इथियोपिया के हेली गुब्बी ज्वालामुखी के भीषण विस्फोट के बाद उठे राख के विशाल बादल अब भारत तक पहुंचने लगे हैं। इसका सबसे बड़ा असर हवाई यातायात पर दिखाई दे रहा है। इंडिगो, एयर इंडिया और अकासा एयर ने यात्रियों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कई उड़ानें रद्द कर दी हैं।
एयर इंडिया का बयान
एयर इंडिया ने अपने आधिकारिक प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर जानकारी देते हुए कहा कि
“यात्रियों की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता है, इसलिए उड़ानें रद्द करने का निर्णय मजबूरी में लिया गया है।”
कंपनी ने इस कारण यात्रियों को हुई परेशानी के लिए खेद भी जताया।
ज्वालामुखी विस्फोट कितना खतरनाक?
पर्यावरणविद मन्नू सिंह के अनुसार इस विस्फोट की तीव्रता इतनी जबरदस्त थी कि इसकी शक्ति कई परमाणु बमों से भी अधिक आंकी जा रही है। विस्फोट से निकली राख 15 किलोमीटर ऊंचाई तक वातावरण में पहुंच गई।
उन्होंने बताया:
राख में सूक्ष्म कांच जैसे कण होते हैं, जो इंजनों को गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं
इसी कारण उड़ानों को तत्काल रद्द करना पड़ता है
भारी कण कुछ घंटों में नीचे आ जाते हैं
जबकि बेहद हल्के कण कई महीनों तक हवा में तैरते रहते हैं
25 नवंबर को रद्द हुई उड़ानें
एआई 2822: चेन्नई → मुंबई
एआई 2466: हैदराबाद → दिल्ली
एआई 2444 / 2445: मुंबई ↔ हैदराबाद
एआई 2471 / 2472: मुंबई ↔ कोलकाता
24 नवंबर को रद्द उड़ानें
एआई 106, एआई 102: न्यूयॉर्क → दिल्ली
एआई 2204: दुबई → हैदराबाद
एआई 2290: दोहा → मुंबई
एआई 2212: दुबई → चेन्नई
एआई 2250: दम्माम → मुंबई
एआई 2284: दोहा → दिल्ली
48 घंटे में सामान्य हो सकता है हवाई यातायात
मन्नू सिंह का कहना है कि वर्तमान में जेट स्ट्रीम वेस्टरली दिशा में है।
अगर कोई नया विस्फोट नहीं होता है तो अगले 48 घंटों में उड़ान संचालन सामान्य हो सकता है।
हालांकि उनकी चिंता यह भी है कि ज्वालामुखी अभी भी सक्रिय है, और अगर छोटे धमाके जारी रहे तो स्थिति सामान्य होने में और समय लग सकता है।
क्या आने वाले दिनों में और विस्फोट संभव?
हेली गुब्बी एक डॉर्मेंट वोल्केनो है जिसने पिछली बार लगभग 12,000 वर्ष पहले विस्फोट किया था।
इतने लंबे अंतराल के बाद हुआ बड़ा विस्फोट संकेत देता है कि आने वाले दिनों में छोटे या मध्यम धमाके और हो सकते हैं।
इतिहास में ऐसे ज्वालामुखी कैसे प्रभावित करते रहे हैं?
मन्नू सिंह बताते हैं:
कनाडा के एक ज्वालामुखी ने लाखों वर्ष पहले पूरी धरती को राख से ढक दिया था
लगभग 1000 वर्षों तक वातावरण में धूल और राख की परत बनी रही
इस कारण कई प्रजातियाँ विलुप्त हो गईं
काराकाटोआ जैसे आधुनिक विस्फोटों ने भी दुनिया का तापमान और वायु गुणवत्ता बुरी तरह प्रभावित की
भारत पर कितना प्रभाव पड़ेगा?
वर्तमान हवा का रुख पश्चिमी दिशा में है, इसलिए राख का भारत की ओर आना सामान्य है।
मन्नू सिंह का अनुमान है कि दिल्ली में भी हल्का असर महसूस किया जा सकता है, हालांकि हवा की दिशा बदलने से NCR कुछ हद तक बच सकता है।
हवा में घुलता ज़हर — बढ़ सकती है परेशानी
दिल्ली की हवा पहले से ही बेहद प्रदूषित है। ऐसे में ज्वालामुखी की राख से जुड़े कण हवा को और अधिक जहरीला बना सकते हैं। इनमें शामिल हैं:
कांच जैसे महीन कण
फ्लोराइड
सल्फर
नाइट्रोजन
खतरनाक गैसें, जो फेफड़ों की प्रतिरोधक क्षमता पर असर डालती हैं
लंबे समय तक रह सकते हैं असर
विशेषज्ञों के अनुसार:
भारी कण: 1–1.5 सप्ताह में नीचे बैठ जाते हैं
सूक्ष्म कण: 6–8 महीनों तक वातावरण में रह सकते हैं
जेट स्ट्रीम की दिशा बदलने पर प्रभाव अन्य महाद्वीपों तक भी पहुंच सकता है














