
उत्तर प्रदेश में बीजेपी का अगला प्रदेश अध्यक्ष कौन होगा? यह सवाल उतना ही पेचीदा हो गया है जितना कि कौन बनेगा करोड़पति में करोड़पति बनने का आखिरी सवाल। पार्टी ने मानो ऐसा कठिन चयन प्रोसेस बना दिया है कि एमबीबीएस की सीट पाना इससे ज्यादा आसान लगने लगा है।
बीजेपी को चाहिए “करिश्माई अध्यक्ष” – कोई जादूगर तो नहीं?
बीजेपी को इस बार ऐसा प्रदेश अध्यक्ष चाहिए जो करिश्माई हो, संगठन को मजबूत कर सके, सरकार के साथ तालमेल बिठाए और कार्यकर्ताओं में जोश भर दे। अब सवाल ये है कि क्या ये व्यक्ति कोई इंसान होगा या फिर हॉलीवुड की सुपरहीरो मूवी से उठाया गया कोई कैरेक्टर?
पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि इस बार किसी “मजबूत हाथ” में प्रदेश की कमान सौंपनी चाहिए। लेकिन पिछले तीन अध्यक्षों को देखकर लगता है कि हाथ मजबूत था या मजबूर, ये कहना मुश्किल है।
जातीय गणित या नेतृत्व क्षमता – दुविधा बरकरार!
बीजेपी का अध्यक्ष वही बनेगा जो जातीय गणित में फिट बैठेगा। मतलब, संगठन की काबिलियत हो या न हो, बस जाति का योग सही बैठना चाहिए। पहले स्वतंत्र देव सिंह को अध्यक्ष बनाया, लेकिन तब संगठन को लेकर सरकार इतनी भावुक हो गई कि संगठन हाशिए पर चला गया। फिर भूपेंद्र चौधरी आए, लेकिन उनके नेतृत्व में पार्टी की हालत ऐसी हो गई जैसे बिना पतवार की नाव गंगा में बह रही हो।
नए अध्यक्ष के लिए कुंडली मिलान शुरू!
अब सवाल यह है कि अगला प्रदेश अध्यक्ष कौन होगा? पार्टी में नए अध्यक्ष की कुंडली मिलाई नहीं, बल्कि बनाई जा रही है। चर्चा में कई नाम हैं:
- हरीश द्विवेदी – ब्राह्मण नेता, संघ की पसंद, लेकिन क्या वो जनता की पसंद बनेंगे?
- बीएल वर्मा – लोधी समाज से आते हैं, संघ से नजदीकी, लेकिन क्या कल्याण सिंह जैसी पकड़ बना पाएंगे?
- विजय बहादुर पाठक, विद्या सागर सोनकर, अमरपाल मौर्या – इन नामों पर चर्चा तो हो रही है, लेकिन ये चर्चा किसी कॉफी टेबल गॉसिप से ज्यादा कुछ नहीं लग रही।
चुनाव जीतने की चुनौती या कुर्सी बचाने की?
बीजेपी के लिए 2027 का विधानसभा चुनाव किसी युद्ध से कम नहीं होगा। अखिलेश यादव PDA मॉडल लेकर मैदान में उतरेंगे और बीजेपी को एक ऐसा नेता चाहिए जो इसे टक्कर दे सके। लेकिन समस्या ये है कि पार्टी के अंदर ही कुर्सी की लड़ाई छिड़ी हुई है।
“अध्यक्ष का चुनाव या बलि का बकरा?”
हर कोई प्रदेश अध्यक्ष बनना चाहता है, लेकिन सवाल ये है कि क्या यह पद वास्तव में किसी के लिए लाभदायक होगा या फिर बलि का बकरा बनने की तैयारी है? क्योंकि उत्तर प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष की कुर्सी अब तक ज्यादातर नेताओं के लिए “एक्सपायरी डेट” की तरह रही है।
अब देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी एक करिश्माई नेता चुनती है या फिर किसी को करिश्मा दिखाने का आदेश देकर किनारे बैठ जाती है!

VIKAS TRIPATHI
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