,000 करोड़ का अतिरिक्त बोझ आएगा।
इन वादों को पूरा करना और साथ ही राज्य की आर्थिक स्थिति को संतुलित रखना फडणवीस सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण होगा।
4. किसानों की समस्याएं: फसलों के सही दाम और कर्जमाफी
महाराष्ट्र में किसानों की नाराजगी एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा है।
- प्याज, गन्ना, सोयाबीन, कपास, और अंगूर की फसलों के सही दाम न मिलने से किसान नाराज हैं।
- प्याज निर्यात पर पाबंदी के कारण बीजेपी को पिछली बार लोकसभा चुनाव में 12 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था।
- किसानों की कर्जमाफी का वादा भी चुनावी घोषणापत्र में शामिल था।
फडणवीस सरकार के लिए इन वादों को पूरा करना और किसानों को संतुष्ट रखना बड़ी चुनौती होगी।
5. बीएमसी चुनाव: शिवसेना का किला ढहाना
बीएमसी (बृहन्मुंबई महानगरपालिका) देश की सबसे समृद्ध नगर निगम है, जिसका बजट कई छोटे राज्यों से भी बड़ा है।
- शिवसेना का इस पर लंबे समय से कब्जा है।
- 2017 के बीएमसी चुनाव में शिवसेना सबसे बड़ी पार्टी बनी थी, जबकि बीजेपी दूसरे स्थान पर रही थी।
इस बार फडणवीस को बीएमसी पर कब्जा करने के लिए शिवसेना (शिंदे गुट) और एनसीपी (अजित पवार गुट) के साथ तालमेल बिठाना होगा।
- शिंदे गुट में पहले से ही मुख्यमंत्री पद न मिलने को लेकर असंतोष है।
- अगर यह असंतोष बढ़ा, तो बीएमसी चुनाव में बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ सकता है।
फडणवीस के लिए संतुलन और निर्णायक नेतृत्व की परीक्षा
देवेंद्र फडणवीस के तीसरे कार्यकाल में उनकी सबसे बड़ी परीक्षा होगी—राजनीतिक संतुलन बनाए रखना और सभी वादों को समय पर पूरा करना।
- गुड गवर्नेंस को दोहराना,
- आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करना,
- किसानों और मराठा आरक्षण जैसे संवेदनशील मुद्दों का समाधान निकालना,
- और बीएमसी पर शिवसेना का किला तोड़ना।
यदि फडणवीस इन सभी चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना कर पाते हैं, तो न केवल उनकी लोकप्रियता और मजबूत होगी, बल्कि महाराष्ट्र में बीजेपी की स्थिति भी और मजबूत होगी।